ईद-उल-अज़हा का असल पैग़ाम
सैयद सआदतुल्लाह हुसैनी
हम इस वक़्त ‘ज़ु अल-हज्जा’ (इस्लामी कैलेंडर का बारहवां और आख़िरी महीना) के मुबारक दिनों से गुज़र रहे हैं। हाजियों के क़ाफ़िले परवानों की तरह अल्लाह के घर के गिर्द जमा हैं। ‘ज़ु अल-हज्जा’ के ये मुबारक दिन निहायत पाकीज़ा जज़्बात की एक ताक़तवर मौज लेकर आते हैं। ख़ुदा के इश्क़ का जज़्बा, उसकी मुहब्बत का जज़्बा, जांनिसारी का जज़्बा, उसकी चौखट पर माथा टेक कर अपने वजूद को, अपनी हर चीज़ को उसके हवाले कर देने का जज़्बा, सिर्फ़ उसके होकर रहने और उसकी ख़ातिर ज़िन्दगी गुज़ारने का जज़्बा।
ये पाकीज़ा जज़्बात जो ‘ज़ु अल-हज्जा’ के मुबारक दिन अपने साथ लेकर आते हैं, ये एक मोमिन का सबसे क़ीमती सरमाया हैं। अल्लाह से दुआ है की ये पाकीज़ा जज़्बात हमारे दिल और दिमाग़ में रच-बस जाएं, हमेशा ज़िंदा रहें और हमारी शख़्सियतों की और हमारी ज़िन्दगियों की तामीर इन्हीं मुबारक जज़्बात की बुनियाद पर हो।
ईद-उल-अज़हा से पहले, हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की ज़िन्दगी से जुड़ी और उनकी क़ुर्बानी से जुड़ी बातें हमारे सामने आती रहती हैं। मैं आज ईद-उल-अज़हा के एक और पहलू पर, बड़े अहम पहलू पर कुछ रौशनी डालना चाहता हूं।
ईद के त्योहार का दर्शन
अल्लाह तआला ने क़ुरआन में जानवरों की क़ुर्बानी का एक बड़ा अहम मक़सद बयान किया है। अल्लाह तआला ने जानवरों को हमारे अधीन बनाया है, उन्हें हमारे नियंत्रण में दिया है, ये अल्लाह तआला का एहसान है और क़ुर्बानी इस चीज़ का ज़रिया है कि अल्लाह तआला के इस एहसान पर हम उसकी तकबीर बयान करें, उसकी बड़ाई बयान करें।
क़ुरआन मजीद के मुताबिक़ ईद की असल रूह और उसका असल दर्शन ये है कि अल्लाह की तकबीर और उसकी बड़ाई बयान की जाए। ईद-उल-फ़ित्र के बारे में भी क़ुरआन में यही कहा गया है कि अल्लाह की तकबीर बयान करना ही इस ईद का मक़सद है। लेकिन यहां तकबीर का ताल्लुक़ क़ुरआन मजीद से है, अल्लाह की हिदायत से है। तकबीर इसलिए कि अल्लाह तआला ने इस महीने में क़ुरआन नाज़िल किया। और यहां ईद-उल-अज़हा में भी तकबीर बयान करना मक़सद है, लेकिन तकबीर इसलिए कि अल्लाह तआला ने दुनिया के तमाम संसाधनों को हमारे अधीन कर दिया है, इन संसाधनों पर हमें नियंत्रण दिया है। इस तरह हम देखें तो इस्लाम के ये दोनों त्योहार, एक मोमिन बंदे की पूरी ज़िन्दगी की तस्वीर पेश करते हैं। बंदों को अल्लाह तआला ने दो बड़ी ने’अमतें अता कीं। दुनिया भर के संसाधन उसके अधीन दे दिए और हिदायत-ओ-रहनुमाई की किताब भी उसे दे दी। दोनों ने’अमतों का तक़ाज़ा है कि मुसलमान अल्लाह का शुक्र अदा करें, उसकी बड़ाई बयान करें और जो संसाधन अल्लाह ने उन्हें दिए हैं, अल्लाह की हिदायत के मुताबिक़ उनका इस्तेमाल करें। अल्लाह की किताब को मज़बूती से थामें। उनके अधीन की गई तमाम चीज़ों से काम लें और दो काम करें -
पहला, अल्लाह के कलमे को बुलंद करने का काम। उसकी बड़ाई बयान करने का काम। जैसे दोनों ईदों में हम तकबीर बुलंद करते हैं। और दूसरा, अल्लाह की रहनुमाई के मुताबिक़ अल्लाह की मख़लूक को फ़ायदा पहुंचाने का काम। ईद-उल-फ़ित्र में सदक़ा-ए-फ़ित्र के ज़रिए हम ये काम करते हैं और ईद-उल-अज़हा में क़ुर्बानी का गोश्त बांट कर हम ये काम करते हैं।
क़ुरआन में क़ुर्बानी के जानवरों के बारे में जो बात कही गई है, वही बात जगह-जगह दुनिया के विभिन्न संसाधनों के बारे में भी कहीं गई है। बल्कि 23 बार क़ुरआन में इसका ज़िक्र किया गया है कि अल्लाह तआला ने इस संसार की विभिन्न चीज़ों को, विभिन्न संसाधनों को इंसानों के लिए पैदा किया है, उनके अधीन कर दिया है, उनके नियंत्रण में दे दिया है। इसे अल्लाह तआला ने अपने इन’आम के तौर पर और अपने एहसान के तौर पर बयान किया है।
संसाधनों को इंसानों के अधीन करने का क्या मतलब है?
