क़ुरआन – रमज़ान – रोजा – हिदायत – तकवा!

रमज़ान की महत्ता  और उसकी सार्थकता को समझने के लिए क़ुरआन से रमज़ान के संबंध को समझना बहुत आवश्यक है ।इस संबंध को प्राप्त करने के लिए क़ुरआन की पांच शब्दावलियों की  एक कड़ी को समझना जरूरी है

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क़ुरआन-रमज़ान-रोजा -हिदायत-तकवा

रमज़ान के पवित्र महीने का पहला ‘अशरा’ यानी शुरूआती दस दिन बीत चुकें हैं। यह पवित्र महीना इंसानों के आध्यात्मिक प्रशिक्षण का महीना है।  नेकियों और पुण्य का बसंत यानी मौसम ए बहार है ,जहां बुराइयों को रोकने के लिए शैतान कैद कर दिया जाता है। हर तरफ अच्छी बातों, नेकी के कामों और समाज सेवा का जज़्बा और हौसला परवान चढ़ता रहता है.  लेकिन यह प्रश्न बहुत अहम है कि आखिर इस महीने का इतना महत्व क्यों है ? आखिर क्या कारण है इस महीने को दूसरे महीनों पर प्राथमिकता है?  इसका एक ही उत्तर है! क़ुरआन का इस महीने में अवतरित होना। इसलिए रमज़ान की महत्ता  और उसकी सार्थकता को समझने के लिए क़ुरआन से रमज़ान के संबंध को समझना बहुत आवश्यक है ।इस संबंध को प्राप्त करने के लिए क़ुरआन की पांच शब्दावलियों की  एक कड़ी को समझना जरूरी है. क़ुरआन-रमज़ान-रोजा -हिदायत-तकवा.

क़ुरआन-रमज़ान-रोजा -हिदायत-तकवा:

कुरआन  में सूरह फ़ातिहा में बन्दा ईश्वर से प्रार्थना करता है। जिसमें दुआ मांगता है कि मुझे सीधे रास्ते की तरफ हिदायत दे। इसके बाद सूरह बकरा आती है। और सूरह बक़रा का आरंभ इसी आयत (वाक्य) से होता है कि “ये किताब है,  इसमें कोई शक नही , मुत्तक़ीन के लिए मार्गदर्शन है” ये दुआ जो बन्दे ने अल्लाह से की थी कि  “ ए अल्लाह हमे सीधा रास्ता दिखा” तो उस रौशनी और सीधे रास्ते की मांग के उत्तर में अल्लाह फरमाता है कि ये है वो किताब और हिदायतनामा जो तुमने मांगी थी। ये क़ुरआन विशेषतः मुत्तक़ी लोगो के लिए मार्गदर्शन है. अर्थात इस पुस्तक से लाभान्वित वही हो सकते हैं, जिनके अंदर तक़वा हो। तक़वा दिल की दृष्टि और नज़र का नाम है.  एक व्यक्ति को इस बात की चेतना ही ना हो कि मुझे सत्य मार्ग की प्राप्ति करनी है तो अल्लाह भी इसे हिदायत नही देता है। ये एहसास पहले इंसान के दिल मे होना चाहिए की उसे हिदायत हासिल करना है तभी अल्लाह उसे हिदायत देता है। एक क़दम आप बढ़ाए तो एक क़दम अल्लाह तआला बढ़ाएगा ।

रोज़े का जो मक़सद बताया है वो ये है कि इंसान तक़वा इख़्तियार करे,  दूसरी तरफ़ रोज़े रमज़ान मे फर्ज किये गए है , रमज़ान ही मे क़ुरआन नाज़िल किया गया है,  और क़ुरआन से वही लोग मार्गदर्शन प्राप्त कर सकते हैं जो तक़वा रखते हों. और रोज़े का मक़सद तक़वा है।

लेकिन ये बात व्यवहारिक तौर हमारे सामने नही आती है कि ऐसा क़ुरआन मे क्या जादू है ?  क्या कशिश है ? जिससे हम दुनिया और आख़िरत दोनो की कामयाबी हासिल कर सके!

ये बात कहने में तो बहुत अच्छी लगती है कि हाँ क़ुरआन से मार्गदर्शन मिलता है, लेकिन इसको अमली तौर पर कैसे बरता जाए ये बात कोई नहीं समझाता। रमज़ान का जो महीना आता है वो इस रूह को दोबारा ज़िन्दा करने के लिए आता है। रमज़ान से लाभान्वित होने के लिए जब कहा जाता है तो  इसका मतलब ये होता है कि हम क़ुरआन से वो मार्गदर्शन हासिल करें जो उसमे है.

