[कविता] तरस आता है उस देश पर

“लॉरेंस फ़र्लिंगहेटी की यह कविता ‘तरस आता है उस देश पर’, उस देश की है, जिसकी बदनामी इस देश में नहीं हो सकती। इस-उस देश के बीच फँसे एक देश के नागरिकों के सामने एक कविता खड़ी है।” - रवीश कुमार

0
688
Illustrations: Dominic Xavier/Rediff.com

तरस आता है उस देश पर

– लॉरेंस फ़र्लिंगहेटी


तरस आता है उस देश पर जहाँ लोग भेड़ें हैं

और जिन्हें उनका गड़ेरिया भटकाता है।

तरस आता है उस देश पर जिसके नेता झूठे हैं

जिसके मनीषियों को चुप करा दिया गया है

और जिसके धर्मांध वायुतरंगों पर प्रेतों की तरह मंडराते हैं।

तरस आता है उस देश पर

जो विजेताओं की प्रशंसा करने

और दबंग को नायक मानने

और ताक़त व यातना के ज़रिये

दुनिया पर राज करने की कोशिश के अलावा

कभी भी अपनी आवाज़ नहीं उठाता।

तरस आता है उस देश पर जिसे

अपनी भाषा के अलावा कोई और भाषा नहीं आती

और जिसे अपनी संस्कृति को छोड़कर

किसी और संस्कृति का पता नहीं।

तरस आता है उस देश पर

पैसा जिसकी साँस है

और जो खाये-अघाये की नींद सोता है।

तरस आता है उस देश पर, आह, उन लोगों पर

जो अपने अधिकारों को ख़त्म होने देते हैं

और अपनी आज़ादी को बह जाने देते हैं।

(मेरे देश, तुम्हारे आँसू, प्यारी धरती आज़ादी की!)

■ लॉरेंस फ़र्लिंगहेटी (आफ़्टर खलील जिब्रान, 2007)

अनुवाद: प्रकाश के. रे

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here