जब मुहाफ़िज़ ही लुटेरे बन जाएं!

पिछले दस सालों में इस देश में मुसलमानों के ख़िलाफ़ जितनी नफ़रत फैलाई गई है और जितना उत्पीड़न हुआ है, उतना आज़ादी के बाद के 75 सालों में नहीं देखा गया। मॉब लिंचिंग के नाम पर मुसलमानों का उत्पीड़न और हत्या आम होती जा रही है। मुसलमानों के ख़िलाफ़ अपराधों में लगातार बढ़ोतरी भाजपा शासित राज्यों में ही हो रही है।

0
324

जब मुहाफ़िज़ ही लुटेरे बन जाएं!

अब्दुल मुक़ीत

हमारा देश भारत, विश्व के सभी देशों में एक सुंदर, आकर्षक और प्यारा देश है, जहां विभिन्न धर्मों, जातियों, संस्कृतियों और कई भाषाओं के बोलने वाले लोग बिना किसी भेदभाव के ख़ुशी से रहते आए हैं। एक लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष देश, जहां हर किसी को, किसी दूसरे के जीवन में कोई दख़ल दिए बिना खुली हवा में सांस लेने की आज़ादी है। हमें अपने देश पर गर्व है कि हम इस ख़ूबसूरत देश का हिस्सा हैं, और हो भी क्यों न, क्योंकि यहां की गंगा-जमुनी तहज़ीब के उदाहरण दिए जाते रहे हैं। जब इस देश का नाम लिया जाता है तो लोगों को प्रेमचंद और रघुपति सहाय, रहीम और कबीर दास की याद आती है, मंदिर की आरती और मस्जिद की अज़ान की ध्वनि की एक साथ तस्वीर बनती है।

लेकिन अफ़सोस, पिछले कुछ समय से हमारे देश में एक ख़ास वर्ग को लगातार निशाना बनाया जा रहा है, उसे हाशिए पर धकेला जा रहा है, उसके साथ दुर्व्यवहार किया जा रहा है, उनके युवाओं को मौत के घाट उतार दिया जा रहा है, उनके धर्म को निशाना बनाया जा रहा है, उनके धार्मिक स्थलों को तोड़ा जा रहा है, उनके नेताओं को सलाख़ों के पीछे घसीटा जा रहा है, उनकी दुकानों और घरों में आग लगा दी जा रही है और लोग तमाशबीन बनकर खड़े हैं। ये घटनाएं उस देश में हो रही हैं, जिसके सर्वधर्म समभाव की मिसाल दी जाती थी लेकिन अब यह नए भारत की कहानी है।

बीते दिनों गुरुग्राम के सेक्टर 57 में अंजुमन मस्जिद के इमाम की हिंदुत्ववादी उन्मादी भीड़ ने हत्या कर दी। हरियाणा के नूह ज़िले में दक्षिणपंथी उग्रवादी संगठन विश्व हिंदू परिषद द्वारा निकाली गई यात्रा के दौरान हिंसा भड़क उठी और तेज़ी से गुरुग्राम सहित राज्य के अन्य हिस्सों में फैल गई, जहां हिंदुत्ववादी भीड़ ने प्रदर्शन किए। एक मस्जिद को आग लगा दी गई और गोलियां चलाई गईं। चश्मदीदों के अनुसार यह हिंदुत्ववादी भीड़ आधी रात के समय बंदूकों, तलवारों और लाठियों के साथ पहुंची। वे “जय श्री राम” के नारे लगा रहे थे।

मकतूब मीडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, इस साल फ़रवरी में राजस्थान के भरतपुर में दो मुस्लिम युवकों के अपहरण और हत्या के आरोपी बजरंग दल के सदस्य मोनू मानेसर ने कुछ दिन पहले सोशल मीडिया पर हेट स्पीच से भरा एक वीडियो जारी किया था। स्थानीय लोगों ने मोनू के इस हत्याकांड में शामिल होने के कारण नूह की यात्रा का विरोध किया और कहा कि इससे क्षेत्र में सांप्रदायिक सद्भाव प्रभावित होगा। हिंसा सोमवार को दोपहर के आसपास शुरू हुई जब श्रद्धालुओं को लेकर लगभग आधा दर्जन वाहन नूह चौक पर पहुंचे, जिससे अफ़वाह फैल गई कि उनमें से एक वाहन के अंदर मोनू मानेसर था। इन वाहनों पर ‘गौरक्षक’ लिखा हुआ था। जैसे ही वाहन नूह चौक पर पहुंचे, कुछ युवाओं ने इन वाहनों पर पथराव किया। जल्द ही आसपास के गांवों की भीड़ सड़क पर जमा हो गई।

देश के अलग-अलग इलाक़ों में हिंदुत्ववादी उग्रवादी संगठनों के ज़रिए जो हिंसा की आग दिन-ब-दिन सुलगती दिख रही है, कहीं-न-कहीं बीते दिनों जयपुर-मुंबई ट्रेन हत्याकांड भी उसी सिलसिले का एक हिस्सा था। देश के तमाम नागरिकों ने सोशल मीडिया पर इस ट्रेन हत्याकांड की ख़बर देखी, जहां एक पुलिस अफ़सर ने आम जनता के सामने ट्रेन में चार लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी।

