‘टेक्नॉलजी छात्रों की ध्यान अवधि को कैसे प्रभावित करती है’
–अफीरा मरियम
अनुवाद: उसामा हमीद
आप किसी की ओर ध्यान दें, इससे बढ़कर सम्मान देने की क्या बात हो सकती है। मानव मस्तिष्क के लिए, जो इतनी जटिलता से बना है, यह समझना कठिन नहीं है कि ध्यान और फोकस एक सफल मानव अनुभव की महत्वपूर्ण आवश्यकताएं हैं। ध्यान का अर्थ एक विशेष अवधि के लिए विस्तार पर निरंतर ध्यान केंद्रित करना है। बच्चे कम ध्यान अवधि के साथ पैदा होते हैं, हालांकि, जैसे-जैसे वे बड़े होते हैं इसमें काफी बदलावआता है। जीवविज्ञान ने इसे हमारे अस्तित्व के लिए ऐसा ही बनाया है। जब हम स्वेच्छा से उन विभिन्न सामाजिक प्रणालियों का हिस्सा बनना चाहते हैं, जो जीवन में अधिक चुनौतीपूर्ण समस्याओं को हल करने में हमारी मदद करती हैं, जैसे, हमारी नौकरी, करियर विकल्प, स्वास्थ्य और पारस्परिक संबंध इत्यादि तो हमारी ध्यान अवधि स्वयं लंबी होने लगती है।
टेक्नॉलजी की घुसपैठ हमारी सीखने की परंपरा का एक हिस्सा बन गई है:
अगर हम अपने सीखने के तरीके में हुए हालिया बदलाव को देखें, तो हमें आश्चर्य होता है कि दशकों पहले हम अपनी कक्षाओं में जो कुछ किया करते थे, क्या वह सामयिक रूप से नीरसता का अभ्यास था। हालाँकि शायद जो नीरस लग सकता है वह निरंतर ध्यान का उत्पाद रहा हो। जब हम हाल के दशकों में हुई तकनीकी उछाल के बारे में सोचते हैं, तो हम देखते हैं कि अस्थिर ध्यान सीखने की दिशा में बहुत बड़ा अवरोध बन गया है।
ऐप्स से लेकर ऑनलाइन सभी प्रकार की सूचनाओं तक, बड़ी संख्या में तकनीकी उत्पाद जिनका हम उपभोग करते हैं, हमारे बदलते सांस्कृतिक और शैक्षिक परिदृश्य की अभिव्यक्ति है। यह एक ऐसी दहलीज है जिसे हमने पूर्ण रूप से पार कर लिया है और अब हम कभी उस ‘पुराने तरीके’ पर वापस नहीं जाने वाले। यह एक सतत क्रांति भी है क्योंकि हम समय-समय पर उठने वाली अपनी विभिन्न जरूरतों के लिए ऐप्स पर तेजी से निर्भर होते जा रहे हैं। कई बार हम स्वयं को यह पूछते हुए पाते हैं कि क्या हमारे शिक्षार्थी निरंतर व्यस्त रहना भी चाहते हैं? या हम कहीं तो सीमा रेखा खींचते हैं?
यह सत्य है कि एक ऐसी पीढ़ी जो कभी भी इंटरनेट के बिना नहीं रही, टेक्नॉलजी की मुख्य उपभोक्ता है। अतः स्कूल में, जो इस तरह कीतकनीकी और सांस्कृतिक परिदृश्य का एक सूक्ष्म रूप हैं, शिक्षण पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है? महामारी के दो वर्षों में सीखने की प्रक्रिया ने यह मूल्यांकन करने में एक दिलचस्प अंतर्दृष्टि प्रदान की है कि टेक्नॉलजीवास्तव में शिक्षण और सीखने के साथ कहां तक जा सकती है।
