संघीय व्यवस्था एवं सविंधान विरोधी है नई शिक्षा नीति -एसआईओ

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नई दिल्ली: बुधवार को केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा स्वीकार की गई नई शिक्षा नीति (एनईपी) का संशोधित मसौदा, संघीय व्यवस्था एवं संवैधानिक विरोधी है,यह भारत में शिक्षा का व्यवसायीकरण करने का लाइसेंस है, ये बात एसआईओ के राष्ट्रीय अध्य्क्ष लबीद शफी ने कही।

बुधवार छात्र संगठन एसआईओ द्वारा एक बयान जारी कर कहा गया कि हम मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एमएचआरडी) को विस्तृत रूप से कई मुद्दों से संबंधित सिफारिशें सौंप चुके हैं जिनमें एनईपी-2019 में शिक्षा के भगवाकरण, केंद्रीकरण और शिक्षा का व्यावसायीकरण को लेकर चर्चा शामिल है।

हालांकि, इन महत्वपूर्ण सुझावों में से अधिकांश को सरकार ने नजरअंदाज कर दिया है, जैसा कि नीति के संशोधित संस्करण से स्पष्ट है।

बुधवार को संगठन द्वारा जारी एक बयान में कहा कि हमने मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एमएचआरडी) को सिफारिशों का एक विस्तृत ब्यौरा प्रस्तुत किया था, जो कि NEP-2019 के लिए शिक्षा के भगवाकरण, केंद्रीकरण और शिक्षा के व्यावसायीकरण सहित कई मुद्दों पर विस्तारपूर्वक बताया गया था। जैसा कि नीति के संशोधित संस्करण से स्पष्ट है इन महत्वपूर्ण सुझावों में से अधिकांश को सरकार ने नजरअंदाज कर दिया है।

लबीद शाफी ने कहा कि यह नीति भारत में शिक्षा के बढ़ते व्यावसायीकरण के प्रति एक विरोधाभासी दृष्टिकोण को परिभाषित करता है।
“जबकि मसौदा शिक्षा के व्यवसायिक रूप को प्रस्तुत करते हुए सार्वजनिक और अच्छे स्वरूप को दर्शाता है। जबकि शिक्षा का यह मॉडल बाज़ारू है जो कि वर्तमान परेशानी को हल करने में विफल है।

संगठन का मानना ​​है कि मसौदा नीति विशेष रूप से संस्कृत के अध्ययन और इसके व्यापक साहित्य के ज्ञान ’को अलग रखकर शिक्षा के भगवाकरण के लिए नये द्वार को खोलती है, इसके अलावा भारत के शानदार बहुसांस्कृतिक और प्लुरल टेपेस्ट्री को यहाँ के लोगों और उनके इतिहास को जानबूझकर अनदेखा करती है। अल्पसंख्यक विद्वानों, उनके ज्ञान उत्पादन और संस्कृति के योगदान को नजरअंदाज करके स्वतंत्रता, समानता और बहुलतावाद के संवैधानिक मूल्यों को नजरअंदाज करना वास्तव में एक घृणित कार्य है। संविधान के खिलाफ किसी भी एक भाषा का अधिक जोर या थोपना भारतीय संघ की संघीय भावना के खिलाफ है।

छात्र संगठन ने यह भी तर्क दिया है कि शिक्षा राज्य और संघ दोनों का संयुक्त विषय है तो इस नीति के तहत केंद्रीकृत निकायों का निर्माण जैसे राष्ट्रीय शिक्षा आयोग (आरएसए), राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (एनटीए) और राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन (एनआरएफ) एक आदेश के तहत भारतीय संघ के संघीय ढांचे और संविधान के खिलाफ है लबीद शाफी ने कहा कि ऐसे अति-केंद्रीकृत निकाय सत्तारूढ़ दलों की राजनीतिक अभियान के लिए अनिवार्य रूप से प्रभावित होंगे।
जबकि कहने के लिए यह नीति न्यायसंगत और समावेशी शिक्षा के आदर्शों को लागू करने के लिए प्रयासरत है लेकिन यह समाज के हाशिए के वर्गों के लिए पर्याप्त प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए कोई ठोस उपाय करने में विफल है क्योंकि इसमें आरक्षण की नीति के लिए कोई प्रतिबद्धता दिखाई नहीं देती है।

 

लबीद शाफी ने कहा कि नीति निर्माताओं ने सभी निजी उच्च शैक्षणिक संस्थानों जैसे IIT, IIM और केंद्रीय विश्वविद्यालयों सहित आरक्षण का विस्तार करने की मांगों को भी पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया।

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