आज के वर्तमान हालात और परस्थितियों को देखकर तो यही महसूस होता है कि किसकी बात करूं हर कहानी जुल्म की एक नई दास्तान लिख रही है और यह जुल्म सिर्फ एक मुसलमान होने के कारण किया जा रहा है
आज आप सब पाठकों से डॉ कफील की कहानी पर गुफ़्तगू करने जा रहा हूँ जिन्होंने इतना जुल्म सहा और अभी तक सह रहे हैं लेकिन हुकूमत और कुछ नफरत के पालनहार देश की पहचान की एक नई इबारत गढ़ने पर तुले हुए हैं जिसका जितना अफसोस किया जाए कम है।
आपको याद होगा योगी सरकार के गोरखपुर का वो हॉस्पिटल जहां अनगिनत मासूम बच्चों को मौत निगल गई थी अनगिनत माओ ने अपने अनमोल रत्नों को खोया, ना जाने कितने माँ बाप के सपने उस हॉस्पिटल में फैली अव्यवस्था और हुकूमत की नाकामियों के कारण बर्बाद हुए और उसमें एक डॉ जिसने डॉ के भगवान के रूप कि कहावत को साबित किया उसी डॉ को उसके नेक कामों की जो सजा भुगतनी पड़ी उसके लिए हिन्दुस्तान कभी जालिमों को माफ नहीं करेगा।
2017 में गोरखपुर के बी आर डी हॉस्पिटल मे लगभग 60 बच्चों की ऑक्सीजन ना मिल पाने के कारण मौत हुई थी और उसी हॉस्पिटल का एक मामूली डॉ अलग अलग हॉस्पिटल से अपने मिलने वाले तमाम मित्रों के साथ पूरी रात मासूम बच्चों की जानो को बचाने के लिए मारा मारा फिर रहा था और बच्चों की जान बचाने की हर मुमकिन कोशिश कर रहा था जब यह खबर हिन्दुस्तान मे तेजी से फैली और पूरे हिन्दुस्तान मे योगी सरकार की आलोचना होने लगी तो उस सरकार के प्रमुख जिसे हिन्दुस्तान मे नफरत और उन्मादी भाषण देने के लिए जाना जाता है उसकी सरकार ने सबसे पहले उसी मसीहा जिसे हम डॉ काफिल के नाम से जानते हैं सस्पैंड किया और फिर गिरफतार किया जब कि उस दौरान पूरे भारत मे डॉ काफिल की खूब सराहना हुई लेकिन उसका सस्पैंड ऑर्डर और गिरफ्तारी का फरमान सिर्फ इसलिए था क्योंकि उस डॉ का नाम मुस्लिम था और यही उसका सबसे बड़ा गुनाह साबित हुआ और फिर योगी सरकार ने एक जांच एजेंसी बेठा दी।
पूरे आठ महीने डॉ साहब जैल मे रहे सोचिए आपकी पत्नी बच्चों ने उन आठ महीनों मे कितने जुल्म सहे होंगे और अभी तक सह रहे हैं और इनका पूरा परिवार डॉ साहब की ज़मानत के लिए कोर्ट के दरवाजे पर गुहार लगाता रहा हिन्दुस्तान के कोर्ट के हालात से आप सभी वाकिफ़ हैं और अंत मे अप्रैल 2018 मे डॉ साहब को ज़मानत मिल ही गई उधर जांच एजेंसी कछुए की चाल से भी ज्यादा धीरे धीरे जांच करती रही लेकिन डॉ साहब की गुहार पर हाई कोर्ट ने 10 जून 2018 को जांच को जल्दी पूरी करने का और रिपोर्ट पेश करने का फरमान सुनाया और अप्रैल 2019 मे जांच पूरी हुई रिपोर्ट पेश हुई और उसके छ: महीने बाद रिपोर्ट डॉ साहब को मिली और उस रिपोर्ट मे डॉ साहब के काम और बच्चों की जिंदगी को बचाने के लिए उनकी तरफ से की गई कोशिशों के लिए रिपोर्ट मे डॉ साहब की प्रशंसा की गई थी यानी डॉ साहब अगस्त 2017 से October 2019 तक हुकूमत के जुल्म को सहते रहे
फिर एक बार और डॉ साहब चर्चा मे आए जब बिहार मे बाढ़ आयी और लाखो लोगों की जिंदगी को बर्बाद कर गई और बिहार मे डॉ साहब ने फिर एक बार अपना मसीहा होने का रूप दिखाया और मेडिकल कैम्प के माध्यम से आप बिहार की जनता की सेवा करते रहे।
लेकिन जब केंद्र सरकार काले कानून लाकर देश की एकता भाइचारे को मिटाने देश की “वसुदेव कुटुंबकुम” की भावना के साथ खेलती है, जिसके खिलाफ पूरे हिन्दुस्तान मे सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन होते हैं और इसी आंदोलन मे जब डॉ साहब भी एंट्री करते हैं।
