गणतंत्र दिवस पर एक ज़रूरी संकल्प

गणतंत्र दिवस के अवसर पर इस बात का संकल्प लिया जाए कि इस देश का नागरिक होने के नाते हम इस देश के संविधान से और अपने संवैधानिक अधिकारों और दायित्वों से बाख़बर रहेंगे। इस बात का भी प्रण करें कि अपने और दूसरों के अधिकारों की रक्षा के लिए संवैधानिक राजनीति का हुनर सीखेंगे।

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सरज़मीन-ए-हिंदुस्तान इंसानी समाज की सबसे बड़ी, सबसे पुरानी, सबसे व्यापक और विभिन्न विचारधाराओं की प्रयोगशाला है। सदियों से ये सरज़मीन सारी दुनिया के इंसानों के लिए आकर्षण के विभिन्न सामान मुहैया करवाती रही है।

यूरोपीय, मध्य एशिया और मध्य पूर्व की सैकड़ों नस्लें इस देश को विविधता में एकता का केंद्र बनाती रही।

कोई भी शासक इस देश की विविधता को ख़त्म करने में कामयाब नहीं हुआ। आर्य आये लेकिन वो इस देश को मनुस्मृति की व्यवस्था में ढालने में विफल रहे, अशोक को भी आख़िरकार एहसास हो गया कि युद्ध ख़ुद एक समस्या है। मुग़लों ने भी हिन्दुओं का सम्मान करते हुए जंगें जीतीं। संकीर्ण मानसिकता वाले शासक यहां ख़ुद लड़ कर बर्बाद हो गए। ब्रिटिश साम्राज्य को इस देश की हिन्दू, मुस्लिम, सिख सभ्यताओं के साझा देश-प्रेम और साम्राज्यवाद विरोधी एकता का राज़ समझ नहीं आया तो उन्होंने इस जाति और धर्म के मतभेद को साम्प्रदायिकता और नफ़रत में बदलने की साज़िशें कीं लेकिन ये साम्राज्यवादी साज़िश भी नाकाम हो गयी।

आज़ादी की नई सुबह इस देश ने इन मतभेदों को अपनी ताक़त में बदलने का फ़ैसला किया। दुनिया की तारीख़ में एक ऐसा देश बनाने का फ़ैसला लिया गया जो इस मतभेद को ताक़त में बदलने के लिए एक संवैधानिक संधि करेगा। इस संधि में सभी शामिल होंगे। हर एक का अपना हिस्सा होगा। कोई बड़ा और कोई दूसरे दर्जे का नहीं होगा, कोई आक़ा और कोई मालिक नहीं होगा, संवाद और वाद-विवाद ही समझाइश की बुनियाद होगी। भारत का संविधान मानव प्रयोगशाला में एक ऐसा कामयाब दस्तावेज़ है जिसने उसके सभी भागीदारों को विश्वास, सम्मान और उत्तरदायित्व के साथ नागरिक अधिकार दिए हैं। कितने ही अरब, मुस्लिम, ईसाई, यहूदी, बौद्ध और नास्तिक देशों के साथ कितने ही देश ऐसे भी हैं, जो अपने समाज की विविधता का सम्मान करने में कामयाब नहीं हो सके लेकिन भारत कामयाब हुआ।

लेकिन इस कामयाबी के भी हज़ार दुश्मन हैं। घर के अंदर भी और बाहर भी। गणतंत्र दिवस की मुबारकबाद इस बात का एहसास दिलाती है कि हम इस मुल्क के नागरिकों के बीच अपने तमाम मतभेद और समस्याएं संविधान के दायरे में रहकर हल कर सकते हैं। गणतंत्र दिवस इस बात की भी याद दिलाता है कि इस देश में इस संविधान से बेख़बर रहने वाले, संविधान की ताक़त और विशेषता को ना समझने वाले, संवैधानिक जागरूकता से दूर रहने वाले समूह ही कमज़ोर नागरिक भी और कमज़ोर सियासतदां भी हैं।

गणतंत्र दिवस के अवसर पर इस बात का संकल्प लिया जाए कि इस देश का नागरिक होने के नाते हम इस देश के संविधान से और अपने संवैधानिक अधिकारों और दायित्वों से बाख़बर रहेंगे। इस बात का भी प्रण करें कि अपने और दूसरों के अधिकारों की रक्षा के लिए संवैधानिक राजनीति का हुनर सीखेंगे।

गणतंत्र दिवस की ढेर सारी शुभकामनाएं!

डॉ. उमैर अनस

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