क़ुरआन के विशेषज्ञों ने इसके दो मतलब बताए हैं। पहला मतलब ये कि कुछ जगह कहा गया कि हमने सूरज को इंसानों के लिए बनाया, चांद को इंसानों के लिए बनाया, रात और दिन बनाए, ज़मीन और आसमान की सारी चीज़ों को इंसानों के लिए बनाया। इसका मतलब ये है कि अल्लाह तआला ने इन तमाम चीज़ों को ऐसे प्राकृतिक नियमों का पाबंद बनाया कि ये तमाम चीज़ें अल्लाह के आदेशानुसार इंसानों के फ़ायदे के लिए काम करती हैं। सूरज कभी इतना गर्म नहीं होता कि हम सारे इंसान जल कर मर जाएं और कभी इतनी सर्दी नहीं होती कि सर्दी से ज़िन्दगी ठिठुर कर रह जाए। एक ख़ास रेंज में सर्दी और गर्मी पैदा होती रहती है ताकि इंसान हर मौसम का आनंद ले सके, हर तरह के जीव (Organisms) पैदा हो सकें। साइंस पढ़ने वाले जानते हैं कि कुछ organisms जो इंसान के लिए फ़ायदेमंद हैं, गर्मी में ही पैदा हो सकते हैं और कुछ organisms सर्दी में ही पैदा हो सकते हैं। तरह-तरह के फलों और दूसरे agricultural products के लिए ये मौसम ज़रूरी हैं। इसीलिए एक ख़ास रेंज में मौसम सर्द और गर्म होता रहता है। तो यहां अल्लाह के शुक्र का तक़ाज़ा ये है कि हम उन प्राकृतिक नियमों को जानें ताकि उन संसाधनों का बेहतर से बेहतर इस्तेमाल हो सके।
दूसरा मतलब ये कि कुछ चीज़ें ऐसी हैं जिन पर अल्लाह तआला ने इंसान को पूरा नियंत्रण दे दिया है। इसका मतलब ये कि इन चीज़ों का मुकम्मल चार्ज लिया जाए। उन्हें ज़्यादा से ज़्यादा फ़ायदेमंद बनाया जाए। अंग्रेज़ी में जिसे Harnessing the Natural Resources कहते हैं। लेकिन इस काम के लिए इल्म चाहिए, सलाहियत चाहिए, टेक्नोलॉजी चाहिए। अल्लाह तआला ने जिस तरह हमें जानवरों पर नियंत्रण दिया, उसी तरह वो फ़रमाता है कि उसने कश्तियों को हमारे नियंत्रण में दिया कि वो समंदर में उसके हुक्म से चलें। क़ुरआन ने कश्ती का, जानवरों की सवारी का ज़िक्र करते हुए हुक्म दिया कि जब तुम इन सवारियों पर सवार हो तो अल्लाह के एहसान को याद करो और कहो कि “पाक है वो जिसने इन सवारियों को हमारे अधीन कर दिया वरना हम इन्हें क़ाबू में करने के क़ाबिल नहीं थे।” क़ुरआन फ़रमाता है, “वही तो है जिसने समुद्र को तुम्हारे वश में किया है, ताकि तुम उससे ताज़ा मांस लेकर खाओ और उससे आभूषण निकालो, जिसे तुम पहनते हो। तुम देखते ही हो कि नौकाएं समुद्र को चीरती हुई चलती हैं (ताकि तुम सफ़र कर सको) और ताकि तुम उसका अनुग्रह तलाश करो और ताकि तुम कृतज्ञता दिखलाओ।”
इस तरह हम देखते हैं कि अल्लाह तआला ने इस harnessing को, इस control को, इंसानों पर अपना एहसान क़रार दिया है, अपनी निशानी क़रार दिया है और हुक्म दिया है कि उस पर हम अल्लाह का शुक्र अदा करें। शुक्र का एक तक़ाज़ा ये है कि अल्लाह की इन ने’अमतों को इस्तेमाल में लाया जाए। उन्हें अपने फ़ायदे के लिए इस्तेमाल किया जाए। अल्लाह के दूसरे बंदों के लिए उन्हें फ़ायदेमंद बनाया