जनता के स्वाभाव और व्यवहार में बदलाव के बिना पर्यावरण संरक्षण संभव नहीं है. इस संबंध में यह बहुत महत्वपूर्ण है कि पर्यावरण संरक्षण और उत्तरदायी जीवन को
जनता के स्वाभाव का हिस्सा बनाया जाए. इस काम का एक भाग नियमित रूप से जनता का संवेदीकरण करना और छात्रों में जो भारत का भविष्य हैं उपरोक्त मूल्यों को बढ़ाने के लिए शिक्षा प्रणाली में पर्याप्त और प्रभावी बदलाव करना शामिल है.
पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों की व्याख्याएँ मौजूदा क्षेत्रों से कम नहीं होना चाहिए. किसी भी तरह के अपवाद की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. इन व्याख्याओं का और अधिक विस्तार किया जाना चाहिए जिससे निवास क्षेत्रों में रहने वाले उन जनजातियों को भी शामिल किया जा सके जो रहन-सहन की पारंपरिक शैली को अपनाए हुए हैं.
पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन नागरिकों की भागीदारी के बिना संभव नहीं है. जनता और नागरिक समाज को पर्याप्त समय सीमा के साथ अनिवार्य रूप से सार्वजनिक सुनवाई में शामिल होना चाहिए. स्थानीय हो या कोई अन्य, प्रतिनिधित्व के लिए कोई कटौती नहीं होनी चाहिए. इसी तरह, जनसुनवाई में शारीरिक उपस्थिति के साथ-साथ लिखित प्रस्तुतियाँ भी होनी चाहिए. किसी भी परियोजना को इसके बिना अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, चाहे वह नई परियोजनाएं हो या मौजूदा परियोजनाओं का विस्तार. जन सुनवाई और विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति की एक नियत प्रक्रिया के बिना किसी भी आकार के विस्तार की अनुमति नहीं होनी चाहिए.
(2) पर्यावरण मंजूरी की प्रक्रिया में वैज्ञानिकों और सक्षम विशेषज्ञों को शामिल करना चाहिए, जो उचित परिश्रम के साथ सख्त दिशानिर्देशों का पालन करते हों. डिजिटल टेक्नोलॉजी के उपयोग के कारण जारी प्रक्रिया में समझौता नहीं होना चाहिए. ग्लोबल वार्मिंग के तेजी से बदलाव और प्रभाव को देखते हुए, प्रत्येक मौसम के लिए डेटा संग्रह और डेटा अपडेट का काम होना चाहिए ताकि जैव विविधता पर परिवर्तन और प्रभाव का संज्ञान लिया जा सके.
नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन करने या नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के माध्यम से कानूनी सहारा लेने या न्यायिक हस्तक्षेप की मांग पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया जाना चाहिए.
कार्योत्तर मंजूरी का अनुमोदन प्रस्ताव पर्यावरणीय कानून की मूल संरचना के खिलाफ है. सुप्रीम कोर्ट के अनुसार पूर्वव्यापी पर्यावरण संबंधी मंजूरी भी अवैध है और इसलिए इसे किसी भी तरीके से उचित नहीं ठहराया जाना चाहिए. ऑनलाइन जमा करने में आसानी को देखते हुए, अनुपालन रिपोर्ट्स को वर्ष में दो बार वर्तमान दर पर बनाया जाना चाहिए, जो हर छह महीने में जमा हों.
पर्यावरण मंजूरी की वैधता को संशोधित किया जाना चाहिए :
खनन परियोजनाएं 15 साल के लिए और नदी घाटी परियोजनाओं सहित अन्य सभी परियोजनाएं 5 साल के लिए पारित होनी चाहिए.
स्क्रीनिंग, जन सुनवाई और अनुमोदन की उचित प्रक्रिया के बिना किसी भी उद्योग को अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.
मशीनीकृत बड़े पैमाने के उत्पादन के बिना सूक्ष्म या छोटे आकार के गृह उद्योग जो पारिस्थितिक और जैव क्षेत्र को हानि नहीं पहुचाते हैं उन्हें छूट दी जा सकती है.
सभी परियोजनाओं के बारे में जानकारी विधिवत घोषित की जानी चाहिए और पब्लिक डोमेन से किसी भी जानकारी को वापस नहीं लेना चाहिए.
रणनीतिक या संवेदनशील प्रकृति की किसी भी परियोजना को मौजूदा रक्षा भूमि के भीतर रखा जा सकता है, जो निर्धारित अधिकार और अधिकार क्षेत्र के साथ प्रासंगिक प्राधिकारी द्वारा गठित समितियों को सौंपे गए मूल्यांकन और निगरानी कार्यों के साथ होता है।
रेड और ऑरेंज केटेगरी के उद्योगों के लिए पर्यावरण मंजूरी प्रक्रिया में सार्वजनिक परामर्श और ईएसी की मंजूरी जरुर होनी चाहिए और केटेगरी बी 2 में रेड और ऑरेंज केटेगरी का कोई भी उद्योग शामिल नहीं होना चाहिए.
रेड और ऑरेंज केटेगरी के उद्योगों के वर्गीकरण को केटेगरी बी 2 में स्थानांतरित करना कानून में प्रतिगामी है और EPA 1986 के अनुरूप नहीं है (निति शंकर देशपांडे बनाम UoI- सरकार का कर्तव्य कानून को मजबूत बनाना है उसे कमजोर करना नहीं)
(3) क्षमता से स्वतंत्र सभी नदी घाटी परियोजनाओं को केटेगरी ए में शामिल किया जाना चाहिए. ऐसी नदी घाटी परियोजनाओं के अनुमोदन से पहले, स्वतंत्र, विधिवत मान्यता प्राप्त निकाय द्वारा एक संचयी ईआईए अनिवार्य किया जाना चाहिए.भारतीय संघ की संघीय प्रकृति को जिस तरह संविधान में लिखा गया है वैसे ही ज़रुर कायम करना चाहिए।
केंद्र सरकार को किसी भी मामले में अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर नहीं जाना चाहिए और राज्यों के अधिकारों और प्राधिकरणों का सम्मान करना चाहिए.
हमें उम्मीद है कि उपर की गई सिफारिशों को अनुकूल माना जाएगा.
साभार
सैयद अजहरुद्दीन
जनरल सेक्रेटरी, SIO इंडिया
[email protected],www.sio-india.org