धार्मिक स्वतंत्रता, धर्मांतरण और राज्य

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राज्य का कोई धर्म न होना और प्रशासनिक कार्यों में धर्म का प्रत्यक्ष रूप से दख़ल न होना भी धार्मिक स्वतंत्रता क़ायम रखने के लिए ज़रूरी है। यदि राज्य ने बहुलतावादी समाज में किसी एक धर्म को सरकारी धर्म का दर्जा दिया और यदि विधि निर्माण और प्रशासनिक फ़ैसले किसी विशेष धर्म के आधार पर होने लगे या सरकारों को किसी विशेष धर्म की रक्षा अथवा प्रचार की चिंता होने लगे, तो अन्य धर्मों व दर्शनों की आज़ादी का दायरा तंग होने लगेगा और नागरिकों की धार्मिक स्वतंत्रता ख़तरे में पड़ जाएगी।

गीता प्रेस ने प्रतिगामी, प्रतिक्रियावादी और सांप्रदायिक ‘हिन्दू’ का निर्माण किया है

हिंदी भाषी क्षेत्र में आरएसएस-भाजपा की सफलता में गीता प्रेस का योगदान हम भले न पहचानें, आरएसएस-भाजपा अवश्य पहचानती है और इसी अतुलनीय योगदान के लिए गांधी शांति पुरस्कार गीता प्रेस को दिया जा रहा है। गांधी शांति पुरस्कार इसलिए कि गांधी के नाम के आवरण में गीता प्रेस की प्रतिगामी भूमिका को ढका जा सके और गीता प्रेस को गांधी से जोड़कर एक बार फिर से गांधी को सनातनी हिंदू सिद्ध किया जा सके।

गीता प्रेस को ‘शांति’ पुरस्कार और ‘आल्ट-राईख’ की याद

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2018 में कारवाँ पत्रिका ने यह लेख प्रकाशित किया था। कैरोल शैफ़र ने लिखा था और इसके प्रकाशन तथा लिखे जाने की तैयारी में दसियों वर्ष की मेहनत है। यह आलेख मूलतः ‘आर्कटोस’ नामक प्रकाशन गृह पर है। इस प्रकाशन के संस्थापक ‘डेनियल फ़्रायबर्ग’ और अन्य सदस्यों की विचारधारा ने दक़ियानूसी और नफ़रत फैलाने वाली किताबों का जो कारोबार खड़ा किया है उसे पढ़ते हुए आप सकते में आ जाएँगे।

ईद-उल-अज़हा का असल पैग़ाम

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ईद-उल-अज़हा का एक बड़ा पैग़ाम ये है कि जिस तरह हम जानवर पर नियंत्रण हासिल करते हैं, उसे अल्लाह के नाम पर क़ुर्बान करते हैं और अपने लिए, दूसरे इंसानों के लिए और वंचितों और ग़रीबों के लिए उसमें हिस्सा निकालते हैं, ठीक उसी तरह उन संसाधनों पर भी नियंत्रण हासिल करें जो अल्लाह ने हमारे लिए पैदा किए हैं और उन्हें अल्लाह की मर्ज़ी के मुताबिक़ इंसानों के फ़ायदे के लिए, उनकी समस्याओं के हल के लिए इस्तेमाल करें।

मैलकम एक्स की हज यात्रा

मलिक शहबाज़ उर्फ़ मैल्कम एक्स (19 मई 1925 - 21 फ़रवरी 1965) अमेरिका के मशहूर अश्वेत नेता थे। उन्हें अश्वेत अमेरिकियों के अधिकारों हेतु आवाज़ बुलंद करने के लिए जाना जाता है। इस्लाम की शिक्षाओं से प्रेरित होकर उन्होंने इस्लाम क़ुबूल किया और 1964 में हज यात्रा करने के लिए मक्का गए। इस दौरान उन्होंने एक पत्र में अपने संस्मरण लिखे। हज यात्रा के दौरान उनके द्वारा लिखे गए पत्र का हिंदी अनुवाद प्रस्तुत है।

ईद-उल-फ़ित्र के त्योहार का दर्शन

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ईद-उल-फ़ित्र केवल सामूहिक मनोरंजन और पकवानों का अवसर नहीं है, बल्कि इसके माध्यम से जीवन के उद्देश्य की सामूहिक चेतना इस्लामी के अनुयायियों के सामूहिक अचेतन में जागृत होती है। इसी के ज़रिए मुसलमानों के बीच क़ुरआन के मानवतावादी और सार्वभौमिक मिशन और इस मिशन की प्राप्ति के लिए धर्मनिष्ठा (परहेज़गारी/तक़वा) प्राप्त करने की शुद्ध भावना हर साल ताज़ा हो जाती है।

पैग़ंबर मुहम्मद (स०) और उनके साथियों का पहला रमज़ान

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इबादत और रोज़ा का मतलब दैनिक जीवन के कामों और अन्य अभ्यासों को छोड़ देना नहीं है। अल्लाह के रसूल (सल्ल०) रमज़ान में अपने दैनिक जीवन को बाधित न करने की कोशिश करते थे, और अगर उन्हें रोज़े के दौरान कुछ करना होता, तो वह करते थे। अपने कामों में वह रोज़े के नाम पर देरी नहीं करते थे।

रमज़ान: उच्च मानवीय गुणों को निखारने का महीना

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रमज़ान में “सदक़ा-ए-फ़ित्र” और “ज़कात” की अदायगी की जाती है। इसके द्वारा इस्लाम सामाजिक व आर्थिक न्याय का व्यवहारिक उदाहरण प्रस्तुत करता है। रमज़ान के बाद ईद की नमाज़ से पहले ग़रीबों व असहायों के बीच सदक़ा-ए-फ़ित्र अदा करना अनिवार्य है ताकि वे भी अपनी ज़रूरतों को पूरा कर सकें और प्रसन्नतापूर्वक ईदगाह जाकर ईश्वर का शुक्र अदा कर सकें।

रमज़ान में आत्मा और सांत्वना की तलाश

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क़ानून व्यवस्था और दंड व पुरस्कार का आधुनिक ढांचा मानव अनुभूति और आत्मा के गहरे स्तरों से जुड़ने में विफल रहा है। इसी गहरे स्तर पर मानव से न जुड़ पाने की वजह से हर प्रकार का भ्रष्टाचार व्याप्त है। अतः रमज़ान और रोज़ा मुख्य रूप से आत्म-शुद्धि करने के साथ-साथ शरीर पर आत्मा का और पशुवत प्रवृत्ति पर मानवीयता का प्रभुत्व विकसित करने के लिए आवश्यक है। यह एक स्वस्थ समाज के निर्माण का रोडमैप हो सकता है।

नफ़्स के साथ जिहाद का महीना है रमज़ान

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नफ़्स के साथ जिहाद का महीना है रमज़ान डॉ. हसन रज़ा रोज़ा वास्तव में अपने नफ़्स (आत्म) से जिहाद है। अपने नफ़्स को क़ाबू में रखने...