देश जब अंग्रेज़ों के अधीन था तो हज़ारों छात्र अपने कॉलेज और कैम्पस से निकलकर स्वतंत्रता आंदोलन का हिस्सा बने, क़ुर्बानियां दीं, जेलों में गए, लाठियां खाईं और आज़ादी की सुबह तक संघर्ष किया।
स्वतंत्रता के बाद देश ने अपना संविधान रचा, लोकतांत्रिक विचारधारा पर देश की बुनियाद रखी गई और फिर देश को प्रगति के पथ पर ले जाने का संकल्प लिया गया। छात्र संगठनों ने भी नए विचार और नए उद्देश्यों के साथ अपनी स्थापना की और अपना विस्तार करना शुरू किया।
देश में बहुत से छात्र संगठन ऐसे हैं जिनका दावा है कि वे स्वतंत्रता के पूर्व से ही भारत भूमि की आज़ादी के लिए संघर्ष करते रहे हैं। कुछ छात्र संगठनों का कहना है कि वे आज़ादी से पहले के हैं तो कुछ संगठनों का ये दावा है कि वे आज़ादी के बाद सबसे पहले छात्र संगठन हैं। देश के एक छात्र संगठन का तो यह भी दावा है कि वह दुनिया का सबसे बड़ा छात्र संगठन है।
इन्हीं दावों के बीच आइए जानते हैं देश के उस छात्र संगठन के बारे में जो दावों से परे वास्तविकता के धरातल पर लोकतांत्रिक बुनियादों पर देश में एकता, अखंडता और भाइचारे को समाज में स्थापित करने के उद्देश्य से पिछले 39 वर्षों से काम कर रहा है।
मैं बात कर रहा हूं स्टूडेंट्स इस्लामिक ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ़ इंडिया (एस आई ओ) की जो आज अपना 39वां स्थापना दिवस मना रहा है। एस आई ओ की स्थापना 1982 में हुई थी जो छात्रों और युवाओं को समाज के नवनिर्माण के लिए संगठित करने का दावा करता है।
राष्ट्र निर्माण, लोकतंत्र और भाईचारा
भारत में जितने भी छात्र संगठन काम करते हैं उनमें से अधिकतर का दावा लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा, राष्ट्र प्रेम, सौहार्द, चरित्र निर्माण या राष्ट्रवादी सिद्धांतों के इर्द गिर्द घूमता नज़र आता है। हालांकि जब हम इन छात्र संगठनों के इतिहास और वर्तमान पर नज़र डालते हैं तो इन संगठनों में न तो लोकतंत्र दिखाई देता है, न सौहार्द के दर्शन होते हैं, न चरित्र निर्माण की बातें और न बंधुत्व की छाया नज़र आती है।
अधिकतर छात्र संगठनों का कोई ठोस वैचारिक सिद्धांत नज़र नहीं आता। वे या तो किसी पार्टी के नेता की जयकार करते हैं या फिर किसी दूसरे के एजेंडे पर चलते हुए विभिन्न मुद्दों पर विरोध और समर्थन के बीच उलझकर अपनी जवानी, समय और पैसा क़ुर्बान करने में व्यस्त रहते हैं।
दूसरी तरफ एस आई ओ ठोस सिद्धांतों पर निर्मित मज़बूत वैचारिक संगठन है जो कहता है कि सभी मानव आदम की संतान हैं और यही उसका समानता का सिद्धांत है। इसी समानता के सिद्धांत पर एस आई ओ देश में सभी छात्रों और युवाओं के अधिकारों के लिए संघर्ष करती है। यहां जातिवाद का कोई स्थान नहीं है। यहां वर्ण का विचार नहीं है। यहां भेदभाव नहीं है। यहां केवल प्रेम और सौहार्द के लिए सार्थक प्रयास है।
एस आई ओ ने कैम्पस में लोकतांत्रिक मूल्यों को बढ़ावा देने, विभिन्न वैचारिक संगठनों के बीच परस्पर संवाद स्थापित करने, छात्रों के मुद्दों के लिए सकारात्मक और रचनात्मक राजनीति की दिशा निर्धारित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
अगर यह कहा जाए कि कॉलेज कैम्पस लोकतंत्र की प्रयोगशाला हैं तो एस आई ओ ने 39 वर्षों में इस प्रयोगशाला में राजनीति, लोकतंत्र, बंधुत्व, भाईचारे और परस्पर संवाद का जो प्रयोग किया है, वह संविधान की प्रस्तावना और मूलभावना के बिल्कुल अनुरूप है।
एक प्रकार से देखा जाए तो एस आई ओ इकलौता छात्र संगठन है जो अपने सिद्धांत और व्यवहार में संविधान की प्रस्तावना पर बिल्कुल खरा उतरता है। अगर यूं कहें कि एस आई ओ ही ऐसा छात्र संगठन है जिसमें लोकतंत्र की आत्मा है, जो संविधान का प्रतिबिंब है, जो भाईचारे का ध्वजवाहक है और जो छात्र अधिकारों के लिए संघर्ष का प्रतीक है तो ग़लत न होगा।
सबको एकता और समानता के सूत्र में पिरोने वाला संगठन
