जे.एन.यू के नाम से तो आप सब ज़रूर परिचित होंगे| जवाहरलाल नेहरु यूनिवर्सिटी का नाम देश कि प्रगतिशील संस्थानों में गिना जाता है, इस तथ्य का अंदाज़ा सुभ्रमनियम जयशंकर, अरविन्द गुप्ता, अमिताभ कान्त आदि नामों से लगाया जा सकता है जिन्होंने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व किया है और यह सभी जे.एन.यू के पूर्व छात्र रह चुके हैं| जे.एन.यू में वर्षों से देश के नौजवानों कि प्रतिभा को पहचाना है और एक सही दिशा प्रदान करते हुए देशहित कार्यों में अहम् भूमिका निभाई है|
पिछले कुछ समय से जे.एन.यू सुर्ख़ियों में आया और आपने और हमने फरवरी से लेकर अब तक विश्वविद्यालय के बारे में इतने समाचार मालूम हुए जितने हमने पिछले कई वर्षों से नहीं सुने होंगे| कभी देशविरोधी नारों के नाम से जे.एन.यू को लेकर चर्चा हुई तो कभी सीट्स कम करने को लेकर, कभी विभिन्न छात्र संघ के कार्यक्रमों के ज़रिए तो कभी उन कार्यक्रमों में नारे लगाने के लिए| यह वह जगह है जहाँ विभिन्न वैचारिक मतभेत, सोच विचार कि आजादी कि बात सदा से करी जाती है, जहाँ लाल सलाम और लाल लाल के इनक़लाबी नारे लगाना आम बात समझी जाती है|
कुछ रोज़ पहले यहाँ कारगिल शौर्य दिवस के नाम पर २२०० मीटर का राष्ट्र ध्वज लेकर मार्च किया गया जिसमे कई जानी मानी हस्तियां उपस्थित थे और वन्दे मातरम और भारत माता कि जय के नारों के साथ आगे बढते गए| जे.एन.यू जैसे विश्वविद्यालय में यह कोई आम बात नहीं क्यूंकि यहाँ सदैव से विभिन्न विचारधारा कि आज़ादी है लेकिन जो अहम् बात सामने आई वह यह कि यहाँ मौजूद वी.सी जगदीश कुमार द्वारा सरकार से अजीब मांग करी गई और वोह मांग यह थी कि जे.एन.यू कैंपस में एक टैंक रखा जाए जिससे यहाँ के छात्रों में देशभक्ति कि भावना उत्पन्न हो सके और वह देश के लिए बलिदान देने वाले सैनिकों को याद रख सकें|
कहने के लिए यह कोई बड़ी बात नहीं लेकिन मुख्य सवाल यह है कि क्या एक शैक्षिणिक संस्थान में एक टैंक रखने किस तरह का योगदान मिल सकता है और क्या एक टैंक विश्वविद्यालय में जुड़ी समस्याओं को दूर करने में सक्षम है? यकीनन यह सवाल का उत्तर ना ही है| जब हम एक विश्वविद्यालय की बात करते हैं तो हम यह समझते हैं कि यह वह जगह है जगन विभिन्न विचारों का अदन प्रदान होता है, जहाँ हर वह व्यवस्था प्रदान करी जानी चाहिए जिससे अनुसंधान के लिए छात्रों को सहायता मिल सके और हमारे सामने एक अच्छा उत्पाद मिल सके| इसकी सहायता के लिए विश्वविद्यालय को चाहिए कि वह बहतरीन क्लासरूम, पुस्तकालय, हॉस्टल जैसी सुविधा प्रदान करे| साथ ही साथ विश्वविद्यालय में देखा गया कि दिसम्बर २०१६ में अकादमिक कौंसिल बैठक में वी.सी. द्वारा एक यू.जी.सी. गजट पास कराया गया जिसके चलते ९०० के करीब सीट कट किया गया और परिणामस्वरूप इस वर्ष ऍम.फिल एवं पीएचडी में कोई दाखिला नहीं हुआ और यह भी पाया गया कि वाईवा वोस में अल्पसंख्यक और निचली ज़ात के लोगों के साथ भेदभाव किया गया, साथ कि सचर समिति और रंगनाथ कमिटी रिपोर्ट के अनुसार अल्पसंख्यको के उत्थान के लिए भी कोई ठोस क़दम नहीं उठाये गए| क्या विश्वविद्यालय के वीसी द्वारा यह समस्याओं को संबोधित करना आवश्यक है या फिर एक टैंक रखने से यह समस्याएं दूर होने वाली है?क्या आर्मी टैंक युद्ध की निशानी है या फिर एक शैक्षिणिक संस्थान की निशानी है?
