क्या बदला हुआ तालिबान अफ़ग़ानिस्तान को भी बदल पाएगा?

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Map of Afghanistan.

लगातार बढ़ते हुए भ्रम और अनिश्चितताओं के बीच रविवार की शाम 15 अगस्त 2021 को तालिबानी लड़ाके काबुल में राष्ट्रपति भवन में आराम से दाख़िल होते हुए देखे गए और व्यावहारिक रूप से उन्होंने अफ़ग़ानिस्तान पर नियंत्रण कर लिया। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी कुछ भी ग़लत नहीं होने का आश्वासन देने के कुछ ही घंटों के भीतर देश से भाग गए।

जैसे ही सरकार और क़ानून प्रवर्तन अधिकारियों ने अपने पदों को छोड़ना शुरू किया और ग़ायब हो गए, काबुल के आसपास के तालिबान लड़ाके शहर में दाख़िल हो गए और जेलों, पुलिस स्टेशनों और राष्ट्रपति भवन पर नियंत्रण कर लिया।

तालिबान का सत्ता में वापस आना महीनों से नहीं तो कुछ हफ़्तों से तो निश्चित लग ही रहा था। लेकिन जिस गति से काबुल में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त सरकार झुकी और फिर उस समूह के सामने आत्मसमर्पण कर दिया जिसे दो दशक पहले अमेरिका के नेतृत्व वाले आक्रमण से सत्ता से बाहर कर दिया गया था, उसने दुनिया को आश्चर्यचकित कर दिया। और इसने तत्काल कई सवाल खड़े कर दिए कि आक्रमण क्यों हुआ था और इससे क्या कुछ हासिल किया गया था?

हाल ही में अमेरिकी सरकार के एक ऑडिट के अनुसार, पिछले 20 वर्षों में अकेले अमेरिका ने अफ़ग़ानिस्तान में 144 अरब डॉलर ख़र्च किए हैं। 88 अरब डॉलर देश भर में 300,000 सैनिकों के साथ एक मज़बूत अफ़ग़ान सैन्य बल की स्थापना, प्रशिक्षण और हथियारों पर ख़र्च किए गए थे जिन्होंने तालिबान की वापसी के कुछ हफ़्तों के भीतर ही आत्मसमर्पण कर दिया।

मज़ेदार बात यह है कि पेंटागन के अधिकारी कुछ दिन पहले तक इस बात पर ज़ोर दे रहे थे कि उनके द्वारा प्रशिक्षित अफ़ग़ान सेना महीनों तक टिक सकती है, और यह कि काबुल ख़ुद अधिक समय तक गंभीर दबाव में नहीं आएगा, और तालिबान और अमेरिका समर्थित सरकार के बीच सत्ता के बंटवारे के समझौते को अंतिम रूप देने में पर्याप्त समय लग जाएगा।

लेकिन दुनिया ने देखा कि जैसे-जैसे पिछले कुछ दिनों में हार की आशंका जताई जाने लगी, अफ़ग़ानिस्तान की पेशेवर सेना ने अपने पदों को छोड़ना शुरू कर दिया और तालिबान को अपने ठिकानों और अमेरिका से ख़रीदे गए हथियारों, वाहनों और अन्य उपकरणों का नियंत्रण वस्तुतः सौंप दिया। इसके लिए कुछ हद तक अचानक अमेरिकी सैन्य वापसी से पहुंचे मनोवैज्ञानिक आघात को ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है, और आने वाले समय में बहुत कुछ कहा जाएगा कि अगर बिडेन प्रशासन वापसी के लिए अपनी तयशुदा समय सीमा पर नहीं टिका होता तो क्या हो सकता था! लेकिन अगर विदेशी सैन्य बलों की मौजूदगी ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त सरकार को सत्ता में बनाए रखे हुए थी, तो इसकी वैधता और अफ़ग़ान समाज में इसकी जड़ों की गहराई के बारे में और क्या कहा जाना चाहिए?

