रिपोर्ट : जामिया छात्रों के साथ दिल्ली पुलिस द्वारा यौन उत्पीड़न किया गया : एनएफआईडब्ल्यू

रिपोर्ट प्रदर्शन में शामिल 16 से 65 वर्ष तक की महिलाओं से हुए संवाद के आधार पर ये दावा करती है कि छात्राओं के साथ पुलिस के जवानों के द्वारा छेड़छाड़ की गई एवं महिलाओं के कपड़े फाड़ने की कोशिश भी हुई,इस दौरान कई छात्राओं को शरीर के कई हिस्सों में गम्भीर चोट आई और उन्हें कई दिनों तक अस्पताल में रहना पड़ा। ठीक यही व्यवहार छात्रों के साथ भी किया गया। पुलिस की बर्बर कार्यवाही सिर्फ बेरिकेड्स तक ही सीमित नही रही बल्कि प्रदर्शन स्थल से डिटेन किए गए 30 से अधिक छात्रों को बस में गम्भीर रूप से प्रताड़ित किया गया,छात्रों के प्राइवेट पार्ट्स पर जूतों से मारा गया और धमकियां दी गयी।

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महिला अधिकारों के लिए प्रख्यात भारतीय राष्ट्रीय महिला फेडरेशन (एनएफआईडब्ल्यू) द्वारा एक रिपोर्ट जारी की गयी है,रिपोर्ट में 10 फरवरी को जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में हुए विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिस के हमले में कम से कम 45 छात्रों ( 15 महिलाएं और 30 पुरुष) के साथ पुलिसकर्मियों द्वारा यौन उत्पीड़न की बात कही गयी है,रिपोर्ट पुलिस की कार्यवाही में रासायनिक गैस के इस्तेमाल की भी बात करती है।

 

वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से रिपोर्ट जारी करते हुए, एनएफआईडब्ल्यू की अध्यक्ष अरुणा रॉय ने कहा कि सरकार को पुलिस कर्मियों द्वारा किए गए अपराधों की जघन्य प्रकृति की जांच करने और पुलिस की बर्बरता के शिकार पीड़ितों को उचित मुआवजा देने के लिए एक विशेष न्यायिक जांच स्थापित करनी चाहिए।

प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता और पूर्व सिविल सेवक, अरुणा रॉय ने कहा

” कि महिलाओं पर यौन हमला और प्रदर्शनकारियों के साथ पुलिस की हिंसा अभूतपूर्व है। उन्होंने कहा कि जामिया के छात्रों और निवासियों पर पुलिस द्वारा क्रूरता से हमला किया गया था,जबकि वे नागरिकता संशोधन अधिनियम, राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (सीएए, एनआरसी और एनपीआर) के खिलाफ शांतिपूर्वक विरोध कर रहे थे जैसा कि हम पहले भी जेएनयू और जामिया में इस तरह के हमलों को देख चुके हैं जहां बिना नेम प्लेट और बैज के पुलिस कर्मी और बिना यूनिफॉर्म के आम पहनावे में हमलावर हैलमेट पहनकर छात्रों पर करते हैं ”

इस अवसर पर संगठन के राष्ट्रीय महासचिव एनी राजा ने कहा कि

” लोकतंत्र में किसी को भी उस तरह की बर्बरता नहीं झेलनी पड़े, जो के छात्रों ने 10 फरवरी को शांतिपूर्ण प्रदर्शन के दौरान झेली थी ”

रिपोर्ट के अनुसार, जामिया के छात्रों और शिक्षकों ने दो विशिष्ट मुद्दों को रेखांकित किया था,
1) छात्राओं के साथ हिंसा और
2) शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर रासायनिक गैस का उपयोग।

 

10 फरवरी 2020 को जामिया में हुई हिंसा” पर फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट में कहा गया है कि छात्रों के गुप्तांगों में हमला किया गया था,छात्रों पर 15 महिलाएं एवं 30 पुरुष छात्र थे।

रिपोर्ट प्रदर्शन में शामिल 16 से 65 वर्ष तक की महिलाओं से हुए संवाद के आधार पर ये दावा करती है कि छात्राओं के साथ पुलिस के जवानों के द्वारा छेड़छाड़ की गई एवं महिलाओं के कपड़े फाड़ने की कोशिश भी हुई,इस दौरान कई छात्राओं को शरीर के कई हिस्सों में गम्भीर चोट आई और उन्हें कई दिनों तक अस्पताल में रहना पड़ा।

ठीक यही व्यवहार छात्रों के साथ भी किया गया। पुलिस की बर्बर कार्यवाही सिर्फ बेरिकेड्स तक ही सीमित नही रही बल्कि प्रदर्शन स्थल से डिटेन किए गए 30 से अधिक छात्रों को बस में गम्भीर रूप से प्रताड़ित किया गया,छात्रों के प्राइवेट पार्ट्स पर जूतों से मारा गया और धमकियां दी गयी।

10 फरवरी को प्रदर्शनकारियों पर दिल्ली पुलिस द्वारा किए गए इस भयानक हमले के मद्देनजर, एनएफआईडब्ल्यू ने निम्नलिखित मांगें रखी हैं :

1 ) गृह मंत्रालय को 10 फरवरी 2020 की शाम की हुई घटनाओं पर श्वेत पत्र जारी कर स्पष्टीकरण देना चाहिए, जिसमें पुलिस स्टेशन और बेरिकेड्स पर हुई पुलिस की हिंसा को शामिल किया जाए।

2) सरकार को पुलिस की वर्दी में पुरुषों द्वारा किए गए अपराधों की जघन्य प्रकृति की एक विशेष न्यायिक जांच करना चाहिए।

ग) पूछताछ के अलावा, डॉक्टरों की एक टीम गठित की जाए जो प्रदर्शनकारियों पर रसायनों के उपयोग और घायल हुए प्रदर्शनकारियों की चोटों की प्रकृति पर एक सार्वजनिक रिपोर्ट की जांच करे और उसे हमारे समक्ष रखे।

d) निहत्थे प्रदर्शनकारियों द्वारा चोटों के संबंध में आज तक कोई एफआईआर नहीं दर्ज की गई है। घायल हुए छात्रों की चिंता को तुरंत नोट किया जाना चाहिए। उत्पीड़न और खतरों को रोकने की भी जरूरत है।

ई) वर्दी में पुरुषों द्वारा किए जा रहे अपराध और ज्यादती दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है, हम न केवल पुलिस सुधारों की नीति के बारे में पूछते हैं, बल्कि न्यायमूर्ति वर्मा आयोग की रिपोर्ट के संबंधित अनुभागों को भी लागू करने की बात करते हैं, जिसे सरकारों द्वारा आसानी से नजरअंदाज कर दिया गया है।

f) यह न केवल पुलिस द्वारा की गई क्रूरता है, बल्कि इस्लामोफोबिक विचारधारा है,पुलिस महकमे में बढ़ रही इस सोच को तुरंत प्रभाव से सम्बोधित किया जाना चाहिए।

छ) आखिर में,प्रदर्शन के दौरान घायल हुए छात्रों को उचित मुआवजा देने की मांग करते हैं।

एनएफआईडब्ल्यू की इस फैक्ट फाइंडिंग टीम में कोनिनिका रे, रुश्दा सिद्दीकी और सुप्रिया छोटानी शामिल थे,ये सभी एनएफआईडब्ल्यू की राष्ट्रीयकार्यकारी परिषद के सदस्य हैं

सोर्स -नेशनल हेराल्ड

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