आपके विचारों को मारने के लिए जिसने बारूद का सहारा लिया आज वो विचार अहिंसक भारत के आपके सपने को रौंदता हुआ सत्ता के गलियारों में दहाड़ रहा है!
समाज विचारों की सरहदों में बंटता जा रहा है!
आज जब गाय और मंदिर के नाम पर भीड़ किसी बेगुनाह को मार रही होती है तो आपके “असहयोग आंदोलन” की आवश्यकता प्रतीत होती है जो इन हिंसक हाथों को रोक सके!
जब देश का संविधान धर्म की राजनीति में जल रहा हो तब उसकी रक्षा में किसी भूख हड़ताली कि आवश्यकता महसूस होती है!
आपके “हरिजन” आज भी मंदिर नहीं जा सकते!
मैं जानता हूं आपके आदर्श विचारों को शुद्ध करने के लिए हैं लेकिन उनसे नालियां साफ करवाई जा रही हैं!
विचार कभी मरते नहीं हैं बस समय का खेल है वो कब फिर से विचारें जाएँ!
भारत के इस युग में शायद आपके विचार और आदर्श फिर खड़े होना चाहते हैं!उस फांसीवाद के विरुद्ध जो भारत की आत्मा को अपवित्र कर रहा है
खान इकबाल