किसानों के हितों की रक्षा की गारंटी कौन देगा?

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शिरीष खरे

सरकारी आंकड़ों की मानें तो बीते दस वर्षों के दौरान भारत के लगभग 1,74,000 किसान आत्महत्या कर चुके हैं। इसका मतलब यह है कि हर दिन देश में औसतन 30 किसान आत्महत्या कर रहे हैं।

जबकि, भाजपानीत नरेन्द्र मोदी की सरकार इसी गारंटी पर आई थी कि वह किसानों को स्वामीनाथन आयोग की सिफ़ारिशों के अनुसार कृषि उपज के उत्पादन पर उनकी लागत का कम से कम डेढ़ गुना मूल्य देगी। 2022 तक किसानों की आय दोगुनी कर देगी। किसानों के क़र्ज़ माफ़ करेगी। प्रत्येक किसान परिवार को एक लाख रुपए तक का ब्याज़ मुक्त ऋण प्रदान करेगी। अफ़सोस कि नरेन्द्र मोदी ने इनमें से एक भी गारंटी पूरी नहीं की। दिया तो बस किसानों को धोखा।

स्थिति यह है कि कॉर्पोरेट हितों की रक्षा के लिए किसानों से बलि मांगी जा रही है। सत्ता में लौटने के छह महीने बाद ही भाजपा के नेतृत्व वाली नरेन्द्र मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि स्वामीनाथन आयोग की सिफ़ारिशों को लागू करना संभव नहीं।

इस सरकार ने वार्षिक कृषि बजट आवंटन में 30 प्रतिशत की कटौती की है। केंद्र सरकार द्वारा कृषि सब्सिडी में कटौती के कारण बीज, उर्वरक, कीटनाशक और डीज़ल जैसे अन्य कृषि इनपुट की कीमतें बढ़ गई हैं।

यह सरकार रोज़गार गारंटी योजना को धीरे-धीरे कमज़ोर कर रही है। परियोजना के लिए आवश्यक वार्षिक व्यय ₹ 2.72 लाख करोड़ है, मगर 2023-24 के बजट में केवल ₹ 73 हज़ार करोड़ आवंटित किए गए हैं। यह वास्तविक लागत का केवल एक अंश है।

किसानों का क़र्ज़ माफ़ नहीं किया गया। देश के सभी किसानों का क़र्ज़ माफ़ करने के लिए कुल 5 लाख करोड़ रूपए की ज़रूरत है। लेकिन, सरकार का दावा है कि धन की कमी के कारण यह संभव नहीं है। वहीं, इसी अवधि के दौरान कॉर्पोरेट कंपनियों के लगभग 30 लाख करोड़ रूपए के क़र्ज़ माफ कर दिए गए। हालत यह है कि किसान परिवारों का क़र्ज़ भी 30 प्रतिशत बढ़ गया। वे क़र्ज़ के दुष्चक्र में फंस गए हैं।

केंद्र सरकार ने ‘राष्ट्रीय राहत कोष’ का भी दुरुपयोग किया है। बाढ़, सूखे या इस तरह की आपदाओं के कारण अपनी फ़सल का नुक़सान झेलने वाले किसानों को कोई ख़ास राहत नहीं मिली। दूसरी तरफ़, किसानों को फ़सल बीमा में धकेला जा रहा है। कृषि फ़सल बीमा पूरी तरह से निजी कंपनियों के हाथों में है। इससे किसानों का और अधिक शोषण हो रहा है।

कृषि फसलों के बेहद कम दाम, ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोज़गारी और क़र्ज़ चुकाने के अन्य साधनों की कमी के कारण गांवों से शहरों की ओर किसानों का पलायन तेज़ हो रहा है। 2016-2023 की छह साल की अवधि में चार करोड़ लोग ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों में पलायन कर चुके हैं।

केंद्र सरकार तीन किसान विरोधी कृषि क़ानूनों को लागू करने की कोशिश कर रही है। अनैतिक संशोधन क़ानूनों के ज़रिए किसानों की मदद के लिए सरकार द्वारा गठित कृषि उपज विपणन समितियां (एपीएमसी) बंद हो रही हैं। भूमि अधिनियम में संशोधन से कंपनियों के लिए किसानों की ज़मीन पर आसानी से क़ब्ज़ा करने के अवसर पैदा हो रहे हैं।

सरकार के कड़े विरोध के बावजूद किसानों ने एक साल से अधिक समय तक दिल्ली की सड़कों पर लगातार विरोध प्रदर्शन किया था। ये ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण विरोध प्रदर्शन थे। लेकिन दुःखद बात यह है कि इस संघर्ष के दौरान महिला किसानों सहित 752 किसानों ने अपनी जान गंवा दी।

उत्तर प्रदेश के लखीमपुर-खीरी में भाजपा सांसद अजय मिश्र टेनी के बेटे द्वारा जानबूझकर शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन में गाड़ी चलाने से आठ किसानों की मौत हो गई। यह सुनियोजित कृत्य सबकी आंखों के सामने हुआ, मगर अजय मिश्र को मंत्रिमंडल से नहीं हटाया गया और न ही उनके ख़िलाफ़ कोई सख़्त कार्रवाई की गई।

किसानों को डराने और तितर-बितर करने के लिए कई दूसरे हथकंडे अपनाए गए, मगर वे टस से मस नहीं हुए। बाद में जब उत्तर प्रदेश में चुनाव नज़दीक आए तो नरेन्द्र मोदी अचानक टीवी स्क्रीन पर आए और किसानों से माफ़ी मांगी। उन्होंने तीनों क़ानूनों को वापस लेने और किसानों की अन्य मांगों को पूरा करने का वादा भी किया। केंद्र सरकार द्वारा लिखित आश्वासन दिए जाने के बाद किसान अपने घरों को लौट गए। तब से एक साल बीत चुका है, मगर मोदी सरकार ने अभी तक अपने वादों को पूरा करने का कोई संकेत नहीं दिया है।

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