आज़ादी का मतलब क्या?

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आज़ादी का सबसे बड़ा हासिल तो यही है कि हमारे शासक हमारी मुट्ठी में हैं। लेकिन इस प्रत्यक्ष दिखने वाली सच्चाई की अपनी विडंबनाएं भी हैं। सत्ता लगातार जनता को बदल रही है। उसे अपने अधिकारों के प्रति सजग, समानता के मूल्य के प्रति सतर्क और सवाल पूछने वाले सचेत नागरिक नहीं चाहिए, उसे वैसे लोग चाहिए जिन्हें वह जनता का नाम देकर एक भीड़ में बदल सके और अपने पक्ष में इस्तेमाल कर सके।

महिला सुरक्षा के खोखले दावे

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मणिपुर, पश्चिम बंगाल, राजस्थान और बिहार में महिलाओं के उत्पीड़न को लेकर देश में अभी चर्चा चल ही रही थी कि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के संकलित आंकड़ों को संसद में पेश किया गया। इसमें बताया गया है कि 2019 से 2021 के बीच तीन साल की अवधि के दौरान देश भर में 13.13 लाख से अधिक लड़कियां और महिलाएं लापता हुई हैं।

बजरंग दल की जलाभिषेक यात्रा बनी नूह में हिंसा की वजह

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राजधानी दिल्ली से सटा हरियाणा राज्य हिंसा की चपेट में है। हरियाणा के विभिन्न इलाक़ों से आने वाले कई वीडियोज़ सोशल मीडिया पर गर्दिश कर रहे हैं जिनमें यह साफ़ देखा जा सकता है कि हिंसा जान-बूझकर भड़काई जा रही है। फ़िलहाल कुछ इलाक़ों में धारा 144 लागू है और कुछ जगहों पर पूरी तरह कर्फ़्यू लगा दिया गया है। साथ ही भारी मात्रा में पुलिस बल भी तैनात किया गया है।

यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड, मुस्लिम आबादी और चार शादियों का प्रॉपगैंडा

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‘नेशनल फ़ैमिली हेल्थ सर्वे’ की रिपोर्ट यह बताती है कि एक से ज़्यादा शादियां करने का रिवाज सब से ज़्यादा ईसाईयों में (2.1%) है। मुसलमानों में 1.9%, हिंदुओं में 1.3% और अन्य कम्युनिटीज़ में 1.6% है। इसमें नोट करने की बात यह है कि मुसलमानों में यह प्रतिशत उस स्थिति में है जब उनके यहां एक से ज़्यादा शादियों की क़ानूनी रूप से अनुमति है, जबकि दूसरी कम्युनिटीज़ में क़ानूनी रूप से प्रतिबंधित है।

मणिपुर हमारी मानवीय संवेदना पर सवाल है

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क्या आज के इस आधुनिक समाज में, जहां महिला अधिकारों की बात की जाती है, जहां सरकार ‘बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ’ का नारा देती है, वहां महिलाओं का कोई मोल नहीं कि इस भयप्रद स्थिति में उनका साथ दिया जाए और आरोपियों को गिरफ़्तार कर के सज़ा दी जाए?

दक्षिणपंथ का वैश्विक उभार लोकतांत्रिक मूल्यों और समावेशी संरचना के लिए ख़तरा

भारत जैसे दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में दक्षिणपंथी पार्टी का वर्चस्व लोकतंत्र के लिए ख़तरा माना जा रहा है, जहां देश की विभिन्नता पर कुठाराघात करते हुऐ समान नागरिक संहिता जैसा क़ानून लाने की चर्चा चल रही है।

नदियां अपने राेके रास्ते को याद रखती हैं

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नदी की सेहत बिगड़ी तो तालाब से लेकर कुएं तक में जल का संकट हुआ – अतः परोक्ष और अपरोक्ष समाज का कोई ऐसा वर्ग नहीं है जो इससे प्रभावित न हुआ हो। नदी-तालाब से जुड़कर पेट पालने वालों का जब जल-निधियों से आसरा ख़त्म हुआ तो मजबूरन उन्हें पलायन करना पड़ा। इससे एक तरफ़ जल-निधियां दूषित हुईं तो दूसरी तरफ़ बेलगाम शहरीकरण के चलते महानगर अर्बन स्लम में बदल रहे हैं।

‘भगवा लव ट्रैप’ की हक़ीक़त क्या है?

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भगवा लव ट्रैप कई सालों से बार-बार चर्चा में रहा है और मुसलमानों में असंतोष पैदा करता रहा है, लेकिन इस बार इसका सहारा लेकर बड़े पैमाने पर असंतोषजनक स्थिति पैदा की गई‌। हिंदुस्तान के मिले-जुले समाज में पहले भी इस तरह की शादियां होती रही हैं, लेकिन इस बार ऐसा प्रतीत हुआ (या कराया गया) कि संघ परिवार साज़िश के तहत इस तरह की शादियां करवा रहा है।

धार्मिक स्वतंत्रता, धर्मांतरण और राज्य

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राज्य का कोई धर्म न होना और प्रशासनिक कार्यों में धर्म का प्रत्यक्ष रूप से दख़ल न होना भी धार्मिक स्वतंत्रता क़ायम रखने के लिए ज़रूरी है। यदि राज्य ने बहुलतावादी समाज में किसी एक धर्म को सरकारी धर्म का दर्जा दिया और यदि विधि निर्माण और प्रशासनिक फ़ैसले किसी विशेष धर्म के आधार पर होने लगे या सरकारों को किसी विशेष धर्म की रक्षा अथवा प्रचार की चिंता होने लगे, तो अन्य धर्मों व दर्शनों की आज़ादी का दायरा तंग होने लगेगा और नागरिकों की धार्मिक स्वतंत्रता ख़तरे में पड़ जाएगी।

पीर अली ख़ान : स्वतंत्रता संग्राम का अनाम योद्धा

अंग्रेज़ी हुकूमत ने 7 जुलाई, 1857 को पीर अली और उनके साथियों को बीच सड़क पर फांसी पर लटका दिया था। आज बिहार की राजधानी पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान के पास उनके नाम पर बना एक छोटा-सा पार्क “शहीद पीर अली ख़ान पार्क” उनकी यादगार है।