बेहतर या बदतर के लिए, तालिबान अफ़ग़ानिस्तान पर नियंत्रण के साथ वापस आ गया है, और उनकी इस जीत के साथ अच्छी तरह शासन चलाने की ज़िम्मेदारी भी उन पर आती है। पिछले एक दशक में, तालिबानी अधिकारियों और प्रवक्ताओं ने सार्वजनिक रूप से यह रुख़ अपनाया है कि वे पुराने तालिबान नहीं हैं। उनके सार्वजनिक बयान इस अहसास का संकेत देते हैं कि उन्होंने अतीत में ग़लतियां की होंगी, कि शायद वे अत्यधिक क्रूर और असहनीय भी थे।

यहां तक कि जब उन्होंने पिछले कुछ हफ़्तों में शहरों और प्रांतों पर नियंत्रण कर लिया है, तालिबान के प्रवक्ताओं और नव-नियुक्त क्षेत्रीय गवर्नरों ने समान रूप से आश्वासन दिया है कि लड़कियों को स्कूलों में जाने से नहीं रोका जाएगा, और न ही महिलाओं को काम पर जाने से रोका जाएगा, और यह कि विदेशी सैन्य बलों, सहायता एजेंसियों और अफ़ग़ान सरकार के साथ काम करने वाले अफ़ग़ानों के ख़िलाफ़ कोई प्रतिशोध नहीं होगा। यह देखा जाना बाक़ी है कि क्या ये बयान महज़ जनसंपर्क रणनीति है या तालिबान की नीति में वास्तविक बदलाव के संकेत हैं!

अभी तक यह भी स्पष्ट नहीं है कि तालिबानी नेतृत्व का ज़मीन पर मौजूद उनके लड़ाकों पर प्रभावी नियंत्रण है या नहीं! दो दशकों में एक भूमिगत आंदोलन (underground movement) के रूप में, तालिबान अपने विकेन्द्रीकृत ढांचे (decentralized structure) के कारण बच गया। यह आंदोलन संगठनात्मक ढांचे के बजाए संरक्षण, रिश्तेदारियों और स्थानीय संबंधों के माध्यम से अपना अस्तित्व बनाए रख सका। आधिकारिक निर्वाचित अमीर और तालिबान के नेता मुल्ला बरादर और दोहा में उनके राजनायिकों को यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके द्वारा किए गए निर्णयों और समझौतों का सम्मान आंदोलन के भीतर विभिन्न गुटों और समूहों के साथ-साथ ज़मीन पर मौजूद लड़ाकों के द्वारा भी किया जाएगा। इसके बिना एक युद्धग्रस्त देश में क़ानून के शासन और बुनियादी स्थिरता को स्थापित करना असंभव होगा।

तालिबानी नेतृत्व इस तथ्य से भी अच्छी तरह अवगत होगा कि सिर्फ़ इसलिए कि अशरफ़ ग़नी सरकार के पास कोई वास्तविक वैधता नहीं थी, इसका मतलब यह नहीं है कि तालिबान को स्वचालित रूप से लोकप्रिय समर्थन प्राप्त है। वे अफ़ग़ान समाज के विभिन्न वर्गों के साथ किस प्रकार का व्यवहार करते हैं, जिसमें वहां के कई जातीय अल्पसंख्यक और बड़ी संख्या में अफ़ग़ान शामिल हैं, जो इस्लाम की उस व्याख्या को नहीं मानते जो तालिबान करता है, यह आने वाले समय में बहुत कुछ तय करेगा।

तालिबान ने एकध्रुवीय दुनिया (unipolar world) के ख़ात्मे में योगदान देकर और तथाकथित ‘अमेरिकी सदी’ में स्वयं अमेरिका जैसी महाशक्ति की सीमाओं को बता कर इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान बनाया है। लेकिन अब तालिबान क्या करता है, यह और अधिक महत्वपूर्ण है। उन्हें यह चुनना होगा कि क्या उन्हें अमेरिकी महाशक्ति के पतन के लंबे अध्याय में एक फ़ुटनोट के तौर पर शामिल किया जाएगा, या वे एक ऐसी ताक़त बनकर उभरेंगे जो दशकों से युद्ध और संघर्ष झेलते हुए एक खंडित समाज को एक साथ लेकर आए हैं। तालिबान अब इतिहास की नज़र में है।

– फ़वाज़ शाहीन

अनुवाद: तल्हा

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