जिस प्रकार भारत की मिट्टी में जातिवाद लोगों के व्यवहार और चरित्र में घुला हुआ है, उसी तरह देश के छात्र संगठन भी इससे अछूते नहीं हैं। इन संगठनों में भी इसका व्यवहारिक स्वरूप दिखाई देता है। मगर एस आई ओ की बात करें तो यहां न कोई जातिवाद है और न क्षेत्रवाद, न रंग भेद है न वर्ण की लड़ाई। एस आई ओ एकेश्वरवाद की बुनियाद पर सभी इंसानों को एक मानते हुए समानता के व्यवहारिक सिद्धांतों पर काम करता है।
कोई भी छात्र, किसी भी क्षेत्र का रहने वाला अपने चरित्र, संघर्ष और अपने नेतृत्व क्षमता के बल पर एस आई ओ में किसी भी पद पर पहुंच सकता है।
एस आई ओ ने देश को छात्र संगठन के नये मायने दिये हैं
आम तौर पर छात्र संगठन किसी मुद्दे पर सत्ता के विरोध में अराजकता का रास्ता अपनाते हैं, तोड़-फोड़ करते हैं, सार्वजनिक संपत्ति को नुक़सान पहुंचाते हैं और विरोध में हिंसा का रास्ता अपनाने में नहीं चूकते। मगर एस आई ओ अपनी स्थापना के इन 39 वर्षों के इतिहास में कभी भी किसी हिंसा में संलिप्त नहीं रहा, किसी संपत्ति को नुक़सान नहीं पहुंचाया और कभी क़ानून व्यवस्था में किसी प्रकार की बाधा उत्पन्न नहीं की।
एस आई ओ ने अपने 39 वर्षों के इतिहास में विभिन्न धर्मों के युवाओं के बीच संवाद स्थापित करने का माहौल बनाने का काम किया है। इस संगठन ने बाढ़ में, सूखे में, महामारी में, कोरोना में, प्राकृतिक आपदा में और अन्य किसी भी संकट के समय में धर्म, आस्था और जाति के विभेद के बिना देश-भर में अपने कैडर के माध्यम से जनसेवा का अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किया है।
यह देखा गया है कि जो छात्र संगठन भारत को एक मज़बूत राष्ट्र बनाने की बात करते हैं वो न तो अपने संगठन को मज़बूत बना पाते हैं और न कैम्पस में मौजूद अन्य छात्र संगठनों के साथ बेहतर सम्बंध स्थापित कर पाते हैं। मगर एस आई ओ ने देशभर के कैम्पस में विभिन्न संगठनों, धर्मों, आस्तिक और नास्तिक व्यक्तियों और समूहों को वैचारिक विभिन्नता के बावजूद अनगिनत बार एक मंच पर लाकर संवाद स्थापित किया है और संवाद की एक नई संस्कृति को जन्म दिया है।
जब कैम्पस में सारे छात्र संगठन लेफ़्ट और राइट की जंग में लगे हुए हैं, एस आई ओ मध्यमार्ग अपनाते हुए छात्र राजनीति और संघर्ष की नई परिभाषा गढ़ रहा है।
एस आई ओ ने 39 वर्षों के संघर्ष में छात्र संगठन की जिस नई परिभाषा को गढ़ा है वह लोकतांत्रिक है, मानवतावादी है, सौहार्दपूर्ण है और समानता व भाईचारे के सिद्धांत से गढ़ी गई है।
चरित्र निर्माण से राष्ट्र निर्माण का प्रयास
भारत का कोई भी छात्र संगठन या उसके प्रमुख ये दावा नहीं कर सकते कि उसके सदस्य आचरण में शुद्ध हैं और कभी किसी बुरी गतिविधि में संलग्न नहीं रहे हैं।
लेकिन वहीं दूसरी तरफ एस आई ओ और उसका अध्यक्ष पूरे विश्वास और ज़िम्मेदारी से यह बात कह सकता है कि उसका कोई भी कैडर किसी ग़लत कार्यों में संलिप्त नहीं रहा है। किसी कैडर का कोई आपराधिक इतिहास नहीं रहा है। ऐसा केवल दावा मात्र नहीं है बल्कि संगठन की मूलभावना ही यही है।
एस आई ओ सबसे पहले संगठन से जुड़ने वालों को बेहतर चरित्र अपनाने की प्रेरणा देता है। जो किसी भी अपराध में संलिप्त हो या संलिप्त रहा हो वो कभी भी एस आई ओ का सदस्य नहीं बन सकता।
बहुत से संगठन कैम्पस में चुनाव जीतने के लिए कभी धनबल और कभी बाहुबल को आधार बनाते हैं मगर एस आई ओ धनबल और बाहुबल से अलग चरित्रबल के द्वारा कैम्पस में छात्र राजनीति की दिशा निर्धारित करना चाहता है। अपराध मुक्त छात्र राजनीति ही देश में अपराध मुक्त राजनीति को बढ़ावा दे सकती है।
एस आई ओ इसी चरित्र निर्माण और साख (Goodwill) के आधार पर राष्ट्र निर्माण की बात करती है। एस आई ओ का यह मानना है कि चरित्र निर्माण से ही राष्ट्र निर्माण का रास्ता तय होता है।
देश में बहुत से छात्र संगठन काम कर रहे हैं, सबकी अपनी-अपनी विशेषता है मगर उनमें एस आई ओ एक प्रमुख संगठन है जो इस देश के युवाओं के लिए आदर्श हो सकती है, संविधान की रक्षा कर सकती है, लोकतंत्र की मूल भावना के अनुरूप काम करते हुए देश के छात्रों और युवाओं का बेहतर नेतृत्व कर सकती है।
– मसीहुज़्ज़मा अंसारी
(लेखक एसआईओ के पूर्व राष्ट्रीय सचिव हैं।)