बीती 31 जुलाई को जयपुर-मुंबई ट्रेन में रेलवे सुरक्षा बल के कांस्टेबल चेतन सिंह द्वारा जिन चार लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी गई, उनमें से तीन मुस्लिम थे। आरोपी को राइफ़ल के साथ यह कहते हुए सुना जा सकता है कि अगर भारत में रहना है तो योगी और मोदी को वोट दो। घटना के कुछ ही समय बाद, विचलित कर देने वाले दृश्य इंटरनेट पर सामने आए, जिसे पूरी दुनिया ने देखा। तीनों यात्रियों की पहचान अब्दुल क़ादिर, अख़्तर अब्बास अली और मुहम्मद हुसैन के रूप में की गई है, जबकि पुलिस अधिकारी की पहचान सहायक उप-निरीक्षक टीका राम मीना के रूप में हुई है। बता दें कि मीना आदिवासी समुदाय से हैं।

मकतूब मीडिया की रिपोर्ट के मुताबिक़, आरोपी चेतन सिंह ने बी-5 कोच के अंदर अपनी एआरएम राइफ़ल से पहले एएसआई मीना पर गोली चलाई और फिर मधुबनी के रहने वाले अब्दुल क़ादिर को गोली मार दी। बाद में उसने पेंट्री कार में एक अज्ञात व्यक्ति की हत्या कर दी और एस-6 कोच में चला गया, जहां उसने जयपुर के एक चूड़ी विक्रेता की गोली मारकर हत्या कर दी।

इन हिंसक घटनाओं के बाद वीएचपी ने एक बयान जारी कर इसे पुलिस और ख़ुफ़िया तंत्र की विफलता बताया है। सोशल मीडिया पर इससे जुड़े कई हैशटैग देखे जा सकते हैं, जिनमें मिनी पाकिस्तान भी एक हैशटैग है। इसके तहत कहा जा रहा है कि मेवात मुस्लिम बहुल क्षेत्र है जहां 80 फ़ीसदी मुस्लिम हैं। यह इलाक़ा दिल्ली से सटा हुआ है जहां ज़्यादातर किसान रहते हैं। सोशल मीडिया इस को लेकर नफ़रत भरे संदेशों से भरा पड़ा है, जिनमें से ज़्यादातर भड़काऊ हैं।

बीजेपी नेता कपिल मिश्रा ने ट्वीट किया है कि, “नूह और मेवात में आज निर्दोष हिंदू महिलाओं, बच्चों, निहत्थे श्रद्धालुओं को जिहादियों ने घेर लिया, जानलेवा हमले की योजना बनाई, पत्रकारों और पुलिसकर्मियों को मारने की कोशिश की। मेवात में इस हमले के हमलावर वही लोग हैं जो मेवात को मिनी पाकिस्तान बनाना चाहते हैं।” उन्होंने आगे लिखा कि, “देश की धर्मनिरपेक्ष राजनीति और पत्रकारिता के शाहीन बाग़ जिहादी गिरोह ने मेवात में ऐसे हमलों के लिए वैचारिक चरित्र तैयार करने का काम किया है।”

उनके ट्वीट के जवाब में बड़ी संख्या में लोगों ने उनकी आलोचना की है और कहा है कि दोनों जगह सरकार आपकी है, फिर ऐसा कैसे हो गया! कोई इसे वोट मांगने की साज़िश बता रहा है तो कोई नफ़रत फैलाने का आरोप लगा रहा है।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने जयपुर-मुंबई एक्सप्रेस हत्याकांड और हरियाणा के नूह और मेवात में सांप्रदायिक हिंसा को लेकर बीजेपी पर निशाना साधते हुए ट्वीट किया कि, “मीडिया और उसके सहयोगियों ने पूरे देश में नफ़रत का कैरोसीन फैला दिया है। देश में केवल प्यार ही इस आग को बुझा सकता है।”

एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने इस मुद्दे पर ट्वीट किया, “यह विशेष रूप से मुसलमानों को निशाना बनाकर किया गया एक आतंकवादी हमला है। यह लगातार मुस्लिम विरोधी नफ़रत फैलाने वाले भाषणों का परिणाम है। क्या आरोपी आरपीएफ़ जवान भविष्य में भाजपा का उम्मीदवार बनेगा? क्या सरकार उसकी ज़मानत का समर्थन करेगी? क्या रिहाई पर उसे माला पहनाई जाएगी?”