जाए। अगर मुझे मेरा कोई दोस्त एक क़ीमती तोहफ़ा दे और मैं उसे ले जाकर दरिया में फेंक दूं तो ये मेरे दोस्त का अपमान होगा और अगर मैं उसे लाकर घर में रख दूं, इस्तेमाल में न लाऊं तो ये भी मेरे दोस्त का अपमान होगा, उस तोहफ़े का अपमान होगा। इसी तरह देखें तो अल्लाह ने दुनिया के इन संसाधनों को हमारे लिए बनाया है, हमें उपहार स्वरूप इन तमाम संसाधनों को दिया है ताकि हम अपने लिए और दूसरे इंसानों के लिए उन्हें फ़ायदेमंद बनाएं। जिस तरह क़ुर्बानी के जानवर को फ़ायदेमंद बनाते हैं।
इन संसाधनों को कैसे इस्तेमाल में लाएं?
ईद-उल-अज़हा में इन संसाधनों को इस्तेमाल करने का सलीक़ा भी हमें बताया गया है। हम ख़ुदा की ख़ातिर जानवर को क़ाबू में करते हैं फिर अल्लाह का नाम लेते हैं, ये जज़्बा अपने दिल में पैदा करते हैं कि “मेरी नमाज़, मेरी क़ुर्बानी, मेरी ज़िन्दगी और मेरी मौत सब-कुछ अल्लाह के लिए है” और कहते हैं कि “ऐ अल्लाह! ये तेरे ही लिए है। ये तेरा ही दिया हुआ है और तेरे ही सामने हाज़िर है।” इस ऐलान के साथ हम जानवर क़ुर्बान करते हैं। फिर उसके तीन हिस्से बनाते हैं। एक हिस्से से ख़ुद फ़ायदा उठाते हैं, एक हिस्सा दूसरे इंसानों में तक़्सीम करते हैं और एक हिस्सा उन लोगों के लिए निकालते हैं जो वंचित हैं, ग़रीब हैं, परेशान हैं और जिन लोगों तक संसाधनों की पहुंच नहीं है।
तो हमारी ज़िम्मेदारी है कि यही काम दुनिया के सारे संसाधनों के साथ किया जाए। यही approach अन्य संसाधनों के मामले में भी अपनाई जाए। सारे संसाधनों पर हम क़ाबू पाएं। उन्हें अपने चार्ज में लें। उन पर अल्लाह का नाम लें। उनके इस्तेमाल को अल्लाह की मर्ज़ी का पाबंद बनाएं और अल्लाह की मर्ज़ी के तहत इंसानों के फ़ायदे के लिए उन्हें इस्तेमाल करें ताकि दुनिया के मजबूर और ग़रीब इंसान इन संसाधनों से ज़्यादा से ज़्यादा फ़ायदा उठाएं।
इसीलिए क़ुरआन में जहां क़ुर्बानी का ज़िक्र आया है, वहीं ईद-उल-अज़हा का पैग़ाम भी बयान किया गया है। ईद-उल-अज़हा का एक अहम पैग़ाम ‘तस्ख़ीर’ (Harnessing) और ‘तकबीर’ (Proclamation of the Greatness of Allah) का संगम है। हमारे बुज़ुर्गों ने इस्लाम के रौशन दौर में यही काम किया था। आज हम मुसलमान वैज्ञानिकों के बारे में पढ़ते हैं। दरअसल उन्होंने ‘तस्ख़ीर’ और ‘तकबीर’ को मिला दिया था। जो लोग अल्लाह की बड़ाई बयान करते थे, अल्लाह की तरफ़ दावत देते थे, वही लोग observatories क़ायम करते थे, वही लोग तरह-तरह के आविष्कार करते थे, वही लोग ज्ञान के नये क्षेत्रों की खोज करते थे, तमाम इंसानों के फ़ायदे के लिए अल्लाह के दिए हुए संसाधनों को इस्तेमाल में लाते थे।
दुनिया का सबसे बड़ा संकट
