ख़ालिद सैफ़ी ने जेल से लिखा ख़त, कहा ‘अगर सिर्फ़ अपने बारे में सोचता तो कभी जेल नहीं आता’

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सामाजिक कार्यकर्ता और यूनाइटेड अगेंस्ट हेट से जुड़े ख़ालिद सैफ़ी पिछले लगभग डेढ़ साल से जेल में बंद हैं। उन पर यूएपीए लगाया गया है। जेल से उन्होंने हाल ही में एक ख़त लिखा है, जिसे उनकी पत्नी नरगिस सैफ़ी ने सोशल मीडिया पर पोस्ट किया है। ख़ालिद द्वारा लिखा गया यह ख़त हिंदी भाषा में है, उनकी पत्नी द्वारा इसका अनूदित संस्करण सोशल मीडिया पर पोस्ट किया गया है।

हम ख़ालिद सैफ़ी द्वारा लिखे गए इस ख़त को नीचे प्रकाशित कर रहे हैं।

“सलाम साथियों! मैं यहां आप सब की दुआओं की बरकत से ख़ैरियत से हूं और उम्मीद करता हूं आप सभी ख़ैरियत से होंगे। डेढ़ साल हो गया है मुझे जेल में रहते हुए और अभी पता नहीं कितना वक़्त लगेगा! दुआ करें जल्दी बेल हो जाए।

आपसे एक मज़ेदार क़िस्सा शेयर करना चाहता हूं। आलू का चोखा, जिसे आलू की सब्ज़ी या भरता भी कहते हैं, यहां हमें नाश्ते में दो दिन खिचड़ी, दो दिन दलिया और दो दिन ब्रेड के साथ आलू का चोखा और संडे को एक आलू का पराठा मिलता है। ब्रेड चोखा सब का फ़ेवरेट है। जब मैं जेल में आया तो तीसरे दिन नाश्ते के टाइम 7:00 बजे बैरक में काफ़ी हलचल थी और सभी अपनी प्लेट लेकर वेट कर रहे थे। मेरे पूछने पर किसी ने बताया कि आज ब्रेड और चोखा आएगा इसीलिए सब इस कोशिश में है कि थोड़ा ज़्यादा मिल जाए।बहरहाल मैं वहीं बैठा रहा क्योंकि मैं व्हीलचेयर पर था, तो मुझे वहीं बैठे हुए ही मिल गया।

तीन ब्रेड स्लाइस और एक छोटा चम्मच चोखा दिया तो मैं उसे ग़ौर से देखने लगा और सोचने लगा यार इसे खाऊं, देखूं, चखूं या सूंघ कर काम चला लूं। एक निवाले का तीन ब्रेड स्लाइस के साथ आया था। कम था, लेकिन टेस्टी था, मुझे अच्छा लगा।इतनी ही क्वान्टिटी में मिला। फिर मैंने कुछ जुगाड़ बिठाया तो जो लड़का हमारे वार्ड में खाना बनाता था उससे दोस्ती की और उससे ऐक्स्ट्रा चोखा का जुगाड़ किया लेकिन ब्रेड के लिए उसने मना कर दिया, कहा कि ब्रेड गिनती से आती है। एक और जान-पहचान वाले से कहा जो दूसरे वार्ड में था, क़िस्मत से वहां ब्रेड का जुगाड़ हो गया। अब हफ़्ते में दो दिन पेट भर कर नाश्ता होने लगा। साथ ही साथ एक दो दोस्त की दावत भी कर देता था। कुछ महीनों के बाद चोखा आना बंद हो गया।पहले लगा लॉकडॉउन की वजह से बंद हुआ है, जब काफ़ी दिन तक चोखा नहीं आया और सूखी ब्रेड खानी पड़ रही थी तो मैंने बहुत लोगों से कहा कि चलो अथॉरिटी से इसकी शिकायत करते हैं, लेकिन कोई तैयार नहीं हुआ। फिर एक दिन मैं अकेले ही असिस्टेंट सुप्रिटेंडेंट के पास गया और शिकायत की। उन्होंने कहा कि वे पता करके बताएंगे क्यों बंद हो गया है!

