हामिद अंसारी की ‘चिंता’ पर तटस्थ होकर विमर्श करने की आवश्यकता

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भारत के 12वें उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने सेवानिवृत्त होने से पूर्व विभिन्न साक्षात्कारों मे कहा कि ‘देश मे अल्पसंख्यक समुदाय असुरक्षा की भावना मे जीवन व्यतीत कर रहा है व लोगों की भारतीयता पर सवाल खड़े करने की प्रवृत्ति भी बेहद चिंताजनक है’| उनके इस बयान ने कई प्रकार के सवालों को खड़ा कर दिया है| होना तो ये चाहिए था कि विदाई जैसे भावुक क्षणों मे देश मे उनकी उपलब्धियों व कारनामों पर चर्चा होती लेकिन राजनीतिक दलों ने मर्यादा की सारी सीमाऐं पार कर इस बयान को भी स्वंय के हितों से दुषित कर दिया| हामिद अंसारी के अतीत और विभिन्न पदों पर रहते हुए कार्यों को नहीं भुलाया जा सकता है| राज्यसभा मे चल रहे उनके विदाई सत्र मे भी प्रधानमंत्री और वहां मौजूद सांसदों ने भी इसका जिक्र किया है| उन्होने दुनिया के विभिन्न देशों मे एक राजदूत के तौर पर भारत का न सिर्फ प्रतिनिधित्व किया बल्कि कई अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर एक सफल कुटनीतिक के रुप मे अपनी पहचान भी बनाई है|

इन सारी चीज़ों से वर्तमान विवाद का विषय यह है कि क्या हामिद अंसारी की ये चिंता देश की परिस्थितियों के प्रतिकूल है ? क्या उन्होनेे सही अर्थ मे अल्पसंख्यकों का सरकार के प्रति अविश्वास के रवैये को जाहिर किया है ? ये सही है कि हाल ही मे भीड़ द्वारा हुई निर्दोषों की हत्या की घटनाओं ने दुनिया भर मे भारत की छवि धुमिल की है बल्कि अंतर्राष्ट्रीय मिडिया संस्थानों ने तो इसे सरकार की विफलता से जोड़कर देखा है| ऐसी दशा मे पूर्व उपराष्ट्रपति का बयान और महत्तपूर्ण हो जाता है| वर्तमान भारत के सामने पहले ही पड़ोसी देशों के साथ विभिन्न चुनौतियों का सामना है ऐसी स्थिति मे देश के अंदर साम्प्रदायिक वाद – विवाद पर आम आदमी का चिंतित होना स्वाभाविक है| एक गैर राजनीतिक व्यक्ति के बयान पर बिना वैचारिक पूर्वाग्रह के विधिवत विमर्श होना चाहिए|

अगर देश में अल्पसंख्यक समाज के अंदर वाकई कोई दुर्भावना है तो उसका सरकार के साथ सामाजिक स्तर पर समाधान होना चाहिए| समाज के प्रबुद्ध , उदार व चिंतनशील तबके को ये मनन करने की आवश्यकता है कि कहीं लोकतंत्र के मूलभूत मूल्य अतिराष्ट्रवाद की ज़द मे तो नहीं है? बहुतलवादी संस्कृति सिर्फ हमारी पहचान ही नहीं बल्कि हमारे अस्तित्व की धुरी भी है| दूसरी ओर अल्पसंख्यक समुदाय को भी देश की मुख्यधारा से जुड़कर ‘वसुधैव कुटम्बकम’ की भावना को आगे लेकर बढ़ना चाहिये तब ही सही मायने मे हम दुनिया का नेतृत्व कर सकते हैं|

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