आज की दुनिया का सबसे बड़ा संकट यही है कि ‘तस्ख़ीर’ और ‘तकबीर’ अलग-अलग हो गये हैं। जिन्होंने ‘तस्ख़ीर’ हासिल की, जिन्हें दुनिया के संसाधनों पर नियंत्रण मिला, जिन्होंने साइंस और टेक्नोलॉजी में कमाल हासिल किया, वो ‘तकबीर’ से यानि अल्लाह से दूर हो गये। नतीजा ये हुआ कि अल्लाह की दी हुई ताक़त, दुनिया में फ़साद का ज़रिया बन गई। अल्लाह ने ताक़त दी थी कि इंसान atom को चीर कर, उसके अंदर मौजूद बेपनाह ऊर्जा को इंसानों के फ़ायदे के लिए इस्तेमाल में लाए लेकिन जब ‘तस्ख़ीर’, ‘तकबीर’ से अलग हो गई तो यही atomic energy इंसान की तबाही का ज़रिया बन गई। आज भी दुनिया के बड़े मुल्कों में बेहतरीन इंजीनियर, बेहतरीन वैज्ञानिक सबसे पहले defence के विभागों में जाते हैं, सबसे ज़्यादा रिसर्च और technological innovations भी defence में होती है, सबसे ज़्यादा ख़र्च defence में होता है। इस तरह देखें तो अल्लाह की दी हुई ताक़त, दुनिया में तबाही के लिए, एक-दूसरे की मार-काट के लिए इस्तेमाल हो रही है। दूसरी तरफ़, बड़ी-बड़ी पूंजीवादी ताक़तें इन संसाधनों पर क़ब्ज़ा करके, इंसानों को ख़रीद करके, सिर्फ़ चंद लोगों की luxuries के लिए, उनके फ़ायदे के लिए इन संसाधनों का दोहन कर रही हैं। ज़्यादा से ज़्यादा luxury की हवस ने इंसान को जानवर बना दिया है। पर्यावरण संकट पैदा कर दिया है। हमारी हवा और पानी को ज़हर से भर दिया है। हमारी आने वाली नस्लों की ज़िन्दगी को ख़तरे में डाल दिया है। ये सब इसलिए हो रहा है क्योंकि ‘तस्ख़ीर’ और ‘तकबीर’ अलग-अलग हो गये हैं।
दूसरी तरफ़, जो लोग ‘तकबीर’ से जुड़े हैं, ईमान वाले हैं, अल्लाह का नाम लेते हैं, वो तालीम में पीछे हो गये, टेक्नोलॉजी में पीछे हो गये, उन्होंने अपनी तारीख़ का सबक़ भुला दिया। दुनिया को बेहतर बनाना, अल्लाह के दिए हुए संसाधनों को इस्तेमाल करके इंसानी ज़िन्दगी को आसान बनाना, इंसानों की समस्याओं को हल करना, ये काम उन्होंने छोड़ दिया, तो ये भी दुनिया की ख़राबी की और फ़साद की एक बड़ी वजह है। आप देखेंगे तो पाएंगे कि क़ुरआन मजीद में अल्लाह ने नबियों का ज़िक्र करते हुए भी प्राकृतिक संसाधनों का ज़िक्र किया है। कहा कि, “निश्चय ही हमने अपने रसूलों को स्पष्ट प्रमाणों के साथ भेजा और उनके लिए किताब और तुला उतारी, ताकि लोग इंसाफ़ पर क़ायम हों। और लोहा भी उतारा, जिसमें बड़ी ताक़त है और लोगों के लिए कितने ही लाभ हैं।” लोहा क्या है? लोहा टेक्नोलॉजी का प्रतीक है। Defence और Welfare टेक्नोलॉजी का प्रतीक है। अल्लाह तआला ने नबियों के मिशन से इसको जोड़ा है।
ईद-उल-अज़हा का पैग़ाम
मैं ख़ासतौर पर नौजवानों को याद दिलाना चाहता हूं कि ईद-उल-अज़हा का एक बड़ा पैग़ाम ये है कि ‘तस्ख़ीर’ और ‘तकबीर’ मिल जाएं। जिस तरह हम जानवर पर control हासिल करते हैं, उसे अल्लाह के नाम पर क़ुर्बान करते हैं और अपने लिए, दूसरे इंसानों के लिए और वंचितों और ग़रीबों के लिए उसमें हिस्सा निकालते हैं, ठीक इसी तरह हमारी ये ज़िम्मेदारी है कि अल्लाह तआला ने ज़मीन और आसमान के जो संसाधन हमारे अधीन किए हैं, हम उन पर भी