अल्पसंख्यक स्कूल जांच के दायरे में: अल्पसंख्यक संस्थानों पर NCPCR रिपोर्ट का अवलोकन
-सआ’दत हुसैन
‘शिक्षा का अधिकार’ कुछ विवादास्पद कारणों से इस समय ख़बरों में है। बीजेपी नेताओं द्वारा पिछले दो हफ़्तों में इस मामले में दो अलग-अलग जनहित याचिकाएं दायर की गई हैं – एक, यूपी बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा के जावेद मलिक द्वारा, और दूसरी, एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय द्वारा, जो जंतर-मंतर पर नारेबाज़ी से चर्चा में आए थे। दोनों याचिकाएं मोटे तौर पर एक ही बात पर बहस करती हैं; कि आरटीई अधिनियम, 2009 में अल्पसंख्यक स्कूलों को दी गई छूट, अल्पसंख्यक बच्चों को समानता के मौलिक अधिकार से वंचित करती है, NCPCR ने भी हाल ही में अपनी 2021 की रिपोर्ट में यही वकालत की है, “अल्पसंख्यक समुदायों की शिक्षा पर भारत के संविधान के अनुच्छेद 21A के अनुसार अनुच्छेद 15 (5) के तहत छूट का प्रभाव।” इसके अलावा, अश्विनी उपाध्याय की याचिका देश भर में पाठ्यक्रम के समरूपीकरण की वकालत करती है, जिसके अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान उल्लंघन करते हुए देखे जा सकते हैं। जावेद मलिक याचिका में यह भी तर्क दिया गया है कि कथित अभाव अनुच्छेद 21ए और अनुच्छेद 14 के विपरीत है। क्या अल्पसंख्यक स्कूल ग़लत तरीक़े से छात्रों को शिक्षा के मौलिक अधिकार से वंचित कर रहे हैं, जो संविधान के तहत गारंटीकृत है? हमें रिपोर्ट के साथ-साथ अल्पसंख्यकों के अपने संस्थानों को चलाने के अधिकार के आसपास लंबे समय से चली आ रही बहस पर गहराई से विचार करना चाहिए।
परिचय
NCPCR (राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग) की रिपोर्ट जो मार्च 2021 में जनता के सामने आई, अपने उद्देश्यों को इस प्रकार परिभाषित करती है “… यह सुनिश्चित करने के लिए कि अल्पसंख्यक संस्थानों द्वारा उनके स्कूलों में भर्ती सभी छात्रों (उनकी ग़ैर-अल्पसंख्यक या अल्पसंख्यक पहचान से इतर) के लिए उद्देश्यों को पूरा किया जा रहा है, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) का यह विचार था कि अनुच्छेद 15 (5) के तहत अल्पसंख्यक संस्थानों को पोषित करके अल्पसंख्यक समुदायों के बच्चों को लाभान्वित करने के वास्तविक उद्देश्य की जांच की जानी चाहिए।”
लेकिन यह मानना हमारे लिए अदूरदर्शी होगा कि अनुच्छेद 15(5) सरकार के लिए कोई अनुल्लंघनीय क़ानून रहा है। आरटीई अधिनियम 2009 की धारा 12(1)(सी) का लाभ उठाकर कर शैक्षणिक संस्थानों द्वारा आम तौर पर अनुच्छेद 15 और अनुच्छेद 15(5) के उल्लंघन का दावा त्रुटिपूर्ण है क्योंकि, आरटीई अधिनियम 2009 की धारा 12(1)(सी) ने, भारत के संविधान के अनुच्छेद 15(5) की स्पष्ट रूप से निर्दिष्ट सामाजिक श्रेणियों को हटाकर आरक्षण के विचार को कमज़ोर कर दिया है।
क्या आरटीई अधिनियम 2009 संवैधानिक रूप से चिह्नित वर्गों यानि “सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के नागरिकों या अनुसूचित जातियों या अनुसूचित जनजातियों” से, “आसपास के कमज़ोर वर्ग और वंचित समूह से संबंधित बच्चे” के रूप में बदलकर आरक्षण के विचार को कमज़ोर नहीं कर रहा है? यदि कोई मानता भी है कि आरटीई अधिनियम में उक्त सामाजिक समूहों में एससी, एसटी और ओबीसी शामिल हैं, तो इस तथ्य को जानने के बाद भी कि एससी, एसटी, ओबीसी की आबादी 50% से अधिक है, क्या इस बड़ी आबादी के लिए केवल 25% आवंटित करना उचित है?
