कोरोना वायरस का कहर पूरी दुनिया में बरपा है। कई देशों में कोरोना की दूसरी लहर भी आ चुकी है, जो पहली लहर से ज़्यादा ख़तरनाक साबित हो रही है। ख़ुद हमारे देश भारत में कोरोना वायरस की दूसरी लहर चल रही है। अब तक भारत में 2.27 करोड़ लोग इस वायरस की चपेट में आ चुके हैं और इससे जान गंवाने वालों की संख्या 2.5 लाख को छू रही है। भारत में कोरोना की दूसरी लहर के बाद हर रोज़ 3-4 लाख लोग इस वायरस से संक्रमित हो रहे हैं।
इन सबके बीच भारत में धार्मिक समारोहों में जन सैलाब भी जमकर उमड़ रहा है। पिछले महीने ही आयोजित हुए कुंभ में 91 लाख से ज़्यादा लोगों ने हिस्सा लिया और अब इन्हें कोरोना के ‘सुपर स्प्रेडर’ की तरह माना जा रहा है। मध्य प्रदेश के एक क़स्बे में इस कुंभ से लौटे 61 में से 60 व्यक्तियों की कोरोना रिपोर्ट पॉज़िटिव आई है मतलब कुंभ से लौटे 99% लोग यहां कोरोना का शिकार हुए। ऐसे में देश के अलग-अलग राज्यों में कुंभ से लौटे लोगों द्वारा कोरोना फैलने का ख़तरा चिंतनीय है।
दूसरी तरफ़ मुसलमानों का पवित्र महीना रमज़ान ख़त्म होने की कगार पर है और उसके बाद पूरे देश में ईद का त्योहार मनाया जाने वाला है। ग़ौरतलब है कि ईद में मुसलमानों के द्वारा सामूहिक रूप से ईद की नमाज़ अदा की जाती है और इस बार जब देश कोरोना की दूसरी लहर से जूझ रहा है तब भारत के मुसलमानों को चाहिए कि वे इस बार ईद की नमाज़ अपने घरों में अदा करें। सरकार की कोई विशेष गाइडलाइन अभी तक इस मामले में नज़र नहीं आ रही है।
महामारी के ऐसे दौर में घरों पर ही इबादत करने के हवाले ख़ुद इस्लाम की तारीख़ में छुपे हुए हैं।
बुख़ारी की हदीस नंबर 632 में ज़िक्र आता है कि हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने एक बार अज़ान देने वाले व्यक्ति (मुअज़्ज़िन) से कहा कि अज़ान के बाद कह दो कि ‘ऐ लोगों! अपने-अपने ठिकानों पर नमाज़ पढ़ लो।’ यह आदेश सफ़र की हालत, सर्दी या बरसात की रातों में था।
अब ज़ाहिर सी बात है कि बरसात या सर्दी की वजह से लोगों की जान तो नहीं जाएगी। हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने यह आदेश लोगों की आसानी के लिए दिया था। लेकिन यहां तो जान जाने का पूरा ख़तरा बना हुआ है तो क्या ऐसी हालत में हमें ईद की नमाज़ बाहर ईदगाहों में पढ़नी चाहिए?
आप (सल्ल.) ने तो एक मोमिन की जान की क़ीमत को काबा (मुसलमानों का सबसे पवित्र तीर्थ स्थान) से भी ज़्यादा अहम बताया है। जब ख़ुद नबी ने जान को सबसे अहम बताया है तो मुसलमानों को चाहिए कि ईद की नमाज़ भी घरों में पढ़े।
कई और रिवायतों से यह भी पता चलता है कि अगर मस्जिद तक जाने में आपको किसी चीज़ का डर हो तो भी आप घर में ही नमाज़ अदा कर सकते हैं। यहां कोरोना का ख़तरा भी है और जान जाने का डर भी मौजूद है।
इस मामले पर चर्चा करते वक़्त इस्लामी इतिहास के ताऊन-ए-अंवास को याद करना (जो 18 हिजरी में हुआ) ज़रूरी है। इसमें मुस्लिम सेना शाम (वर्तमान सीरिया) में रूमियों के ख़िलाफ़ जंग कर रही थी लेकिन वहां संक्रमण की बीमारी की वजह से 25,000 मौतें हो गई थी। हज़रत उमर बिन आस ने सेना की कमान संभाली और लोगों को दूर-दूर रहने की हिदायत दी। और उस बीमारी की तुलना आग से की।
यहां यह बात क़ाबिले ग़ौर है कि उस वक़्त वे लोग जंग की हालत में थे फिर भी उमर बिन आस ने यहां अलग-अलग रहने की हिदायत दी लेकिन आज हम अपनी आम ज़िन्दगी में इस महामारी से जूझ रहे हैं तो हमें इस पर और ज़्यादा अमल करने की ज़रूरत है।
एक और रिवायत में आता है कि हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने फ़रमाया कि ‘जजाम (कोढ़) के मरीज़ से उस तरह भागो जैसे तुम शेर से डरकर भागोगे।’
ऐसी अनेक रिवायतें संक्रमित बीमारियों, महामारियों से बचने की हमें मिल जाएंगी। लेकिन उसे आज के दौर में आज की परिस्थिति के हिसाब से देखने की सख़्त ज़रूरत है।
इस संबंध में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने भी कुछ गाइडलाइंस जारी कर दी हैं जो इस प्रकार हैं –
- सादगी से ईद मनाएं और दुकानों पर भीड़ न लगाएं।
- ईद की नमाज़ में बड़े मजमे लगाने से बचें और छोटी जमाअतें बनाएं।
- ईद की ज़ुबानी मुबारकबाद दें। गले मिलने और हाथ मिलाने से गुरेज़ करें।
- प्रशासन की गाइडलाइंस का सख़्ती से पालन करें।
ईद सामने है। अगर मुसलमानों की बड़ी संख्या ईद की नमाज़ एक साथ ईदगाहों में अदा करती है तो यह भी कोरोना के ‘सुपर स्प्रेडर’ की तरह काम करेगा और आने वाले समय में देश में स्थिति और भयावह हो सकती है। और अगर ऐसा होता है तो ये हरकत न केवल ग़ैर-इस्लामी होगी बल्कि इसको मुजरिमाना हरकत माना जाएगा।
साजिद
लेखक आईआईएमसी में पत्रकारिता के छात्र हैं।