देश में उत्पन्न आर्थिक संकट के लक्षण चिंतनीय – अभिजीत बनर्जी

वाकई देश इस वक़्त खतरे में है, मैं सिर्फ यही नहीं बोल रहा हूँ कि इकॉनमी पूरा बंद हो गया है हो सकता है ये प्रतिशत फिलवक़्त 5-10% ही हो लेकिन इन सबके बाद जो लक्षण दिख रहे हैं वो कई चिंता का विषय है ।

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फाइल फोटो अभिजीत बनर्जी (नोबेल पुरस्कार से सम्मानित)

भारतीय मूल के अमेरिकी अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी को वर्ष 2019 के लिए अर्थशास्त्र के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। उनका जन्म 1961 में कोलकाता, भारत में हुआ था। अभिजीत बनर्जी ने 1983 में जेएनयू, नई दिल्ली से अर्थशास्त्र में मास्टर्स पूरा किया। उन्होंने 1988 में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी, अमेरिका से पीएच.डी. डिग्री प्राप्त की। उन्होंने Esther Duflo और Sendhil Mullainathan के साथ मिलकर 2003 में अब्दुल लतीफ जमील पावर्टी एक्शन लैब की स्थापना की। इसके बाद अभिजीत, विकास के आर्थिक विश्लेषण में अनुसंधान के लिए बनर्जी ब्यूरो के पूर्व अध्यक्ष रहे थे । वह अमेरिकन एकेडमी ऑफ आर्ट्स एंड साइंसेज और द इकॉनॉमिक सोसाइटी, अमेरिका के शोध सहयोगी भी रहे हैं । वह 2015 के बाद संयुक्त राष्ट्र के उच्च-स्तरीय पैनल के विकास के एजेंडे के लिए सचिव भी रहे हैं। अभिजीत की मशहूर किताब “पुअर इकोनॉमिक्स” को गोल्डमैन की बिजनेस बुक ऑफ द ईयर का खिताब मिला है ।
पिछले दिनों अर्थशास्त्र से नोबेल पुरस्कार विजेता अभिजीत बनर्जी के भारत आगमन पर बीबीसी हिन्दी पर बीबीसी संवादाता के साथ साक्षात्कार में सवालों के जवाब दे रहे थे। उस साक्षात्कार के कुछ अंश आपके समक्ष प्रस्तुत हैं:
बीबीसी – आपको कभी लगा था आप कभी नोबेल पुरस्कार से सम्मानित होंगे ?
बनर्जी – इस प्रश्न पर सोचोगो तो पूरी जिंदगी ऐसे ही बर्बाद हो जाएगी।
बीबीसी – आपको और आपकी पत्नी में नोबेल प्राइज़ मिलने के बाद सबसे ज्यादा खुशी किसे हुई?
बनर्जी – हम दोनों को, दोनों को बराबर खुशी हुई लेकिन मुझे लगता है वो हमसे ज्यादा एक्स्प्रेसिव है।
बीबीसी – आपके और आपकी पत्नी के द्वारा लिखी गई किताब “गुड इक्नोमिक्स और हार्ड टाइम्स” के लिखने के पीछे की क्या कहानी है ?
बनर्जी – जो अर्थशास्त्रियों द्वारा लिखे गए पेपर हैं और जो अखबारों में छपते हैं इन दोनों की कहानी अलग है, अखबारों के दृष्टिकोण अलग हैं। इसके बाद मुझे इस पर कुछ अजीब लगा और मुझे बहुत चिंता हुई। इस वजह से लोग सोचते हैं कि अर्थशास्त्री तो बेवकूफ़ होते हैं । इसलिए लिखा कि हमलोग बेवकूफ़ नहीं हैं ।
बीबीसी – भारत की वर्तमान अर्थव्यवस्था पर आप क्या सोचते हैं?
बनर्जी – चिंताएँ कई हैं। इस वक़्त निवेश की दर काफ़ी धीमी हो गई है। आम लोगों की समझ के लिए अनुमान होता है जो प्रत्येक वर्ष परिवर्तित होता है। 2014-15 में जो था उसकी अपेक्षा 2017-18 में यह दर कम हुई है जो काफी चिंतनीय है।