विश्वविद्यालय में जब यह कहा जाता है छात्रों में देश भक्ति कि भावना उत्पन्न करने के लिए आर्मी टैंक कि आवश्यकता है तो क्या विश्वविद्यालय में अध्ययन करने वाले छात्र क्या देशभक्ति का कार्य नहीं कर रहे हैं? क्या देश भक्ति जंग के मैदान से जुडी है या देश कि समस्याओं को लेकर कार्य करना भी देश भक्ति कि श्रेणी में आता है? विश्वविद्यालय के रिसर्च करने वाला छात्र का देश से जुड़े मुद्दों पर जब कार्य करता है तो वह देश कि प्रगति और बदलाव कि उम्मीद से करता है जिसे सुधार कर देश आगे बढ़ता है और समस्याओं का सही हल पेश करता है| लेकिन विडम्बना यह है कि बीच बीच में कुछ ऐसे मुद्दे सामने आते हैं जिससे यह रिसर्च पर चर्चा तो दूर चर्चा इस बात पर हो रही है कि विश्वविद्यालय में टैंक रखा जाए या नहीं, उदहारण के लिए देखा जाए तो देख में आज भी इन्सान गंदे नाले में खुद उतरकर कार्य कर रहे हैं जिसके कारण कई बीमारियों का शिकार हो रहे हैं, यहाँ हम यह सवाल ज़रूर कर सकते हैं कि क्या यह समस्या को दूर करना देशहित नहीं तो फिर क्या है? जे.एन.यू में इस विवाद के चलते प्रोफेसर सत्य दास का कहना है कि हो सकता है कल को हम प्रोफेसर सेना के अफसरों कि तरह मार्च करते हुए चलेंगे, लेकिन राष्ट्रभक्त के ठेकेदारों यह नहीं समझते की असल में विश्वविद्यालय का मकसद क्या है और यहाँ किस तरह के कार्य अंजाम दिए जाते हैं|
जे.एन.यू में नए दाखिले दिए जा रहे हैं और नए छात्र यहाँ दाखिले ले रहे हैं इस बीच इस तरह कि बात करना जे.एन.यू कि उस छवि को उजागर करना जो ९ फ़रवरी को मीडिया द्वारा बनाई गई जो वास्तव में नहीं| एक बड़ा सवाल तो यह कि वीसी द्वारा देशप्रेम की बात करना और दूसरी ओर सीट्स कम कर देना कौनसा देश प्रेम है| एम.फिल और पीएचडी कि सीट्स कम कर देना अनुसंधान के मैदान के द्वार बंद करना है| यह सीट्स कम कर देने से नजाने किनते ऐसे रिसर्च के क्षेत्र हैं जिनपर कार्य कर करना संभव नहीं पाया जा रहा है| वीसी साहब यह भी बताएं कि यु.जी.सी. गजट के बाद जे.एन.यू नार्थ गेट पर प्रदर्शन कर रहे छात्रों पर ३०००० रूपए का जुर्माना लगाना जो संविधान के खिलाफ है, यह कहाँ का देश प्रेम है| क्या इन सवालों के जवाब से बचने के लिए टैंक जैसा मुद्दा उठाया जा रहा है जिससे असल मुद्दों से भटकाया जा सके और फ़िज़ूल के मामलों में भटकाया जा सके|
अब हम अगर आर्मी के बारे में बात करते हैं तो यह बात सामने आती है कि आर्मी के किसी भी तरह के काम का विरोध न किया जाए लेकिन क्या देश कि सरकार इस बात का जवाब देने को तैयार है जो मनोरमा देवी के साथ और हजारों कि तादाद में उन महिलाओं के साथ हुआ जहाँ आर्मी के अफसरों द्वारा बलात्कार जैसी घटनाएं सामने आई? यहाँ जब रिसर्च के माध्यम को जब ख़त्म कर दिए जायेंगे तो यह बात समझ से दूर है कि वोह कौनसी परिथितियाँ हैं जिसकी वजह से सेना में इस तरह का बर्ताव देखने को मिलता है| यह कह कह पाना मुश्किल हो जाता है कि वही लोग मानव अधिकारों कि रक्षा भी कर रहे हैं और वहीँ दूसरी और उन्ही के द्वारा मानव अधिकारों का हनन भी किया जा रहा है| यहाँ सेना पर कोई इलज़ाम नहीं लगाया जा रहा बल्कि परिस्थितियों पर चिंतन और चर्चा करने की कोशिश करी जा रही है|
इस बात पर भी ध्यान देना आवश्यक है जब २३ जुलाई को जे.एन.यू में राजीव मल्होत्रा का कहना कि हमको क्षत्रिय हो जाना चाहिए| यह एक जातिवादी टिपण्णी है जिससे हमारे समक्ष यह बात साफ़ हो जाती है कि राष्ट्रवाद के आड़ में एक ऐसी मानसिकता उजागर होती है जो बहुत भयावह है| इसी मानसिकता के चलते रोहित वेमुला जैसे छात्र आत्महत्या करने पर मजबूर हुए और इस तरह की मानसिकता आने वाले अजा/अजजा और ओबीसी छात्रों के लिए क्या परिणाम ला सकता है यह बताने कि ज़रुरत नहीं|
आखिर में यह बात हमको साफ़ समझ लेना चाहिए कि कहीं भी टैंक लगा देने से देशभक्ति उत्पन्न नहीं होती| और जहाँ तक विश्वविद्यालय कि बात है, जवाहरलाल नेहरु द्वारा एक पंक्ति “university is a adventure of ideas” ही विश्वविद्यालय कि असल पहचान है| विश्वविद्यालय में आने वाला छात्र हाथ में कलम लेकर जब विभिन्न समस्याओं पर कार्य करता है वह भी देशभक्ति का ही एक रूप है| उस कलम को छीन कर बन्दूक देना कोई देशभक्ति नहीं| विश्वविद्यालय को अभी आवश्यकता है सीट्स कि, फंड्स कि, किताबों कि, फ़ेलोशिप कि, अगर इन समस्याओं पर वीसी और सरकार कार्य करती है तो मेरे लिए यह सबसे बड़ी देशभक्ति है|