[स्त्री विमर्श] SULLI DEALS, महिलाओं के विरुद्ध ऑनलाइन हिंसा और समाज की ख़ामोशी

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21 वीं सदी के भारत में तकनीकी प्रगति और महिलाओं के विरुद्ध हिंसा दोनों साथ-साथ चल रहे है। और हिंसा भी एक ही तरह नहीं बल्कि अलग-अलग प्रकार से महिलाओं का उत्पीड़न किया जा रहा है। चाहे वह कार्यालय, कोई अन्य सार्वजनिक स्थान या सोशल मीडिया ही क्यों न हो, हर जगह महिलाओं के प्रति हिंसा और महिला उत्पीड़न एक बड़ा मुद्दा बन चुका है।

ज़्यादातर महिलाएं जो आज साक्षर हैं, वे भी इस अत्याचार का निशाना बनती हैं। आज भारत की लगभग 65 प्रतिशत से ज़्यादा महिलाएं साक्षर हैं और सोशल मीडिया का इस्तेमाल भी कर रही हैं। आप ये जानकर हैरान होंगे कि इनमें लगभग 60 प्रतिशत महिलाएं आये दिन सोशल मीडिया पर हिंसा का शिकार हो रही हैं। ये हिंसा भले ही शारीरिक न हो लेकिन मानसिक उत्पीड़न भी हिंसा का ही एक रूप है।

एक सर्वे के अनुसार 39 प्रतिशत महिलाओं के साथ ऑनलाइन हिंसा की घटनाएं फ़ेसबुक पर, 23 प्रतिशत महिलाओं के साथ इंस्टाग्राम पर और 14 प्रतिशत महिलाओं के साथ व्हाट्सएप इत्यादि जैसी बहुत-सी सोशल साइट्स पर होती है।

2020 में दिल्ली में हुए एक सर्वे से पता चला कि 100 पुरुष जो सोशल मीडिया पर महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा करते हैं उनमें से सिर्फ़ 25 को ही सज़ा मिल पाती है। जो महिलाएं समाज सेवा का काम कर रही हैं, पत्रकार हैं या ज़ुल्म के ख़िलाफ़ आवाज़ उठा रही हैं, उन सभी महिलाओं को कहीं-न-कहीं इस हिंसा का सामना करना पड़ रहा है।

न सिर्फ़ हमारा समाज बल्कि सोशल मीडिया भी महिलाओं को एक प्रोडक्ट की तरह देखने लगा है। इंटरनेट कंपनियों के अल्गोरिदम न सिर्फ़ महिलाओं के साथ भेदभाव करते हैं बल्कि महिलाओं को एक उत्पाद में भी बदलना चाहते हैं। जो महिला सोशल मीडिया पर ज्ञान, इंसाफ़ की बातें करती है उसके फ़ॉलोअर्स की संख्या उतनी नहीं होती जितनी एक मॉडल के फ़ॉलोअर्स की होती हैं। इसी तरह, इसी अल्गोरिदम के सहारे अश्लील कंटेंट भी तेज़ी से प्रमोट होते हैं जबकि ज्ञान और जानकारी भरे कंटेंट को ज़्यादा लोगों तक पहुंचने में अधिक समय लगता है।

सोशल मीडिया पर व्यूज़ और लाइक्स की तुलना आप टीवी चैनलों की टीआरपी से कर सकते हैं और दोनों में जो एक बात सामान्य है वो ये कि आपका कंटेंट जितना चीप यानी घटिया होगा आपको टीआरपी और फ़ॉलोअर्स भी उतने ही ज़्यादा मिलेंगे। यही सोशल साइट्स के पूंजी का माध्यम बन चुका है।

हाल ही में सैकड़ों मुस्लिम महिलाओं की तस्वीरें ‘सुल्ली डील्स’ के नाम से एक ऐप के ज़रिए वायरल और नीलाम की जा रही थीं। मुस्लिम महिलाओं का अपमान करने के लिए यह ऐप बनाया गया था, जिस पर दिल्ली महिला आयोग ने ‘सुल्ली डील्स’ ऐप विवाद में दिल्ली पुलिस को अब नोटिस भेजा है। इस ऐप पर अनेकों मुस्लिम महिलाओं की तस्वीरें बिना उनकी इजाज़त के अपलोड की गई थीं। दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने इस मामले में एफ़आईआर दर्ज की है।

इस ऐप में इस्तेमाल की गई मुस्लिम महिलाओं की जानकारी ट्विटर से ली गई थी। इसमें तक़रीबन 80 से ज़्यादा महिलाओं की तस्वीर, उनके नाम और ट्विटर हैंडल दिए गए थे। ऐप में सबसे ऊपर पर लिखा था – ‘फ़ाइंड योर सुल्ली डील’। इस पर क्लिक करने पर एक मुस्लिम महिला की तस्वीर, नाम और ट्विटर हैंडल की जानकारी यूज़र से साझा की जा रही थी।

एडिटर गिल्डस ऑफ़ इंडिया ने भी मुस्लिम महिलाओं, महिला पत्रकारों पर हुए इस हमले की निंदा करते हुए कहा है कि सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म का इस तरह इस्तेमाल कर महिला पत्रकारों को डराने का तरीक़ा चिंतित करने वाला है। ये एक ‘गंभीर साइबर अपराध’ है क्योंकि कुछ मुस्लिम महिलाओं की अनुमति के बग़ैर ही उनकी तस्वीरें और निजी जानकारियाँ सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म से उठा कर इस पर साझा की गई हैं, जो कि ग़लत व ग़ैर-क़ानूनी है।

एक समाज हमने ज़मीन पर बसाया और उसका बड़ा हिस्सा महिला विरोधी हो गया। एक समाज हमने हवा में बसाया और सोचा कि कम-से-कम ये डिजिटल दुनिया तो महिलाओं का सम्मान करना सीख लेगी। लेकिन अफ़सोस कि डिजिटल दुनिया में महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाली हिंसा और उनका अपमान अब सारी सीमाएं लांघने लगा है। एक्ट्रेस आएशा उमर, सोनम कपूर, आदि कई महिलाओं को भी सोशल मीडिया पर हिंसा का शिकार होना पड़ा। वर्ष 2019 के पहले तीन महीनों में फ़ेसबुक ने 220 करोड़ फ़ेक एकाउंट्स हटाए और हैरानी की बात ये है एकाउंट्स सिर्फ़ 3 महीनों के अंदर बनाये गए थे।

चाहे पुलिस में रिपोर्ट हो या साइबर क्राइम रिपोर्ट, कहीं भी महिलाओं को इंसाफ़ नहीं मिलता बल्कि उन्हें एक वस्तु समझकर नज़रअंदाज़ किया जाता है। चाहे सत्ता में बैठे नेता हों या तथाकथित नारीवादी सब अपने भाषणों में महिलाओं के लिए बोलते नज़र आते हैं लेकिन जब महिलाओं के प्रति हिंसा के आंकड़े देखते हैं या ‘सुल्ली डील्स’ जैसी घटनाएं सामने आती हैं तो चुप्पी साध लेते हैं। सोशल मीडिया पर महिलाओं के विरुद्ध दिन-प्रतिदिन बढ़ती हिंसा एक चिन्ता का विषय है जिस पर सभी बुद्धिजीवियों और समाज सुधारकों को चिन्तन करना चाहिए ताकि इसे रोका जा सके।

– ख़ान शाहीन

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