control हासिल करें और उनका चार्ज लें। हम उच्च शिक्षा तक जाएं, टेक्नोलॉजी में कमाल हासिल करें, टेक्नोलॉजी को इंसानों के लिए फ़ायदेमंद बनाएं, उसे इंसानों की समस्याओं के हल का ज़रिया बनाएं। जिस तरह हम जानवर पर control हासिल करते हैं, उसी तरह electricity पर, पानी पर, हवा पर, ऊर्जा पर, इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन, न्यूट्रॉन पर, जींस पर, सेल्स पर, बैक्टीरिया और वायरस पर, हर चीज़ पर इल्म के ज़रिए control हासिल करें और फिर उन्हें अल्लाह की मर्ज़ी के मुताबिक़ इस्तेमाल करें, इंसानों के फ़ायदे के तरीक़े सोचें। हर चीज़ के इस्तेमाल में ये भावना बाक़ी रखें कि “ऐ अल्लाह! ये तेरे ही लिए है। ये तेरा ही दिया हुआ है और तेरे ही सामने हाज़िर है।”
हमें दुनिया से अपना हिस्सा नहीं भूलना चाहिए। ख़ूब तालीम हासिल करनी चाहिए, बड़ी से बड़ी सलाहियत पैदा करनी चाहिए और अल्लाह ने जो संसाधन हमारे लिए बनाए हैं, उनका चार्ज लेकर उन्हें इस्तेमाल करना चाहिए। ये काम सिर्फ़ दुनिया का काम नहीं है बल्कि दीन का काम है। ख़ुदा के सामने जवाबदेही का एहसास इंसान को ज़िम्मेदार बनाता है। इसीलिए आगे आइए और अपने इल्म से, अपनी प्रतिभा से इन संसाधनों पर नियंत्रण हासिल कीजिए और इंसानों की समस्याओं का हल तलाश कीजिए, कैंसर का इलाज ढूंढिए, सैलाब का मसला हल कीजिए, नॉर्थ-ईस्ट में हर साल सैलाब से जानें जाती हैं, उसका हल तलाश कीजिए, दिल्ली के प्रदूषण का मसला हल कीजिए, आज भी करोड़ों इंसानों को पीने का साफ़ पानी नहीं मिलता, इसका हल तलाश कीजिए। ‘तस्ख़ीर’ और ‘तकबीर’ अलग हो गये, तो सारे दिमाग़ लड़ने-भिड़ने की टेक्नोलॉजी ढूंढने में लगे हैं या चंद इंसानों की सुविधा के लिए इन संसाधनों का दोहन कर रहे हैं। आप जब ‘तकबीर’ के जज़्बे के साथ उठेंगे तो इंसानों की समस्याओं को हल करेंगे।
इसीलिए, इस ईद-उल-अज़हा पर जब आप क़ुर्बानी का जानवर क़ुर्बान करने के लिए उठें तो ये ज़रूर सोचें कि जिस तरह अल्लाह तआला ने ये जानवर हमारे नियंत्रण में दिया है, उसी तरह इस दुनिया के संसाधनों को भी हमारे लिए बनाया है। जिस तरह हमने अल्लाह की राह में क़ुर्बान करने के लिए जानवर को अपने चार्ज में लिया है, उसी तरह अपने ज्ञान से, अपनी प्रतिभा से हम दुनिया के संसाधनों का भी चार्ज लेंगे। जिस तरह हम जानवर पर अल्लाह का नाम लें रहे हैं, उसी तरह दुनिया के तमाम संसाधनों को अल्लाह की मर्ज़ी के मुताबिक़ इस्तेमाल करेंगे और जिस तरह जानवर को अपने लिए और वंचितों और ग़रीबों के लिए फ़ायदेमंद बना रहे हैं, उसी तरह इन संसाधनों को दुनिया के तमाम वंचितों और ग़रीबों के लिए फ़ायदेमंद बनाएंगे। क़ुरआन फ़रमाता है कि “ऐसे ही एहसान करने वालों के लिए ख़ुशख़बरी है।”
(लेखक वर्तमान में जमाअत-ए-इस्लामी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।)
हिंदी रूपांतरण: तल्हा मन्नान