ओ दुपहरी,
नींद से जागो; सुना है,
यह सुना है रात पर पहरे बढ़ेंगे,
और दिन पर भी उन्हीं का राज होगा।

टूट जाएंगी सभी अवधारणाएं,
और बहुमत को पुनः धोखा मिलेगा।
जो नज़र आएगा सबसे श्वेतवर्णी,
वह ही भीतर से निरा खोटा मिलेगा।

ओ तरूण मेघा,
उठो; यह गर्जना है,
गर्जना है सारी ऋतुएं क़ैद होंगी,
और प्रासादों में ही मधुमास होगा।

चूर होकर अब थकन भी गिर पड़ेगी,
स्वेद से अब होगा सिंचित शुष्क भूतल।
अन्न फ़िर दम तोड़ देगा रस्सियों पर,
खेत को फ़िर से मिलेगा खाद का छल।

ओ कृषक आशाओं,
सुन लो; सूचना है,
सूचना है सारी नहरें भी थमेंगी,
और नदी-नालों पे भी अवकाश होगा।

न्याय की प्रतिमा बनेगी मूकदर्शक,
परचमी आंचल को जब भी छल मिलेगा।
देवियां ही ढाल अन्याय की होंगी,
विरहणी नयनों से गंगाजल बहेगा।

उज्ज्वलाओं,
लौ बढ़ाओ; योजना है,
योजना है फ़िर अयोध्या मौन होगी,
और अब फ़िर सत्य को वनवास होगा।

फ़िर क़लम सिंहासनों की जय करेगी,
राजपथ पर नफ़रतों का शोर होगा।
नागफ़नियों की दुकानें फ़िर सजेंगी,
गुलमोहर उपवन में फ़िर कमज़ोर होगा।

ओ पखेरू,
हारना मत; देखना है,
देखना है द्वेष के बादल छटेंगे,
और मुहब्बत का दोबारा राज होगा।

रचना: तल्हा मन्नान खान (छात्र, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी)

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