कोरोना महामारी की भारत में शुरुआत के समय से ही बंद देश के अधिकतर शिक्षण संस्थानों को खोलने की मांग अब तेज़ हो गई है। छात्रों के बीच बढ़ती बेचैनी से ये साफ़ जाहिर है की ऑनलाइन एजुकेशन का प्रयोग भारत जैसे देश में, जहां की एक बड़ी आबादी अभी मूलभूत सुविधाओं के अभाव में ही जी रही है, बहुत ज़्यादा सफल नहीं रहा है। इसी सिलसिले में ‘छात्र विमर्श’ पहुंचा अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, जहां के छात्र कई दिनों से कैंपस खोलने की मांग कर रहे हैं।
फ़रहा रुफ़ी परास्नातक अंतिम वर्ष की छात्रा हैं। ‘छात्र विमर्श’ से बात करते हुए उन्होंने कहा कि – “आज जिस स्थिति से एएमयू छात्र गुज़र रहे हैं उसकी सीधे तौर पर ज़िम्मेदारी सरकार और विश्वविद्यालय प्रशासन की है। सरकार एक नागरिकता विरोधी क़ानून लाई जिसके खिलाफ़ अलीगढ़ से आंदोलन शुरू हुआ। उसी आंदोलन को कुचलने के लिए 15 और 16 दिसंबर, 2019 के दिन विश्वविद्यालय पर हमले का षड्यंत्र रचा गया और प्रशासन की नाकामी की वजह से विश्वविद्यालय बंद कर दिया गया। तब से लेकर आजतक विश्वविद्यालय में कोई काम सुचारु रूप से नहीं चल सका है। पिछले वर्ष फ़रवरी में कक्षाएं लगनी शुरू हुई थीं लेकिन मार्च में लॉकडाउन की वजह से कैंपस बंद कर दिया गया जो अभी तक बंद है।”
फ़रहा ये भी कहती हैं कि – “इस स्थिति का सबसे बुरा प्रभाव अंतिम वर्ष के छात्रों पर पड़ रहा है क्यूंकि उन्हें अपना कोर्स पूरा करने के बाद प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठना होता है, लेकिन लाइब्रेरी बंद होने की वजह से उनकी तैयारी लगभग न के बराबर है। इसीलिए विश्वविद्यालय प्रशासन को कैंपस खोलने की मांग को गंभीरता से लेना चाहिए।”
एक शोध छात्रा ने यह भी बताया कि हॉस्टल बंद होने की वजह से शोधार्थियों को बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि रिसर्च के अधिकतर छात्र/छात्राओं को कैंपस के आसपास किराये के कमरों में रहना पड़ रहा है। विश्वविद्यालय और मौलाना आज़ाद लाइब्रेरी बंद होने के कारण उनके रिसर्च के काम पर काफी प्रभाव पड़ा है।
स्टूडेंट्स इस्लामिक ऑर्गेनाइज़ेशन (SIO) ऑफ इंडिया की ए एम यू इकाई ने भी अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति को चरणबद्ध तरीक़े से कैंपस खोलने और ऑन-कैंपस ऑफ़लाइन कक्षाओं को फिर से शुरू करने के लिए पत्र लिखा है। विश्वविद्यालय प्रशासन के ऑनलाइन कक्षाओं को जारी रखने के हालिया आदेश के मद्देनज़र यह पत्र लिखा गया है । इस पत्र में कहा गया है कि – “कोरोना महामारी ने सभी के जीवन को प्रभावित किया है लेकिन इसने छात्रों पर सबसे अधिक नकारात्मक प्रभाव डाला है। इंटरनेट कनेक्टिविटी जैसी समस्याओं के साथ-साथ अध्ययन की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए स्क्रीन के अत्यधिक उपयोग से न केवल छात्रों के शारीरिक स्वास्थ्य पर बल्कि मानसिक स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ा है। शिक्षा का ऑनलाइन मोड एक अस्थायी माध्यम हो सकता है लेकिन ऑफ़लाइन कक्षाओं, प्रयोगशालाओं और पुस्तकालय के लिए यह स्थायी विकल्प नहीं है। प्रशासन को इसे गंभीरता से लेना चाहिए क्योंकि लंबे समय तक ऑनलाइन शिक्षा के परिणाम गंभीर हैं।”
एस आई ओ ने ए एम यू कुलपति से मांग की है कि यूजीसी के दिशानिर्देशों के तहत विश्वविद्यालय को खोलने की योजना बनाई जाए और विश्वविद्यालय में छात्रों की चरणबद्ध वापसी शुरू की जाए। साथ ही विश्वविद्यालय में कोरोना से बचाव संबंधी सभी आवश्यक व्यवस्थाएं सुनिश्चित की जाएं।