डॉ साहब अलीगढ मे 12 दिसंबर 2019 को छात्रों के द्वारा दिये जा रहे एक धरने मे छात्रों द्वारा बुलाए जाने और छात्रों को समर्थन देने धरना स्थल पहुंचे जहां उनके साथ स्वराज पार्टी के योगेन्द्र यादव भी साथ थे। डॉ साहब इन काले कानूनों के खिलाफ छात्रों को संबोधित करते हैं उसके साथ ही योगेन्द्र यादव भी संबोधित करते हैं। 13 दिसम्बर 2019 को डॉ साहब के खिलाफ भड़काऊ भाषण देने के लिए अलीगढ़ के थाना सिविल लाइन में मुकदमा दर्ज किया जाता है और इसी मुक़दमे के तहत उत्तरप्रदेश की पुलिस UPSTF द्वारा 29 जनवरी को मुंबई एयरपोर्ट से डॉ साहब को अरेस्ट कर लिया जाता है।
डॉ साहब को उनकी टीम की कोर्ट की मदद मिलती है और आपको कोर्ट द्वारा 10 फरवरी 2020 को 60 ,60 हजार के दो बेल बॉन्ड शर्त के साथ भरवा कर ज़मानत दे दी जाती है। लेकिन उन्हें जैल प्रशासन द्वारा रिहा नहीं किया जाता है। जब उनकी टीम को 72 घंटे बाद इस बात की जानकारी मिलती है, तो पता चलता है कि मथुरा उत्तरप्रदेश पुलिस द्वारा उन पर NSA के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है जिससे उनकी बेल पर रोक लगायी गयी है।
यह कानून डॉ साहब पर इसलिए लगाया गया कि ताकि पुलिस को यह ना बताना पढे की क्यूँ गिरफ्तार किया है और ज़मानत भी ना मिल सके।
क्या हमारे मुल्क मे कोई संविधान भी है या नहीं? योगेन्द्र यादव से जब पूछा गया कि क्या हकीकत मे डॉ कफ़ील साहब ने कोई भड़काऊ भाषण दिया था तो योगेन्द्र यादव का कहना है कि उन्होंने भड़काऊ भाषण तो बहुत दूर एक शब्द और एक अक्षर भी गलत नहीं बोला।
दिल्ली पुलिस भारतीय पुलिस का रोल ना निभा करके इस्राइल की पुलिस की भूमिका निभा रही है।
यह जुल्म ही नहीं जुल्म की इन्तेहा है केंद्र की सरकार मे एक मंत्री गोली मारो जैसे बयान एक आम सभा मे जारी करता है उन पर कोई कार्यवाही नहीं, प्रवेश वर्मा जैसे नेता शाहीन बाग, जामिया, और एएमयू, देवबंद, नदवा जैसे देश के नामी गिरामी संस्थान के होनहार और देश का भविष्य बनने वाले छात्रों को आंतकवादी और पाकिस्तानी ग़द्दार, देश द्रोही होने का सर्टिफिकेट बांटते नजर आते हैं लेकिन उन पर कोई कार्यवाही नहीं होती है।
संसद मे देश के प्रधानमंत्री के खिलाफ खुल्लम खुल्ला बोला जाता है। कार्टून बनाए जाते हैं, गाने लिखे जाते, उन पर कोई कार्यवाही नहीं बल्कि कार्यवाही देखने को मिलती है बिदर की उन मासूम बच्चियों और उनकी माओं और स्कूल की हेडमिस्ट्रेस पर देशद्रोही कार्यवाही देखने को मिलती है। पुड्डुचेरी की हमारी उस गोल्ड मेडल जीतने वाली बहन पर जिसे हिजाब के कारण और मुस्लिम होने के कारण राष्ट्रपति से सम्मान नहीं लेने दिया जाता है ताकि कहीं वो प्रेसीडेंट ऑफ इंडिया के सामने कहीं CAA, NRC, NPR. का विरोध ना करदे, कार्यवाही होती है। देश के होनहार स्टूडेंट्स मे शुमार शरजिल इमाम पर जिसके बयान को तोड़ मरोड़ कर पेश किया जाता है और जैल मे डाल दिया जाता है। जबकी एक राम भक्त भारी भीड़ मे प्रदर्शनकारियों पर पुलिस की मौजूदगी मे पुलिस की शह पर लोगों पर गोलियां चलाता है उस पर रासुका नहीं लगता है।
पुलिस के कुछ गुंडे यूनिवर्सिटी के कैम्पस मे जबरदस्ती घुस कर लाइब्रेरी मे पढ़ने वाले मासूम छात्रों पर लाठियां भांजती है, उन पर कोई कार्यवाही नहीं होती। उत्तरप्रदेश मे पुलिस की बर्बरता से कई नौजवान मौत के शिकार हो जाते हैं और कई नौजवान घायल हो जाते हैं। उन पर कोई कार्यवाही नहीं होती है तो फिर इसे क्या कहें? यह ना इन्साफी नहीं तो क्या है? यह जुल्म नहीं तो क्या है?
तब मुझ जेसे लोगों को यह लिखने पर मजबूर होना पढ़ता है कि मोदी, अमित शाह और योगी के भारत मे शायद मुसलमान होना ही अपने आप मे एक बहुत बड़ा गुनाह हे और सबसे बड़ा गुनाह है…
Haidar Ali Ansari
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