उच्च शिक्षा के अवसरों में सरकारी रोड़े

0
1546

भारतीय संविधान प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च स्तरीय शिक्षा को देश के नागरिकों तक पहुंचाने के लिए राज्य अथवा सरकार को कर्तव्य से बाध्य करता है। वह चौदह वर्ष तक के प्रत्येक बालक एवं बालिका को प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए राज्य को बाधित करता है, साथ ही विद्यार्थियों को उच्च शिक्षा एवं नौकरी के अवसर उपलब्ध कराने की ज़िम्मेदारी भी राज्य को सौंपता है। अर्थात् यह सरकार अथवा राज्य का परम कर्तव्य है कि वह अपने देश के प्रत्येक युवा को उच्च शिक्षा एवं रोज़गार के अवसर उपलब्ध कराए। लेकिन अगर आप देश के वर्तमान शैक्षिक परिदृश्य का अवलोकन करेंगे तो बड़ी निराशाजनक स्थिति सामने आएगी।

एक तरफ़ जहाँ बेरोज़गारी दर बढ़ती जा रही है, वहीं दूसरी तरफ़ स्थिति यह है कि उच्च शिक्षा के अवसरों में भी भरपूर कटौती हो रही है। यूजीसी नेट/जेआरएफ फेलोशिप बंद करने का मसला हो या लिखित और मौखिक परीक्षाओं में अंकों की हेराफेरी का विवाद हो, एक बात जो प्रत्यक्ष रूप से सामने आती है, वह यह है कि सरकारें उच्च शिक्षा को अपने भविष्य के लिए घातक मानतीं हैं और उच्च शिक्षा व्यवस्था को तरह-तरह के हथकंडों द्वारा अपने शिकंजे में कसकर अपनी विचारधाराओं के अनुकूल बनाना चाहती हैं। यूजीसी नेट अर्थात् राष्ट्रीय शिक्षा पात्रता परीक्षा के वर्ष में दो बार आयोजन को सीमित कर एक बार कर देना भी शिक्षाविदों द्वारा इसी हथकंडे का एक प्रकार माना जा रहा है।

दरअसल सीबीएसई की ओर से जारी सर्कुलर में यूजीसी-नेट जेआरएफ की परीक्षा जुलाई में आयोजित न करके नवंबर में आयोजित करने का फैसला लिया है। इसके अलावा यूजीसी ने नेट परीक्षा क्वालिफाई क्राइटिरिया के नियमों में भी बदलाव कर दिया है। पहले यूजीसी नेट परीक्षा क्वालिफाई क्राइटिरिया पंद्रह फीसदी होता था, जिसे अब घटाकर मात्र छह फीसदी कर दिया है। यह नियम इसी साल नवंबर में आयोजित होने वाली परीक्षा के लिए लागू होगा। पहले तीनों परीक्षा में छात्रों को मिलने वाले कुल अंकों में से टॉप 15 फीसदी वालों को यूजीसी नेट परीक्षा क्वालिफाई माना जाता था। लेकिन अब यह आंकड़ा छह फीसदी का होगा।

यूजीसी नेट परीक्षा की आवदेन विंडो एक अगस्त से खुलेगी। हाल ही में जारी एक अधिसूचना में अभ्यर्थियों के लिए आधार कार्ड संलग्न करना भी ज़रूरी करार दिया गया है। उम्मीदवार एक अगस्त से 30 अगस्त तक आवेदन कर सकते हैं। जबकि 31 अगस्त को आवेदन करने पर अतिरिक्त शुल्क लगेगा।
छात्र समाज नियमों में बदलावों को लेकर काफ़ी रोष में है। विभिन्न छात्र संगठनों द्वारा यूजीसी का घेराव एवं विरोध प्रदर्शन किए गए हैं। स्टूडेंट्स इस्लामिक आॅर्गनाइज़ेशन आॅफ इंडिया (एस आई ओ) ने यूजीसी नेट के स्थगन को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दायर की है। उनका कहना है कि यह छात्रों के साथ खुला धोखा है।

“यूजीसी ने छात्र समुदाय को नेट जुलाई 2017 परीक्षा का आयोजन रद्द करके धोखा दिया है। इससे पहले अप्रैल में, जब एसआईओ ने एमएचआरडी के अधिकारियों से संपर्क किया था तो उन्होंने कहा था कि परीक्षा में देरी होगी, लेकिन अब यूजीसी ने जुलाई में आयोजित होने वाली परीक्षा को ही रद्द कर दिया है। सीबीएसई यूजीसी नेट अधिसूचना की प्रतीक्षा कर रहे हजारों उम्मीदवार अब नवीनतम अपडेट देखने के बाद चौंक गए हैं। सीबीएसई को हजारों छात्रों के हित को देखते हुए अपना फैसला वापस लेना चाहिए। यह देश के छात्रों के अहित में प्रत्यक्ष हमला है।”, नहास माला (राष्ट्रीय अध्यक्ष, एस आई ओ)

यहाँ एक बात और ध्यान देने योग्य है कि स्वयं को देश का सबसे बड़ा छात्र संगठन बताने वाले अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् की ओर से इस अन्याय के विरुद्ध कोई क़दम नहीं उठाया गया है जबकि यह हर छात्र संगठन की नैतिक ज़िम्मेदारी है वह छात्रों के हित में आवाज़ उठाए। कई छात्र संगठनों के इस फैसले के विरोध के बावजूद सरकार एवं यूजीसी द्वारा यह फैसला बदलने की संभावनाएँ नज़र नहीं आ रही हैं। देखना दिलचस्प होगा कि आगे यह छात्र संगठन क्या क़दम उठाते हैं और सरकारें उच्च शिक्षा में बाधाएं उत्पन्न करने के लिए किस हद तक जा सकती हैं।

– तल्हा मन्नान ख़ान (अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here