मैं शिक्षा के क्षेत्र में तकनीक के एकीकरण की बड़ी समर्थक हूं। लेकिन मुझे यह भी लगता है कि जब सीखना तकनीक-आधारित हो जाता है, तो यह ‘वन-डायमेंशनल लर्निंग साइलो (एक आयामी शिक्षण तहखाना)’ के निर्माण की ओर ले जा सकता है। एक शिक्षक के रूप में यह मेरी धारणा है, क्योंकि शिक्षण के लिए जरूरी है कि शिक्षण की प्रक्रिया के साथ पूर्ण रूप से और भावनात्मक रूप से संवाद होना चाहिए,मेरा यह भी मानना है कि यदि संदर्भ बहु-आयामी है तो यह संवाद मजबूत हो सकता है। उदाहरण के लिए- आम विश्वास के विपरीत, हम शिक्षकों को पता है कि एक जीवंत अनुभव, जहां एक छात्र भौतिक स्थान में खोजकरता है, महसूस करता है, सोचता और चिंतन करता है, VR (आभासीवास्तविकता) संग्रहालय से अधिक शक्तिशाली है। किसी वास्तविक संग्रहालय की यात्रा एक विशाल वास्तविकता का प्रभाव पैदा कर सकती है जिसमें विभिन्न काल खंडों की कलाकृतियां सँजोई होती हैं, और रोमांचक प्रश्नों के लिए जगह व अवसर पैदा करती है।
मैं देखती हूं कि छात्रों का भरोसा इन सर्च इंजनों पर तेजी से बढ़ रहा हैऔर वे आवश्यक जानकारी वहाँ से ‘खोजने’ में सक्षम हो रहे हैं। यह बहुत तेज भी होता है, शायद मिली सेकंड में, और वे इस समय में जानकारी तक पहुँच जाने के लिए आंतरिक रूप से खुद को पुरस्कृत करते हैं। सूचना तक पहुँचना ज्ञान की रचना नहीं है। ब्लूम की टैक्सोनॉमी के अनुसार, एक शिक्षार्थी जानने और समझने से लेकर उसे लागू करने और अंतत: एक उत्पाद बनाने की ओर बढ़ता है। इस परासंज्ञानात्मक अवस्था में जाने के लिए, जहाँ नया ज्ञान सृजित होता है, ध्यान की निरंतरता आवश्यक है।
उत्तरों की उपलब्धता भी हमेशा जिज्ञासा का पोषण नहीं करती है, हालांकि उत्तर खोजने की प्रक्रिया सीखने का सबसे रोमांचक हिस्सा है। यह तो एक स्वाभाविक खोज की ओर ले जाता है, जिज्ञासा को बढ़ाता है और उस बचकाने आश्चर्य को विकसित करता है जिसकी हम सभी को आवश्यकता है!
Pew रिपोर्ट द्वारा किए गए एक शोध के मुताबिक, संयुक्त राज्य अमेरिका में 87 प्रतिशत शिक्षक इस बात से सहमत हैं कि “आज की डिजिटलप्रौद्योगिकियां कम ध्यान अवधि वाली तथा आसानी से विचलित हो जाने वाली पीढ़ी बना रही हैं।” इसलिए, कोई भी इस बात का खंडन नहीं करसकता है कि तकनीकी उछाल हमारे लिए कुछ हद तक नुकसानदेह रहाहै। एक तरफ, इसने हमें लाखों चीजों के बारे में तेजी से अवगत कराया है, लेकिन दूसरी तरफ, इसने हमें ऐसी जानकारी से भर दिया है जो हमारीकल्पनाओं से परे थी। एक बच्चा बस 15 सेकंड के अंतराल में ब्रह्मांड के सबसे बड़े तारे के बारे में जानकारी खोज सकता है! मुझे याद है कि जब नासा ने मंगल ग्रह पर स्पिरिट और अपॉर्च्युनिटी रोवर्स भेजे थे तो मैंने नासा को एक बधाई पत्र लिखा था। 2 महीने बाद, मुझे नासा से चित्रों के साथ एक उत्तर मिला और तीन वेबसाइटों की ओर मार्गदर्शन किया गया, जिन पर मैं मिशन के बारे में और जानने के लिए जा सकती थी। इस धीमे पत्राचार ने मुझे प्राप्त हुई जानकारी को संजोने में मदद की और मैंने एक आश्वस्त जिज्ञासु के रूप में अपनी उपलब्धियों का जश्न मनाया!
एक शिक्षक के दृष्टिकोण से, ध्यान अवधि में कमी या बदलाव ने,कक्षाओं में पाठ्यचर्या और शिक्षाशास्त्र के प्रतिपादन की हमारी दिन-प्रतिदिन की समझ को कैसे प्रभावित किया है?
