- पिछले साल गणतंत्र दिवस की संध्या पर यूपी के कासगंज में हुई हिंसा को आप भूले नहीं होंगे. कथित रूप से RSS से सहबद्ध छात्र संगठन ABVP द्वारा एक तिरंगा यात्रा निकाली गयी थी, जिसमें राष्ट्रवाद का नशा चढ़ाए युवा कब समाज विरोधी गतिविधि करने लगे पता भी न चला. जिसने बाद में हिंसक झड़प का रूप ले लिया. इस दौरान एक बेगुनाह ने अपनी जान गंवाई तो दुसरे शख्स को घायल होना पड़ा था. उसके बाद सोशल मीडिया पर अफवाहों का बाज़ार गरम था. इस घटना पर पिछले वर्ष अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की छात्रा रश्मि सिंह राजपूत ने एक मार्मिक कविता लिखी थी. आज कासगंज की हिंसा को याद करते हुवे पढ़िए ये कविता-
कासगंज
गणतंत्रोतसव में रमी थी सुबह और,
देश प्रेम में पगलाई हुई सी सर ज़मीन ए हिंद,
कहीं तिरंगा लहरा रहा था,
कोई वन्दे मातरम् गा रहा था।
उस दिन भोर सवेरे नहा धो कर,
सब समय से पहले स्कूल पहुंच गये।
उस दिन पड़ोस का हामिद कृष्ण बना था,
विवेक बना था कलाम।
कहीं सड़कों पर फूल बिछे थे,
कहीं दुकानों पर तिरंगे सजे थे।
बूंदी की दुकाने भी कुछ अलग ही अकड़ में
मिठास छिड़क रहीं थी।
फिर क्षण भर में उत्पाद मचा,
और कोलाहल से शहर गूंज उठा।
कहीं गोलियां चली,
और कहीं बरसे ईंट पत्थर,
फिर लाठियों ने दम भरा
और देखते देखते,
उद्घोष उत्पाद हो चला,
कहीं आगजनी,
कहीं तोड़ फोड़,
और फिर शहर लाल,
निष्प्राण।
एक मां ने बेटा खोया,
और बाप का चिराग बुझा,
किसी ने आंख खोयी
किसी ने रोटी,
और तमाशबीन बनी
सियासत ने दांव अपने खेले।
उस दिन,
उस पल,
उस क्षण,
नफ़रत ने मेरे कान फुसफुसाया,
“मैं तुम सबके दिलों में अजर और अमर रहूंगी।”
~ रश्मि सिंह राजपूत
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय