आज सुप्रीम कोर्ट ने एक विधि छात्र की याचिका पर मुंबई में बेरहमी से जारी आरे वन की कटाई पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है। इस फैसले के बाद प्रकृति जीत गयी और विनाशकारी विकास नीति को शिकस्त मिली। यह ऐतिहासिक जीत है उन सभी सामाजिक एवं पर्यावरण कार्यकर्ताओं की जो इसके लिए लड़ाई लड़ रहे थे। दुनिया भर के उन सभी लोगों की जो आने वाली पीढ़ियों के लिए पर्यावरण सुरक्षित रखना चाहते हैं। जो सजग हैं, जागरुक हैं, जाग्रत हैं। वर्ना हमारे देश के अधिकतर लोग बेरहमी से पर्यावरण का कत्ल होते देखते रहते हैं और उनकी चेतना जाग्रत नहीं होती।
यही कारण है कि आज जलवायु परिवर्तन दुनिया के लिए एक चुनौती बन खड़ा हुआ है। आंकड़े दर्शाते हैं कि 19वीं सदी के अंत से अब तक पृथ्वी की सतह का औसत तापमान लगभग 1.62 डिग्री फॉरनहाइट (अर्थात लगभग 0.9 डिग्री सेल्सियस) तक बढ़ गया है। इसके अतिरिक्त पिछली सदी से अब तक समुद्र के जल स्तर में भी लगभद 8 इंच की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने 1974 के चिपको आंदोलन की याद दिला दी जब उत्तराखंड के रैंणी गांव की गौरा देवी के नेतृत्व में औरतों ने पेड़ों से चिपक कर उनकी कटाई को रुकवा दिया था। परिणामस्वरुप इंदिरा गांधी ने खुद दखल देकर वनों की कटाई रुकवा दी थी।
वास्तविकता यही है कि जिस प्रकार से पूंजीवाद ने विकास का चोला ओढ़ कर हमारी प्रकृति को नुकसान पहुंचाना शुरु किया है उसके लिए हमें ही जागना होगा। हमें ही आंदोलन बरपा करना होगा। यदि हम चुपचाप तमाशा देखते रहे तो आने वाली पीढ़ी क्या हम ही को अगले 10/12 साल में गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे। जिसकी शुरुआत अभी से हो चुकी है।
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार अकेले भारत में 1998 से 2017 के बीच बाढ़ के कारण 79.5 बिलियन डॉलर यानी 54,73,45,57,50,000 रुपये से ज़्यादा का नुकसान हुआ। एक रिसर्च के मुताबिक यदि देश में 12वीं क्लास तक का स्कूल खोलने में औसतन 2 करोड़ रुपये का खर्च आता है तो बाढ़ के कारण पिछले बीस सालों में जितना नुकसान हुआ है उससे देशभर में 2 लाख 73 हज़ार 6 सौ से अधिक इंटरमीडिएट स्तर के स्कूल खोले जा सकते थे।
पिछले साल केरल में आयी बाढ़ के कारण 27 लाख लोग बेघर हुए जिसमें अकेले 15 लाख लोग केरल से ही थे। 2 हज़ार से अधिक मकान ध्वस्त हो गए जबकि 22 हज़ार मकानों को नुकसान पहुंचा। इसके अलावा समुद्रतटीय इलाकों में कई चक्रवाती तूफानों के कारण करीब 7 लाख लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा।
एक ओर बाढ़ के कारण देश को इतना भयानक नुकसान झेलना पड़ता है तो दूसरी ओर भीषण गर्मी और सूखे की भी मार झेलनी पड़ती है। धरती के बढ़ते तापमान के कारण उत्पादकता में निरंतर गिरावट दर्ज की जा रही है। भारत एक कृषि प्रधान देश है जहां सबसे ज़्यादा लोगों को खेती के कारण रोज़गार मिला हुआ है और उसके लिए अधिक शारीरिक श्रम की अधिक आवश्यकता पड़ती है। बढ़ती गरमी के कारण खेती पर पड़ने वाले प्रभाव से लोगों की नौकरियां जा रही हैं।
अंतर्राष्ट्रीय मजदूर संगठन (ILO) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार 2030 तक दुनियाभर में 8 करोड़ लोगों को नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा जबकि भारत में बढ़ती गर्मी के कारण 3.4 करोड़ नौकरियां समाप्त हो जाएंगी। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार अब तक हीट वेव्स के कारण लगभग 150,000 से अधिक लोगों की जानें जा चुकी हैं।