कविता-साम्राज्य हमेशा से दयालू रहा है

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साम्राज्य हमेशा से दयालू रहा है

जब हम अंधकार में थे
पश्चिमी साम्राज्य ने हम पर दया दृष्टि डाली
हमें सभ्य बनाया
उसने हमें लूटा नहीं, ना ग़ुलाम बनाया
उसने हमारा क़त्ल ए आम तो कभी किया ही नहीं
उसने हमे रेल्वे का लड्डू अलग से दिया. सोचिए.

फिर देखिए मिडिल ईस्ट
कितना अंधकार था वहाँ!
वहाँ तो लोकतंत्र भी नहीं था फिर
साम्राज्य कैसे सुकून पाता, उसने
अपने लड़ाकू विमान भेजे जो आज भी
आसमान से खाने-पीने की वस्तुएं ग़रीबों को पहुंचाते हैं.
वे बम नहीं बरसाते, ना पेट्रोल की कोई लालच है उन्हें
उन्हें अफ़ग़ानिस्तान की अफ़ीम बिल्कुल पसंद नहीं है
और ना सीरिया की लड़कियाँ.

साम्राज्य हमेशा से दयालू रहा है
वह तो बच्चों को अपने दादाओं की लाशों पर
आख़िरी बार बैठने देता है.
उन्हें खेलने देता है अपनों के ख़ून सने शरीरों के साथ
और जब बच्चे ऊब कर रोने लगते हैं एक जैसे खेल से
वह उन्हें कैंडी और बिस्कुट देता
पुलिस वैन में घुमाने ले जाता है दूर तक.

साम्राज्य अमर रहे. साम्राज्य की जय हो.

-उसामा हमीद

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