बटला हाउस ‘फ़र्ज़ी’ मुठभेड़ को 13 बरस बीत चुके हैं। 19 सितंबर, 2008 को दिल्ली में हुए पांच सीरियल बम धमाकों में 30 लोग मारे गए थे। इस हादसे के छः दिनों बाद जामिया मिल्लिया इस्लामिया के पास स्थित बटला हाउस इलाक़े में एक ‘फ़र्ज़ी’ एनकाउंटर हुआ।
इस सशस्त्र अभियान का नेतृत्व इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा के साथ दिल्ली पुलिस की सात सदस्यों की टीम ने किया।
इस एनकाउंटर में दिन-दहाड़े दो मुस्लिम नौजवान आतिफ़ अमीन और मोहम्मद सज्जाद मारे गए। ऑपरेशन के दौरान इंस्पेक्टर मोहन चंद की भी मौत हो गई थी। दिल्ली पुलिस ने बाद में दो और लोगों को घटनास्थल से गिरफ़्तार किया और उनमें से एक (आरिज़ ख़ान) को हाल ही में इंस्पेक्टर मोहन चंद की हत्या के लिए दोषी ठहराया गया है।
आज इस बरसी के अवसर पर मानवाधिकार कार्यकर्ता नबिया ख़ान ने ट्वीट किया, “बटला हाउस फ़र्ज़ी एनकाउंटर के 13 साल। पीड़ितों को न्याय से वंचित करने के 13 साल। दो मुस्लिम छात्रों की राज्य प्रायोजित हत्या और हज़ारों की बदनामी के 13 साल। इस्लामोफ़ोबिया, मुसलमानों के ख़िलाफ़ अपराधीकरण और अन्याय के बरस दर बरस”
इस कथित एनकाउंटर ने देशव्यापी भेदभाव और मुसलमानों के अमानवीयकरण को जन्म दिया। विशेष रूप से आज़मगढ़, जामिया मिलिया इस्लामिया और जामिया नगर के मुसलमानों को उत्पीड़न और आतंक के क्रूर रूपों का सामना करना पड़ा।
एक्टिविस्ट और मीडियाकर्मी असद अशरफ़ ने आज ट्वीट किया, “19 सितंबर 2008 ने जामिया नगर में रहने वाले हम में से कई लोगों के जीवन को बदल दिया। आज ही के दिन 13 साल पहले बटला हाउस एनकाउंटर हुआ था।”
इस एनकाउंटर को फ़र्ज़ी क़रार देने के पीछे बहुत-से सवालों के साथ-साथ स्वयं इन्स्पेक्टर मोहन चंद शर्मा की रहस्यमयी मौत भी है। दो मुस्लिम युवकों की सरेआम क्रूर हत्या और बड़े पैमाने पर देश भर के मुसलमानों के अमानवीयकरण के 13 साल बीत चुके हैं। इन 13 सालों में कई मानवाधिकार संस्थाओं, नागरिक अधिकार संगठनों और छात्र समूहों ने बटला हाउस फ़र्ज़ी एनकाउंटर में स्वतंत्र न्यायिक जांच की मांग के लिए आंदोलन किए लेकिन इसके बावजूद सरकारों और अदालतों ने इस पर कान नहीं धरे।
– अनवारूल होदा