लक्ष्यीकरण का एक लंबा इतिहास
अल्पसंख्यक समुदायों से संबंधित छात्रों के लिए ‘आधुनिक शिक्षा’ की कमी या न मिलने की चिंता लंबे समय से पनप रही है। यह मदरसों(आतंक, पिछड़ेपन, रूढ़िवादिता और रट्टा सीखने के केंद्र के रूप में देखे जाने वाले) और हाल ही में, ईसाई स्कूलों (धर्मांतरण के केंद्र के रूप में मशहूर, विडंबना यह है कि कॉन्वेंट स्कूल सभी समुदायों में उनकी विशिष्ट अंग्रेज़ी भाषा शिक्षा के लिए अत्यधिक प्रतिष्ठित और बेशक़ीमती भी माने जाते हैं) पर विशेष ध्यान देने के साथ-साथ जारी है।
रिपोर्ट में, प्रमति एजुकेशनल एंड कल्चरल… बनाम भारत संघ और अन्य, 6 मई 2014 का हवाला देकर तर्क दिया गया है कि अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों को दी गई छूट के कारण अनुच्छेद 15(5) का घोर उल्लंघन हुआ है। चूंकि रिपोर्ट का केंद्र बिंदु मुस्लिम अल्पसंख्यकों के साथ-साथ उनके शैक्षणिक संस्थान और मदरसे हैं, इसलिए समुदाय के वर्तमान शैक्षणिक परिदृश्य को देखने पर यह प्रश्न अधिक प्रासंगिक हो जाता है। रिपोर्ट में ख़ुद देखा गया है कि ‘स्कूल से वंचित’ बच्चों में से अधिकांश मुस्लिम समुदाय से हैं। लेकिन रिपोर्ट में यह नहीं बताया गया है कि इसके लिए कौन ज़िम्मेदार है! हालांकि अल्पसंख्यक समुदाय को अपने स्वयं के उत्थान के लिए संस्थानों को चलाने का अधिकार दिया गया है, इसका मतलब यह नहीं है कि राज्य सभी को, बिना किसी पक्षपात के, मौलिक और बुनियादी शिक्षा प्रदान करने की अपनी क़ानूनी ज़िम्मेदारी और संवैधानिक प्रतिबद्धता से बच सकता है।
डेटा की कमी
रिपोर्ट में डेटा की कमी सहित अन्य बड़ी ख़ामियां हैं। रिपोर्ट में पाया गया है कि छूट के परिणामस्वरूप, “दिशानिर्देशों के अभाव में, अल्पसंख्यक स्कूलों ने मनमाने ढंग से काम किया, छात्रों के प्रवेश, शिक्षकों की भर्ती, पाठ्यक्रम के कार्यान्वयन, पठन-पाठन, आदि के संदर्भ में अपने स्वयं के मानदंड स्थापित किए।” क्या इस ‘संस्थागत अभाव’ के दावे को साबित करने के लिए व्यापक अध्ययन किया गया है? इसके अलावा, यदि स्कूली बच्चों का बड़ा हिस्सा मुस्लिम समुदाय से है, जैसा कि रिपोर्ट में ठीक ही कहा गया है, तो यह पूछने की ज़रूरत है कि निजी स्कूलों में वंचित बच्चों के 25% आरक्षण के अलावा आरटीई अधिनियम को कहां तक लागू किया गया है।
नई रिपोर्ट, पुरानी रूढ़िवादिता
रिपोर्ट अन्य धर्मों के शिक्षण संस्थानों पर पर्याप्त ध्यान दिए बिना, मदरसा प्रणाली पर अत्यधिक ध्यान केंद्रित करती है। जब हम पेज 80 पर दिए गए फ़तवों के स्क्रीनशॉट देखते हैं तो यह और भी अधिक स्पष्ट हो जाता है। मुसलमानों के बीच फ़तवों का क्या महत्व है! जबकि यह साबित करने के लिए कोई अध्ययन नहीं है कि शिक्षा के चुनाव के मामले में वे अपने स्कॉलर्स (जो केवल ग़ैर-बाध्यकारी क़ानूनी राय प्रदान करते हैं) से कितना प्रभावित होते हैं।
मदरसों का अध्ययन करने के लिए देश भर में यात्रा करने के बजाय रिपोर्ट ने परामर्श कार्यशालाओं के संचालन का आसान रास्ता अपनाया। इन कार्यशालाओं में भाग लेने वाले सदस्य एक भी प्रतिनिधित्वात्मक नमूना भी पूरा नहीं करते। बाक़ी 21 राज्यों और छह केंद्र शासित प्रदेशों के मदरसा शिक्षा के हितधारकों पर विचार किए बिना, रिपोर्ट सामान्यीकरण कैसे कर सकती है?
निष्कर्ष
NCPCR की रिपोर्ट मदरसों में पढ़ने वाले बच्चों का ‘स्कूल से वंचित’ बच्चों के साथ संबंध स्थापित करना चाहती है (इस तथ्य की अनदेखी करते हुए कि कई बच्चे मदरसों और अन्य स्कूलों दोनों में जाते हैं); यह, कोई सीमा निर्धारित किए बिना, कुछ स्कूलों में हिजाब या लैंगिक भेदभाव के अवलोकन की ओर इशारा करती है और न ही निर्णायक रूप से यह तय करती है कि क्या यह स्वास्थ्य या सार्वजनिक नैतिकता को नुकसान पहुंचाता है! रिपोर्ट यह भी तर्क देती है कि अल्पसंख्यक स्कूल वास्तव में पर्याप्त अल्पसंख्यक छात्रों को नहीं पढ़ा रहे हैं।
इस तरह की रिपोर्ट पहले से पड़ी याचिकाओं की आग में घी का काम करती हैं, जैसे कि यह नवीनतम याचिका जो अल्पसंख्यक स्कूली शिक्षा को एक ऐसे माहौल में और कमज़ोर करने की कोशिश करती है जहां मुस्लिम छात्रों को विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जैसे उडुपी (कर्नाटक) में मुस्लिम लड़कियों को हिजाब के अधिकार से वंचित करने का हालिया उदाहरण या बजरंग दल द्वारा धर्मांतरण के कथित केंद्र के रूप में कई ईसाई स्कूलों को निशाना बनाए जाने की घटनाएं आए दिन घटित हो रही हैं।