शाम को उन्होंने बताया कि आलू मैश करने वाला घोटा टूट गया है इसीलिए चोखा नहीं बन रहा है। मैंने कहा सर वह तो बहुत मामूली चीज़ है, मंगवाते क्यों नहीं है लंगर वाले? उन्होंने कहा कि जल्दी हो जाएगा। लेकिन कई बार रिमाइंडर के बाद भी नहीं  हुआ। इस सब में कई महीने बीत गए लेकिन चोखा नहीं आया। जिस दिन ब्रेड आती थी तो सब उम्मीद करते थे कि शायद चोखा भी आएगा, लेकिन नहीं आता था।

एक दिन जेल सुप्रिटेंडेंट पूरी टीम के साथ राउंड पर आईं। वह बहुत ईमानदार और काबिल ऑफ़िसर हैं। मैंने उनके सामने चोखा ना मिलने की बात कही और बताया पिछले तीन-चार महीने से नहीं मिल रहा है। यह सुनते ही वह हैरान हो गईं और कहा कि आपने पहले क्यों नहीं बताया! मैंने उनसे कहा कि आपके स्टाफ़ को कई बार बोला लेकिन कुछ नहीं हुआ। उन्होंने डिप्टी सुप्रिटेंडेंट से पूछा, उन्होंने अपने असिस्टेंट सुप्रिटेंडेंट और उन्होंने अपने नीचे वालों से, लेकिन किसी के पास कोई जवाब नहीं था। मैडम ने वहां प्रॉमिस किया कि अगली बार से चोखा ज़रूर आएगा। मैडम वहां से सीधे लंगर गईं और वहां ऊपर से नीचे तक जितने लोग काम कर रहे थे सबको उनकी इस लापरवाही के लिए ख़ूब डांटा।

दो दिन बाद ब्रेड के साथ चोखा आया तो पूरी जेल में चर्चा होने लगी। थोड़ी देर में ही सबको पता चल गया कि ख़ालिद भाई ने मैडम से शिकायत की थी, उसके बाद ही चोखा आना शुरू हुआ है। बहुत से लोग मुझे मिले तो शुक्रिया कहने लगे। उसी दिन शाम को जेल के कुछ सीनियर लोग (मतलब भाई लोग) एक जगह मुझे मिले और कहने लगे ख़ालिद भाई आपको क्या ज़रूरत आन पड़ी थी शिकायत करने की, अब जिस-जिस को मैडम ने डांटा है वे सब आपके पीछे पड़ जाएंगे। अगर आपको कुछ खाना था तो हमें बता देते, हम बनवा देते।

मैंने कहा भाई मसला मेरा अपना नहीं है। मैं तो जुगाड़ कर लेता हूं या कैंटीन से ख़रीद कर खा लेता हूं। लेकिन जेल में 80 लोग ऐसे हैं जो सिर्फ़ वही खाते हैं जो यहां लंगर से मिलता है। उनके लिए आवाज़ उठाई थी। अब बाक़ी जो होगा देखा जाएगा। उन्होंने कहा भाई आप अपना देखो, दूसरों को रहने दो। मैंने मन-ही-मन सोचा कि अगर सिर्फ़ अपने बारे में सोचता तो कभी जेल नहीं आता। उसके बाद जेल के ऐडमिनिस्ट्रेशन से भी बहुत रिस्पेक्ट मिलने लगी। जो जेल में ग़रीब साथी हैं, वो भी अब अपनी परेशानियां लेकर आते रहते हैं, जिसकी जितनी हो सकती है, मदद करने की कोशिश करता हूं।

आज सुबह ब्रेड चोखा खाया तो ख़्याल आया कि यह लिख देता हूं।

दुआओं में याद रखिएगा।

आपका भाई

ख़ालिद सैफ़ी

अल्लाह हाफिज़

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