फ़ीस बढ़ोत्तरी के खिलाफ IIMC छात्रों ने किया ‘PROTEST’ का आह्वान।

IIMC सूचना और प्रसारण मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त सोसायटी है। वर्ष 1965 में स्थापित, IIMC को देश का सर्वश्रेष्ठ मीडिया संस्थान माना जाता है। सरकारी संस्थान "नो प्रॉफिट नो लॉस" आधार पर चलने वाले हैं, जबकि आईआईएमसी में फीस साल दर साल बढ़ाई जा रही है और हर साल 10% की दर से बढ़ती है। इस साल हद पार करते हुए संस्थान ने फीस में 20% की बढ़ोत्तरी कर दी है।

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इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मास कम्युनिकेशन (IIMC), नई दिल्ली के छात्र ट्यूशन फीस, हॉस्टल और मेस चार्ज में बढ़ोत्तरी के खिलाफ कैंपस में 3 दिसंबर 2019 से हड़ताल कर रहे हैं।

IIMC सूचना और प्रसारण मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त सोसायटी है। वर्ष 1965 में स्थापित, IIMC को देश का सर्वश्रेष्ठ मीडिया संस्थान माना जाता है। सरकारी संस्थान “नो प्रॉफिट नो लॉस” आधार पर चलने वाले हैं, जबकि आईआईएमसी में फीस साल दर साल बढ़ाई जा रही है और हर साल 10% की दर से बढ़ती है। इस साल हद पार करते हुए संस्थान ने फीस में 20% की बढ़ोत्तरी कर दी है।

अंग्रेज़ी पत्रकारिता की छात्रा आस्था सव्यसाची का कहना है कि, दस महीने के कोर्स के लिए 1,68,500 से अधिक फीस और हॉस्टल व मेस चार्ज वहन करना किसी भी मध्यम वर्गीय छात्र के लिए असहनीय है। ऐसे में संस्थान में कई छात्र हैं जिन्हें पहले सेमेस्टर के बाद पाठ्यक्रम छोड़ना होगा।

IIMC में वर्ष 2019-20 के लिए विभिन्न पाठ्यक्रमों के लिए फीस संरचना निम्नानुसार है:
1. रेडियो और टीवी पत्रकारिता: 1,68,500
2। विज्ञापन और पीआर: 1,31,500
3. हिंदी पत्रकारिता: 95,500
4. अंग्रेजी पत्रकारिता: 95,500
5. उर्दू पत्रकारिता: 55,500

इसके अलावा, लड़कियों के लिए लगभग 6500 पर हॉस्टल और मेस का शुल्क और लड़कों के लिए 4800 का शुल्क हर महीने लिया जाता है, जो कि IIMC को एक सार्वजनिक वित्तपोषित संस्थान माना जाता है। साथ ही, प्रत्येक छात्र को छात्रावास नहीं दिया गया है।

IIMC में रेडियो और टीवी पत्रकारिता के छात्र हृषिकेश के अनुसार पिछले एक सप्ताह से हम संस्थान के साथ बातचीत के माध्यम से अपने मुद्दों के निवारण की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन प्रशासन हमारे मुद्दों पर गौर करने के बजाए चुप्पी साधे हुए है। संस्थान छात्रों को आश्वासन के सिवा कोई जवाब नहीं दे रहा है। हमने बातचीत के द्वारा इन मुद्दों को हल करने की पूरी कोशिश की, लेकिन प्रशासन के ढुलमुल रवैये के कारण हमारे पास विरोध प्रदर्शन ही केवल एकमात्र विकल्प बचा है।
सस्ती शिक्षा देश के प्रत्येक छात्र का अधिकार है और अगर वे अखिल भारतीय प्रवेश परीक्षा को पास करने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं तो उनकी उम्मीदों को ध्यान में रखना होगा। हम मीडिया संस्थानों को केवल उन लोगों के लिए सुलभ होने की अनुमति नहीं दे सकते हैं जो लाखों का भुगतान कर सकते हैं। शिक्षा, एक अधिकार है और विशेषाधिकार नहीं है।

 

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