जानिए क्यों मनाया जाता है अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस?

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निशांत तिवारी

सन् 1947 में भारत की आज़ादी के साथ भारत का विभाजन भी हुआ और दुनिया के नक़्शे पर एक नया देश उभरा- पाकिस्तान। पूर्वी पाकिस्तान, पश्चिमी पाकिस्तान और दोनों के बीच में हिन्दुस्तान। पाकिस्तान के ये दोनों भाग सांस्कृतिक रूप से बहुत भिन्न थे। जिस भू-भाग के लिए ये कहावत हो कि “कोस-कोस पर पानी बदले, तीन कोस पर बानी”, वहाँ के दो भू-खंडों, जिनके बीच की दूरी 2500 किलोमीटर से ज़्यादा थी, वहाँ की भाषा कैसे एक जैसी होती। 1948 में पाकिस्तान सरकार ने उर्दू को इकलौती राष्ट्रभाषा घोषित कर दिया। चूँकि पूर्वी पाकिस्तान की जनसंख्या अधिक थी और वहाँ की मातृभाषा बांग्ला थी, इसलिए वहाँ से उर्दू के साथ साथ बांग्ला को भी राष्ट्रीय भाषा बनाने की आवाज़ उठी। पाकिस्तान के संविधान सभा के समक्ष पूर्वी पाकिस्तान के धीरेन्द्रनाथ दत्त ने भी ये मांग रखी। पूर्वी पाकिस्तान में मातृभाषा के लिए खूब जमकर प्रदर्शन हुए, रैलियाँ हुईं, जन-सभाएँ हुईं।

पाकिस्तानी सरकार ने विरोध प्रदर्शनों को दबाने के लिए जन-सभाओं और रैलियों को गैर-कानूनी घोषित कर दिया। ऐसे हालात में ढाका विश्वविद्यालय के छात्रों ने स्थानीय जनता के समर्थन से अपनी मातृभाषा को राष्ट्रीय पहचान दिलाने और धूमिल होने से बचाने के लिए और बड़ी रैलियों का आयोजन किया और जन-सभाएँ करने लगे। 21 फरवरी 1952 को दुनिया के इतिहास में एक ऐसी घटना घटी जो शायद ही पहले हुई हो, पुलिस ने रैलियों की भारी भीड़ पर अंधाधुंध गोलियाँ चला दीं, जिसमें कई लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हुए। इस तरह लोगों ने मातृभाषा के लिए अपने जान की कुर्बानी दी। तबसे हर साल बांग्लादेश के लोग मातृभाषा दिवस मनाते आ रहे हैं।

सन् 1998 में अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस को मनाने के लिए कनाडा में रह रहे रफीक़ुल इस्लाम और अब्दुस सलाम ने कोफ़ी अन्नान को चिट्ठी लिखी और ये गुज़ारिश की, कि दुनिया की विलुप्त हो रहीं भाषाओं को बचाने के लिए कदम उठाए जाएँ। उन्होंने 1952 में ढाका में प्रदर्शन के दौरान हुई मौतों को श्रद्धांजली देने लिए 21 फरवरी की तारीख को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाने का प्रस्ताव रखा।

17 नवम्बर 1999 को यूनेस्को की 30वीं सभा में बिना किसी विरोध के 21 फरवरी की तारीख को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस घोषित किया गया। हर साल पूरी दुनिया में भाषाई जागरूकता और सांस्कृतिक विभिन्नताओं को प्रोत्साहित करने के लिए और बहुभाषिकता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से इस दिवस को मनाया जाता है। यूनेस्को ये बात मानता है कि एक समृद्ध और टिकाऊ समाज के लिए संस्कृति और भाषा में विविधता एक महत्वपूर्ण कारक हैं। भाषा और संस्कृति में भेद समाज में सहिष्णुता का स्तर बढ़ाते है और एक दूसरे के प्रति सम्मान में भी बढ़ोत्तरी करते हैं। कोई भी समाज अपने पिछले पीढ़ी की जानकारी और परम्पराओं को अपनी अगली पीढ़ी तक ले जाने के लिए भाषा का सहारा लेती है, और इस तरह भाषा ही उस समाज को, उस समुदाय को, उसके सारे ज्ञान और परम्पराओं सदियों तक जीवित रखती है।

एक अफ्रीकन कहावत है, “जब एक भाषा मरती है तो उसके साथ एक ग्रंथालय जलता है”। भाषा के लुप्त होने पर कई सारी परम्पराएँ और ज्ञान उसके साथ ही लुप्त हो जाते हैं, इसलिए हर छोटी से छोटी भाषा जो किसी न किसी की मातृभाषा होगी उसका बचना ज़रूरी है, ताकि हम मनुष्यों ने अपने निरंतर विकास के साथ, अनगिनत अनुभवों से जो कुछ हासिल किया है, वो मानवता की साझी विरासत भाषा की कूटता-भर के कारण खो न जाए।

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