[कविता] मेरे जूते को बचाकर रखना

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मेरे जूते को बचाकर रखना,
संभाल कर रखना इसे कल के लिए –
मलबे के बीच दम तोड़ रहे कल के लिए।

मेरे जूते को बचाकर रखना,
ग़म के संग्रहालय के लिए,
उस संग्रहालय के लिए मैं दे रहा हूं अपने जूते को,
ख़ून से सने जूते को
और हताशा में डूबे मेरे शब्‍दों को
और उम्‍मीद से लबरेज़ मेरे आंसुओं को
और सन्‍नाटे में डूबे मेरे दर्द को।

समुद्र के किनारे से मेरे फ़ुटबाल को भी उठा लेना,
या शायद उसके कुछ हिस्‍सों को जिन पर ख़ून के धब्‍बे नहीं
एक महाशक्ति की कायरता के दस्तख़त हैं।

मेरी स्‍मृति उस बम की खोल में सीलबन्‍द है,
शोक की प्रतिध्‍वनि में, विदाई के चुम्‍बन में,
ज़ि‍न्‍द‍गी का हर रंग ज़हरीला है
और जानलेवा रसायनों के बादल हर ख्‍़वाब का दम घोट रहे हैं।

वे तस्‍वीरें जो तुम्‍हें रात में परेशान करती हैं
और दिन में जब तुम हमारे बारे में पढ़ते हो (आराम फ़रमाते हुए)
वे तस्‍वीरें हमें परेशान नहीं करती हैं।
अगर कोई चीज़ परेशान करती है तो वह है
तुम्‍हारी ख़ामोशी, तुम्‍हारी शिथि‍लता
तुम्‍हारी विचारवान निगाहें, तुम्‍हारा गुनाहगार इंतज़ार
यहां आक्रोश एक सद्गुण है,
हमारा धैर्य हमारे प्रतिरोध में दर्ज है!

कविमुसब इक़बाल
अनुवादआनन्‍द

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