मुख्य अंश
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2019 को संवैधानिक मूल्यों पर आधारित, समावेशी और भेदभाव रहित होना चाहिए : एसआईओ
- एसआईओ के राष्ट्रीय अध्यक्ष लबीद शाफ़ी ने कहा कि संस्कृत भाषा को बढ़ावा देने के लिए सरकार का आग्रह असंवैधानिक है और इसे वापस लिया जाना चाहिए।
- “यह तथ्य कि सरकार ने बहुत कम समय दिया और नीति के पूर्ण मसौदे का आठवीं अनुसूची की सभी भाषाओं में अनुवाद नहीं किया, उनकी लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए समावेशिता और सम्मान की कमी को दर्शाता है।”
नई दिल्ली | सरकार द्वारा नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2019 को अंतिम रूप देने का निर्णय एक स्वागत योग्य क़दम है। इस तरह की त्वरित कार्रवाई के दौरान यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि कार्यान्वयन प्रक्रिया में कोई कमी नहीं है और कोई भी हितधारक इससे प्रभावित नहीं है।
एसआईओ के राष्ट्रीय अध्यक्ष लबीद शाफ़ी ने कहा कि, “केंद्रीय मंत्री का यह बयान कि एमएचआरडी को 1,50,000 सुझाव मिले, यह एक अच्छा संकेत है कि लोग रुचि ले रहे हैं। हालाँकि, लगभग 1.3 बिलियन लोगों के देश में, यह संख्या नगण्य है। चूंकि सरकार का कोई विश्वसनीय और कार्यात्मक विरोध नहीं है, नागरिकों के ही समाज को सरकार के फ़ैसलों की समीक्षा करके उनके उचित कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए सक्रिय भागीदारी करनी चाहिए।”
उन्होंने कहा कि, “यह तथ्य कि सरकार ने बहुत कम समय दिया और नीति के पूर्ण मसौदे का आठवीं अनुसूची की सभी भाषाओं में अनुवाद नहीं किया, उनकी लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए समावेशिता और सम्मान की कमी को दर्शाता है।”
लबीद शाफ़ी ने मांग की कि, “संस्कृत भाषा को बढ़ावा देने के लिए सरकार का आग्रह असंवैधानिक है और इसे वापस लिया जाना चाहिए। आठवीं अनुसूची में दी गई सभी भारतीय भाषाओं के साथ-साथ धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व वाली भाषाओं में से किसी एक के लिए विशेष विचार के बिना समान महत्व दिया जाना चाहिए।”
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा तैयार करने और एनसीईआरटी पाठ्यक्रम में बदलाव के मुद्दे पर, शाफ़ी ने कहा कि, “उन्हें संवैधानिक लोकाचार को प्रतिबिंबित करना चाहिए और बहुलवादी स्वभाव, समावेशी और सामंजस्यपूर्ण जीवन को बढ़ावा देना चाहिए और छात्रों को न्यायसंगत और न्यायपूर्ण समाज के लिए तैयार करना चाहिए।”
शाफ़ी ने नई शिक्षा नीति 2019 को अंतिम रूप देने और लागू करने की प्रक्रिया में सरकार को समावेशी, लोकतांत्रिक और पारदर्शी होने का आग्रह किया।