ध्यान अवधि विस्तार की सच्चाई:
Penn State के एक शोध के अनुसार, अत्यधिक स्क्रीन समय बच्चों के लिए कई तरह की चिंताओं का कारक है, जैसे कि मोटापा, मिजाज में अस्थिरता, आक्रामक व्यवहार इत्यादि। इसके अतिरिक्त ध्यान अवधि, भाषा और मानसिक विकास पर नकारात्मक प्रभाव भी पाया गया है।
यह न केवल अत्यधिक चिंता का विषय है, बल्कि हम शिक्षकों कोहमारे अपेक्षित कार्य से भी अवगत कराता है। हमें खुद इस बात की बारीक समझ विकसित करने की जरूरत है कि हम अपने छात्रों को कैसे सीखता हुआ देखना चाहते हैं और कितना स्क्रीन टाइम बहुत अधिक स्क्रीन टाइम होता है। हर बार जब हम एक डिजिटल होमवर्क सेट करते हैं, तो हम उन्हें अतिरिक्त स्क्रीन मिनट दे रहे होते हैं। COVID-19 की वजह से सुलभता कि कमी का नुकसान यह तथ्य है कि भौतिक स्थान प्रतिबंधित था और अचानक यह अंतर ऑनलाइन संसाधनों से भर गया। सीखने पर लगातार चिंतन करते रहना और COVID-19 से पहले हम जो कुछ अच्छा कर रहे थे, उस पर विचार करना, आगे बढ़ने का एक तरीका हो सकता है।
हर दिन एक किशोर औसतन लगभग 4-6 घंटे इंटरनेट पर बिताता है, जिसके लिए उसे भारी कीमत चुकानी पड़ती है। यह निश्चित रूप से पूर्वस्कूली छात्रों में तथा विभिन्न देशों में भिन्न हो सकता है। हालांकि मध्यम और उच्च आय वाले देशों में अधिकांश किशोर एक उल्लेखनीय समय ऑनलाइन व्यतीत करेंगे। अति उत्साही व्याख्या, जल्दबाजी में सामान्यीकरण और वास्तविक शिक्षा को ट्रैक करना हमारे समय की एक चुनौती हो गई है। व्यस्तता कई बार सीखने की धारणा में परिवर्तित हो सकता है, लेकिन यह सदैव सीखने की प्रक्रिया का संकेतक नहीं होता है।
शिक्षक छात्रों में ध्यान देने की क्षमता में सुधार सुनिश्चित करने के लिए क्या कर सकते हैं?
वर्तमान में शिक्षकों के सामने चुनौती बहुत बड़ी है। हम यह कैसे सुनिश्चित करें कि हमारे छात्र सीखें, नवाचार करें और सीखने के प्रति जुनून दिखाएं जो उन्हें सार्थक भी लगे? क्या यह इस बात पर चिंतन करने का सहीसमय है कि गुज़रे हुए दशकों में क्या अच्छा रहा था, और छात्रों का ध्यान बढ़ाने के लिए हम कैसे काम कर सकते हैं?
यहाँ कुछ सुझाव हैं:
कक्षा में स्पष्ट दिनचर्या निर्धारित की जानी चाहिए:
आप कक्षा में ‘नो लैपटॉप’ या ‘केवल शोध के लिए लैपटॉप’ नीति अपना सकते हैं। प्रत्येक बच्चे को यह जानने की आत्म-जागरूकता होनी चाहिए कि वे कितने घंटे लैपटॉप का उपयोग करते हैं। क्लास-बोर्ड पर एक ट्रैकर आत्म-चिंतन के लिए एक बेहतरीन उपकरण हो सकता है। स्क्रीन समय कम करने और अनावश्यक रूप से लैपटॉप से बचने के लिए उन्हें सीधे कहने के बजाय, उन्हें परिणामों के बारे में जागरूक करें। उन्हें ऑनलाइन होने के कारणों को वर्गीकृत करने के लिए कहें और इसके साथ ही उन्हें ऑनलाइन होने की आवश्यकताओं और जरूरतों को प्राथमिकता देना सिखाएं।
भौतिक शिक्षण स्थान को नियमित रूप से व्यवस्थित किया जाना चाहिए:
जब हम एक स्वच्छ जगह में काम कर रहे होते हैं तो हमारी दक्षता बढ़ जाती है। छात्रों को उस स्थान को बनाए रखने और संसाधनों को प्रभावी ढंग से व्यवस्थित करने के लिए कहा जाना चाहिए जहां वे बैठते हैं, विशेष रूप से किताबें, चार्ट या कोई अन्य लेखन सामग्री जिसका उपयोग किया जाना है। शिक्षण के लिए एक अच्छी तरह से इस्तेमाल किया जाने वाली कक्षा इष्टतम है। शिक्षक बैठने की योजना को एक ‘चालक दल’ सेट-अप में व्यवस्थित कर सकते हैं या कभी-कभी डेस्क और कुर्सी के साथ अलग-अलग स्थान आवंटित किए जा सकते हैं। यह स्थान एक संकेत होना चाहिए कि हम निरंतर ध्यान देने वाली संस्कृति को महत्व देते हैं। इस स्थान की प्रत्येक वस्तु को जानबूझकर रखा जाना चाहिए। वे पहले से ही एक तरह की एक ऑनलाइन अव्यवस्था में होते हैं, इसलिए, जितना हो सके उनके भौतिक स्थान को व्यवस्थित करें। जितना अधिक वे भौतिक दुनिया से जुड़ेंगे, उतना ही वे इसमें आनंद लेंगे और इससे उनका ध्यान केंद्रित होगा।