बीबीसी – आप अगर सलाह देंगे जो इस वक़्त वित्तमंत्री और मोदी सरकार की पूरी टीम को क्या सलाह देंगे, आप नोबेल प्राइज़ से सम्मानित हैं?
बनर्जी – मैं सलाह दूंगा कि अभी हमारे पास कई अच्छे प्रोफेशनल्स हैं रघुराम राजन, गीता गोपीनाथन आदि इनसे बात कीजिए, इन लोगों से काफी अच्छे सुझाव मिल सकते हैं।
बीबीसी – रघुराम राजन साहब तो थे लेकिन वह तो चले गए, वह किन परिस्थिति में गए वो भी सुर्खियों में था?
बनर्जी – (हाँ) वो सब है लेकिन जब देश की अर्थव्यवस्था खतरे में है तो सबको एक साथ मिलकर कुछ नए तरीके से सोचना चाहिए ।
बीबीसी – यह आप मान रहे हैं कि देश खतरे में है ?
बनर्जी – वाकई देश इस वक़्त खतरे में है, मैं सिर्फ यही नहीं बोल रहा हूँ कि इकॉनमी पूरा बंद हो गया है हो सकता है ये प्रतिशत फिलवक़्त 5-10% ही हो लेकिन इन सबके बाद जो लक्षण दिख रहे हैं वो कई चिंता का विषय है ।
बीबीसी- भारत सरकार ने कुछ कदम उठाए हैं कॉर्पोरेट टेक्स को रिवाइज़ किया गया है, टैक्स स्ट्रक्चर को रीलॉक किया है कुछ समानों से जीएसटी को कम किया गया है, क्या आप सरकार के इन कदमों से संतुष्ट हैं ?
बनर्जी – कॉर्पोरेट टैक्स में काफी कमी करने से सरकार की आमदनी कम हो गई । मेरे हिसाब से ये पैसा देश के गरीबों को जाना था ।
बीबीसी – इस बात को लेकर कुछ दिनों पहले एक विवाद खड़ा हुआ था कि वरिष्ठ मंत्री पीयूष गोयल ने भी कहा प्रो बनर्जी को मुबारकबाद लेकिन उनकी लेफ़्ट लिनिंग है हम अच्छी तरह से जानते हैं, एक तरह से वो एक खास विचारधारा को खारिज करने की बात कर रहे थे । क्या इसपर आपको कोई बुरा लगा ?
बनर्जी – थोड़ा बुरा जरूर लगा ये इसलिए नहीं की देश को जब जरूरत होती है तो देश के प्रोफेशनल को इस्तेमाल करना चाहिए। इस बर्ताव से ये प्रोफेशनल्स लेफ़्टिस्ट हैं और ये जो बोलेंगे वो गलत है, तो फिर उनके सेवाओं का कोई औचित्य नहीं रहता ।
बीबीसी – एक तरफ प्रधानमंत्री आपको बधाई दे रहे हैं और दूसरी तरफ उनके मंत्री एवं सहयोगी ये कह रहे हैं कहीं न कहीं तालमेल में कमी के औपचारिकता में बस आपको बधाई दे रहे हैं ।
बनर्जी – मैं इस पर इतना नहीं सोचा।
बीबीसी – भारत में अगर आपको कोई पद (आरबीआई गवर्नर, आर्थिक सलाहकार आदि) का ऑफर किया जाए तो क्या आपकी सहमति रहेगी उस पर?
बनर्जी – देश को यदि कोई ज़रूरत है तो सलाह तो मैं देने को तैयार हूँ लेकिन मुझे अभी नौकरी और बच्चे छोड़ कर यहाँ आना नहीं है। रघुराम राजन ने जो किया वो एक बड़ा त्याग था।
बीबीसी – जब यह पुरस्कार आपको मिला तो भारतीय अख़बारों ने इसे आपकी एक बड़ी उपलब्धि के रूप में देखा, जबकि आपके साथ अर्थशास्त्र में ही Esther Duflo को केवल ‘आपकी पत्नी’ के रूप में लिया गया न कि नोबेल पुरस्कार विजेता के?
बनर्जी – मुझे शुरू में तो यह काफ़ी बुरा लगा किन्तु बाद में मालूम हुआ कि फ्रांस में भी ऐसा ही हुआ है। उन्होंने लिखा कि Esther Duflo और ‘दोनों’ को पुरस्कार मिला है।

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