अल्लामा इक़बाल ने क़ुरआन से संबंध के तीन लेवल्स बताये हैं ।

 1 – क़ुरआन मे हो गौता ज़न ए मर्दे मुसलमां
      अल्लाह करे तुझको अता जिद्दते किरदार

            मुसलमानो को ये शिक्षा  दी गयी है कि क़ुरआन मे गौता ज़नी करो. क़ुरआन के अंतिम छौर तक हम पहुँचने की कोशिश करेगें तभी हमारे व्यक्तित्व का विकास होगा, जिस से एक खूबसूरत इंसानी शख्सियत का वर्जन निखर कर सामने आएगा। क़ुरआन पर जब तक हम विचार विमर्श नही करेगें तब तक हमें वो जीवन दर्शन प्राप्त नहीं हो सकता जो क़ुरआन चाहता है.  क़ुरआन पर  सोच विचार का अर्थ यह है  कि क़ुरआन कई बार  इंसान के शरीर पर, उसकी बनावट पर , ब्रह्मांड पर, पहाड़ो पर, आसमान पर व मवेशियों इत्यादि पर सोचने का आह्वान करता है, इन सारी चीज़ों पर कोई भी आम इंसान सोच  सकता है चाहे उसका पारंपरिक शिक्षा तंत्र से कोई सम्बन्ध ही न रहा हो. सोच विचार हमें अल्लाह के समीप ले जाता है।

 2 – तेरे ज़मीर पे जब न हो नुज़ूल ए किताब,
      गिरह कुशा है न राज़ी, न साहिब ए कश्शाफ़

            तेरे दिल पर जब तक ये किताब नाज़िल ना हो,  फिर ना राज़ी काम आता  है न साहिब ए कश्शाफ़, राज़ी एक बहुत बड़े मुफ़स्सिर गुज़रे हैं और कश्शाफ़ क़ुरआन की एक व्याख्या का नाम है. साहिब ए कश्शाफ़ का मतलब कश्शाफ़ नामी तफ़सीर लिखने वाले. अल्लामा इक़बाल ने कहा कि जब तक तुम्हारे दिल पर ये किताब नाज़िल न हो तो फिर क़ुरआन समझने के लिए ना राज़ी काम आता है ना साहिब ए कश्शाफ़. ये सब मुफ़स्सिर, ये तमाम विद्वान तब क़ुरआन समझने में सहयोग करते हैं, जब हम क़ुरआन को वैसे पढ़ते है जैसे कि वो हमारे ऊपर नाज़िल हो रहा हो। जब तक दिल पर कोई चीज़ अटैक ना करे, ज़मीर उसको अपील ना करे तो कोई बात अपना प्रभाव स्थापित नहीं कर सकती है । अल्लामा इक़बाल कहते है कि क़ुरआन को हम इस तरह पढ़ें कि ऐसा लगे जैसे ये क़ुरआन आज हम पर नाज़िल हो रहा हो, हमारे ज़मीर पर नाज़िल हो रहा हो,

तीसरा लेवल अल्लामा इक़बाल ने बताया कि

3 – ये राज़ किसी को नही मालूम कि मोमिन
      कारी नज़र आता है हक़ीक़त में है क़ुरआन 

            यह  राज़ किसी को नही मालूम कि लोगो को लगता है कि  मुसलमान कारी है, क़ुरआन की तिलावत करता है जबकि वास्तविकता ये है कि वो खुद कुरान का चलता फिरता नमूना होता है । किसी ने पूछा कि आप (सल्ल०) के अख़लाक़ कैसे थे? तो हज़रत आयशा (रज़ि०) ने जवाब दिया- “क्या आपने क़ुरआन नही पढ़ा?  उनके अख़लाक़ ऐसे थे जैसे वो क़ुरआन है” अथार्त क़ुरआन का व्यवहारिक नमूना. क़ुरआन एक थ्योरी है, और हम मोमिन के रूप में उसका एक प्रेक्टिकल नमूना। इसलिए कहा गया कि मोमिन केवल क़ुरआन को पढ़ने वाला नही होता है बल्कि वो खुद क़ुरआन की एक व्यवहारिक व्याख्या होता है।

जश्न ए क़ुरआन और क़ुरआनिक वर्कशॉप का महीना
      रमज़ान का पूरा महीना वास्तव में  जश्न ए क़ुरआन और क़ुरआनिक वर्कशॉप का महीना है। रमज़ान की बरकतें, उसकी फज़ीलते सिर्फ और सिर्फ इसलिए है कि इसमें क़ुरआन नाज़िल किया गया है, जो रहती दुनिया तक समस्त मानवता के लिए सत्य मार्ग दिखाने वाली पुस्तक  है और केवल  मुसलमानो के लिए ही नही बल्कि पूरी दुनिया के लोगो के लिए रौशनी है। ये हमारा दायित्व है कि क़ुरआन से हमारा संबन्ध  घनिष्ठ हो । दूसरा काम ये कि जो इस क़ुरआन से अनभिज्ञ हैं उनको इस क़ुरआन से परिचित कराएं, क़ुरआन के बारें लोगो को बताएं, उनको समझाएं कि जिस तरह क़ुरआन मोमिनो के लिए मार्गदर्शक और प्रकाश है, ठीक इसी तरह पुरी दुनिया के लोगो के लिए भी वो एक मार्गदर्शक साबित हो सकता है. अगर कोई भी व्यक्ति सच्चे दिल से क़ुरआन से लाभान्वित होना चाहे तो वह सत्य मार्ग की प्राप्ति कर सकता है.

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