उबाऊ प्रतीत होने वाले कार्य सौंपें:
शिक्षण जितना हो सके उतना प्रत्यक्ष होना चाहिए। हमें यह भी याद रखने की आवश्यकता है कि व्यस्तता हमेशा सीखना नहीं होता है, बल्कि यह सीखने के लिए एक खराब प्रतिनिधि हो सकता है। हमारे पास एक संतुलित दृष्टिकोण होना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारे शिक्षार्थी कार्यों को पूरा करने में सक्षम हैं। मेरा मतलब यह नहीं है कि व्यस्तता आवश्यक रूप से खराब है, लेकिन कभी-कभी यह वास्तविक शिक्षण के लिए एक अति-क्षतिपूर्ति हो सकती है। ऐसे कार्य सौंपे जाने चाहिए जो लचीलापन पैदा करते हैं। उदाहरण के लिए- कुछ छात्र गणित के जटिल कार्य से जूझते हैं, या वे लंबे निबंध लिखना पसंद नहीं करते हैं। मेरा मानना है कि दोनों कार्य मानसिक रूप से पुरस्कृत हैं, और छात्रों को इसका आनंद लेना चाहिए। यदि हमें परिणामों की अपेक्षा करनी है तो प्रत्येक चरण को सुदृढ़ किया जाना चाहिए और शिक्षकों को स्वयं भी धैर्य विकसित करना चाहिए। आप जहां भी कर सकते हैं कार्यों को समाप्त करें।
कक्षा में ध्यान सत्र:
पिछले कुछ वर्षों में, हम शिक्षकों ने अपनी कक्षाओं में सचेतनता से बातचीत शुरू की है जो आनंददायक है। हम चाहते हैं कि हमारे छात्र अत्यधिक उत्तेजक स्थानों में रहने के बाद शांत रहना सीखें। आज के संदर्भ में ध्यान सत्र और अधिक महत्वपूर्ण हो गया है क्योंकि युवा छात्र लगातार इंटरनेट पर होते हैं। उदाहरण के लिए- लंच ब्रेक के कुछ मिनट बाद शुरू करना एक अच्छा तरीका होगा, बाद में इसकी अवधि लंबी की जासकती है।
मात्रा से अधिक गुणवत्ता की ओर:
‘ऑस्टिन की तितली’ एक सुंदर कहानी है जिसमें एक पहली कक्षा के छात्र को एक बहुत ही सुंदर ‘बाघ स्वेलोटेल तितली’ का चित्र बनाना था। बेशक पहला मसौदा अभीष्ट चित्र की एक साधारण प्रति थी। लेकिन समय के साथ, उसके शिक्षक और सहपाठी उसे बेहतर बनाने की चुनौती देते हैं। वह अंततः अपनी तितली के लिए दूसरे और तीसरे मसौदे बनाता है और इसी तरह प्रत्येक भाग के लिए बार-बार कोशिश करता है। इसपूरी प्रक्रिया ने उसके अंदर इनाम के लिए लचीले व्यवहार का निर्माण किया और उसे अपना लक्ष्य हासिल करने में मदद की। इसी तरह, छात्र, विशेष रूप से मध्य विद्यालय के छात्र, अपनी जुनूनी परियोजनाओं पर काम कर सकते हैं जो उन्हें उत्साहित करती हैं, वे अपनी शिक्षा को बाहरी दुनिया में प्रदर्शित कर सकते हैं और कोई कार्य व्यर्थ नहीं होगा, बल्कि प्रत्येक एक मजबूत सीखने का अनुभव हो सकता है।
निष्कर्ष के लिए मैं कहूँगी कि, हम दो दुनियाओं में रह रहे हैं, आभासी और वास्तविक, जो हमारे शिक्षार्थियों के लिए भारी हैं। यह ऐसा ही चलता रहेगा क्योंकि हम बाहरी दुनिया की विभिन्न प्रकार की सामग्री को अपनी कक्षा में या उनके जीवन में आने से नहीं रोक सकते। हम उस जोखिम कोभी पूरी तरह से नियंत्रित नहीं कर सकते हैं जो हमारे बच्चे स्कूली जीवन में अनुभव करेंगे या इसके सभी संभावित परिणामों की कल्पना नहीं कर सकते हैं। हालाँकि, हम उन्हें लगातार यह सिखा सकते हैं कि सीखें कैसे, सीमाएँ कैसे तय करें, आनंद को जानें, बेहतर शिक्षार्थी बनें और अंततः सच्ची शिक्षा का अनुभव करें। अनुभव जीवन पर्यंत के लिए होता है, जो इस बात का सच्चा गवाह है कि प्राकृतिक दुनिया हमारी ओर ध्यान दे रही है।
साभार: The Companion (https://thecompanion.in/how-has-technology-impacted-the-attention-spans-of-students)