इस घटना को मुसलमानों के ख़िलाफ़ आतंकवादी हमला बताने वाले असदुद्दीन ओवैसी के ट्वीट को भारत सरकार के निर्देश के बाद ट्विटर ने ब्लॉक कर दिया है। 1 अगस्त को, ओवैसी को ट्विटर से एक रिपोर्ट मिली जिसमें कहा गया था कि उसे भारत सरकार से ट्वीट को ब्लॉक करने की क़ानूनी मांग मिली है क्योंकि यह सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 का उल्लंघन है। ये बातें ट्विटर की ओर से ओवैसी को भेजे गए एक मेल में लिखी गईं।

दूसरे ट्वीट में वह लिखते हैं कि, “जयपुर एक्सप्रेस हिंसा मामले में भारत सरकार के अनुरोध पर मेरे ट्वीट को भारत में ब्लॉक कर दिया गया है। किस क़ानून का उल्लंघन हुआ? क्या किसी आतंकवादी हमले को आतंकवादी हमला कहना अपराध है?” औवेसी ने कहा कि काश! मोदी सरकार मुसलमानों के ख़िलाफ़ घृणा अपराधों को रोकने में भी उतनी ही सक्रिय रहे।

पत्रकार राना अय्यूब के ट्वीट को भी भारत सरकार के निर्देश के बाद ट्विटर ने ब्लॉक कर दिया। उन्होंने ट्वीट किया, “भारत सरकार की मांग के जवाब में ट्रेन घटना पर मेरे ट्वीट को भारत में ब्लॉक कर दिया गया है। ट्विटर ने मुझे इसकी रिपोर्ट करने के लिए लिखा है। लोकतंत्र की जननी के लिए बहुत कुछ।”

मैंने यह कुछ चुनिंदा ट्वीट्स का ज़िक्र किया है जिन्हें भारत सरकार ने हटाने का आदेश दिया था। मुझे नहीं पता कि कितने लोग ग़लत को ग़लत और सही को सही कहने के लिए आगे आते हैं, और सरकार उन्हें तोड़ कर और ख़त्म करने की पूरी कोशिश करती है। क्या लोकतांत्रिक देश में सवाल करना ग़लत है? क्या किसी के हक़ के लिए आवाज़ उठाना ग़लत है?

वर्तमान सरकार में नफ़रत चरम सीमा पर पहुंच गई है और यह मुस्लिम शत्रुता का प्रतीक है कि अब रक्षक ही हत्यारे बन गए हैं। यह कोई सामान्य घटना नहीं है जिसे मीडिया रिपोर्ट कर रहा है, यह मुसलमानों के ख़िलाफ़ आतंकवाद और संगठित आतंकवाद है। सिपाही तो गिरफ़्तार हो गया, लेकिन उसे इस घिनौने कृत्य के लिए उकसाने वाले कब गिरफ़्तार होंगे? उन पर कब कार्रवाई होगी?

पिछले दस सालों में इस देश में मुसलमानों के ख़िलाफ़ जितनी नफ़रत फैलाई गई है और जितना उत्पीड़न हुआ है, उतना आज़ादी के बाद के 75 सालों में नहीं देखा गया। मॉब लिंचिंग के नाम पर मुसलमानों का उत्पीड़न और हत्या आम होती जा रही है। मुसलमानों के ख़िलाफ़ अपराधों में लगातार बढ़ोतरी भाजपा शासित राज्यों में ही हो रही है। मुसलमानों के लिए ज़मीन तंग की जा रही है। इतनी नफ़रत है कि लोग दाढ़ी-टोपी देखते ही पीटने लगते हैं। नफ़रत भरे जुमलों का इस्तेमाल किया जाता है। जय श्री राम, वंदे मातरम आदि नारे लगाने को मजबूर किया जाता है।

धर्म संसद के नाम पर देश के अलग-अलग हिस्सों में बड़ी-बड़ी सभाएं आयोजित की जा रही हैं, जिसमें खुलेआम मुसलमानों के नस्ली सफाए की बात कही जा रही है। सुप्रीम कोर्ट के सख़्त निर्देश पर भी स्थानीय पुलिस प्रशासन दोषियों पर कार्रवाई करने में नाकाम रही है। यह इस बात के संकेत हैं कि पुलिस को कार्रवाई करने से रोका जा रहा है। नफ़रत फैलाने वालों पर कार्रवाई न करने का नतीजा आज हमारे सामने है।

स्वतंत्रता सेनानियों के सपनों का भारत ऐसा नहीं था। आज़ाद भारत में सभी के लिए शांतिपूर्ण जीवन, अपने धर्म का पालन करने की आज़ादी, यह सब आज भारत में उल्टा नजर आ रहा है। मुसलमान न तो सुरक्षित है और न ही वह अपनी धार्मिक पहचान के साथ रह सकता है। आज मुसलमानों के आर्थिक बहिष्कार कि बात आम हो गई है।

अब समय आ गया है कि भारत के अस्तित्व के लिए वर्तमान फ़ासीवादी सरकार को उखाड़ फेंका जाए और देश में एक धर्मनिरपेक्ष सरकार स्थापित की जाए जो भारत में रहने वाले सभी समुदायों की रक्षक हो, क्योंकि वर्तमान सरकार मुसलमानों के ख़िलाफ़ घृणा फ़ैलाने के अलावा हर मोर्चे पर विफ़ल रही है। 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here