माँ का ये योगदान पूरे समाज को उज्जवल कर सकता है

अगर हर मां अपनी औलाद को दुनिया में मोहब्बत बांटने वाला बना दे. हर माँ अगर अपने बच्चे की परवरिश में मानवीय मूल्यों के रस घोल दे तो ये धरती और कितनी सुन्दर हो जाएगी.

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किसी औरत का माँ होना उसके लिए एक ख़ूबसूरत एहसास होता है. इस ख़ूबसूरती में एक इज़ाफ़ा और हो जाए अगर हर मां अपनी औलाद को दुनिया में मोहब्बत बांटने वाला बना दे. हर माँ अगर अपने बच्चे की परवरिश में मानवीय मूल्यों के रस घोल दे तो ये धरती और कितनी सुन्दर हो जाएगी.

अपने दिलों में नफ़रत पाल रहे लोगों के बीच ऐसी माओं का होना किसी भी समाज में बेहद ज़रूरी है जो उन्हें ये बताए कि मैंने तो तुम्हें बहुत मोहब्बत से पाला है इसलिए तुम्हारा ये कर्तव्य है कि तुम अपने ज़ेहन में कभी नफ़रत न पलने देना.

हर माँ अगर ये समझे कि वो सिर्फ़ एक बच्चे को नहीं पाल रही जो उसकी गोद में है, बल्कि वो एक ऐसे कल को अपनी गोद में तरबियत दे रही जो समाज का हिस्सा बनेगा।

अब ये उस माँ की ट्रेनिंग पर निर्भर करता है कि उसका बच्चा कल हमारे समाज में मौजूद नकारात्मक तत्वों से जुड़ेगा या नकारात्मक तत्वों से।
वो किसी सभ्य समूह का हिस्सा बनेगा या किसी भीड़ का। वो कैसा समूह या भीड़ होगी जिसका हिस्सा उसकी गोद में पल रहा बच्चा बनेगा. उस समूह या भीड़ की मानसिकता क्या होगी? उस की विचारधारा क्या होगी? उस का उद्देश्य क्या होगा? उस के नारे क्या होंगे? उस का मक़सद क्या होगा?

अगर हर माँ अपने बच्चों को किसी उन्मादी भीड़ बनने के बजाय एक ऐसे समूह का हिस्सा बनने की सीख दे जो किसी के घर पर हमलावर न हो, किसी की आस्था पर चोट न करे, किसी की भावना को न कुचले, किसी कमज़ोर को न सताए तो समझिये कि उस माँ का जीवन और बच्चे को पालने का संघर्ष सार्थक हो गया.

माँ का ये योगदान सिर्फ़ बच्चे के भविष्य को ही उज्जवल नहीं बनाएगा बल्कि उस समाज को, उस राष्ट्र को और समस्त संसार को आलोकित करेगा. जिस माँ का स्नेह, उसके एहसान का क़र्ज़ 100 साल की ज़िन्दगी में भी नहीं अदा किया जा सकता उस माँ के वजूद को किसी एक दिन में समझने की कोशिश करना व्यर्थ है.

एक माँ के लिए इस से बेहतर तोहफ़ा और क्या होगा कि उसका बेटा किसी अपराधी भीड़ का हिस्सा न हो, एक माँ के लिए इस से ज़्यादा ख़ुशी की बात और क्या होगी कि उसका बेटा ‘अखलाक’ में अच्छा हो और किसी ‘अखलाक’ का कातिल न हो. हम अपनी माँ के लिए ऐसा तोहफ़ा या भेंट तो बन ही सकते हैं जो किसी पूंजीवादी दुकान से न ख़रीदा गया हो बल्कि अपने संस्कार से अवतरित किया गया हो.

लेख : हुमा अहमद

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