भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने संयुक्त राष्ट्र की 72वीं आमसभा को संबोधित करते हुए कहा कि संघ के गठन उद्देश्य इस पृथ्वी पर रहने वाले लोगों के कल्याण , सुरक्षा , सामाजिक व आर्थिक विकास के साथ उनके अधिकारों के बचाव लिये हुआ है l
ये पहली बार नहीं है जब संयुक्त राष्ट्र आमसभा मे किसी ने दुनिया के सबसे बड़े संघ को उसके वजूद का उद्देश्य याद दिलाया है बल्कि समय-समय पर इसकी संरचना मे सुधार और प्रासंगकिता पर सवाल उठते रहे है l
संयुक्त राष्ट्र के हालिया अधिवेशन का आयोजन उस समय हुआ है जब दुनिया मानवीय इतिहास के सबसे बुरे दौर से गुजर रही है l विभिन्न देशों मे चल रहे गृहयुद्ध , आतंकवादी संगठनो के तांडव और सरकारों द्वारा प्रायेजित नस्लीय व धार्मिक हिंसा ने विश्व के बड़े क्षेत्र मे अशांति पैदा की है l इतना ही नहीं बल्कि मानव जनित आपदाऐं जलवायु परिवर्तन , बाढ़ , भूखमरी, बेरोजगारी, आर्थिक असमानता के रुप मे आकर कई सभ्यताओं का विनाश भी कर रही है l ऐसी विषम परिस्थितियों मे वैश्विक महापंचायत से पीड़ित वर्ग को उम्मीद थी कि उनके हित मे मंथन से बढ़कर उनकी समस्या पर अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय कोई सकारात्मक समाधान की ओर बढ़ेगा l पर शायद अब संयुक्त राष्ट्र समूह से सार्थक बहस और सक्षम निर्णयों की उम्मीद करना पुरानी बात हो गई है l द्धितीय विश्व युद्ध समाप्त होने के पश्चात 1945 मे अस्तित्व मे आये संयुक्त राष्ट्र को मुख्य उद्देश्य था कि आने वाले समय मे दुनिया मे कहीं ओर युद्ध की स्थिति न बने और हर देश की स्वायत्तता की रक्षा की जाये l हालांकि अब ये आम सहमति बन गई है कि संयुक्त राष्ट्र संघ के अधिकतर निर्णय राजनीति से प्रेरित ही नहीं होते बल्कि कई बार तो उसे वीटो सदस्य देशों की सुविधानुसार कदम उठाने पड़ते हैं l
संयुक्त राष्ट्र का 72वां अधिवेशन भी किसी ठोस नतीजे के बजाय सदस्य देशों के दोषारोपण ,लांछन और वाद-प्रतिवाद का शिकार हो गया l अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सम्मेलन के मंच से उन्हीं बातों का परोस दिया जो वो अक्सर स्वंय प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कहते रहते हैं l चाहे फिर वो उत्तर कोरिया को विश्व से मिटा देने का दंभ भरना हो या ईरान के साथ हुए परमाणु समझौते को अमेरिकी इतिहास की सबसे शर्मसार घटना बताना हो l खानापूर्ति सिर्फ अमेरिका ने ही नहीं बल्कि उन्होने भी की है जिनकी विभिन्न गृहयुद्धों मे भूमिका संदेहास्पद रही है l
सऊदी अरब के विदेश मंत्री ने कहा कि कतर को चाहिये कि क्षेत्रीय शांति के लिये उसकी मांगो को स्वीकार किया जाये साथ ही यमन मे स्थायित्व के लिये विश्व समुदाय को एकजुट होना चाहिये l भारत और पाकिस्तान के प्रतिनिधियों द्वारा कश्मीर मुद्दे पर हुई नोक झोंक ने इन दोनो देशों की प्राथमिकता और प्रतिस्पर्धा के स्तर को वैश्विक समुदाय के सामने जाहिर कर दिया है l
संयुक्त राष्ट्र की आमसभा को विश्व की संसद माना जाता है l जिसको करोड़ो लोग आस्था व सम्मान की दृष्टि से देखते हैं l पिछले एक दशक मे हुई लाखों बेकसूर लोगों की हत्या व देशों के विखंडन से हर कोई निराश ही नहीं बल्कि भविष्य मे बनने वाली स्थिति को लेकर भी चिंताजनक है l हर बार ऐसे सम्मेलनों को दुनियाभर मे एक आशा की किरण के तौर पर देखा जाता है l ऐसी दशा मे मूलभूत सुविधाओं और समस्याओं पर बात होने के बजाय क्षेत्रीय और स्थानीय मुद्दों पर प्रभावहीन बहस उसके अन्दर न सिर्फ अलगाव की भावना पैदा करते हैं बल्कि अपनी सरकार के प्रति भी अविश्वास का रवैया अपनाने को मजबूर करते हैं l
अशफाक़ खान