ग़ज़ा अब पहले जैसा नहीं हो सकता!

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– अब्दुल मुक़ीत

इज़राइल-हमास युद्ध को सौ दिन से अधिक हो गए हैं, इज़राइल और हमास के बीच नवीनतम युद्ध फ़िलिस्तीनी संघर्ष का सबसे लंबा, सबसे खूनी और सबसे विनाशकारी युद्ध है। लड़ाई 7 अक्टूबर को शुरू हुई जब हमास ने दक्षिणी इज़राइल पर हमला किया। तब से इज़राइल ने ग़ज़ा पट्टी पर अंधाधुंध हवाई, नौसैनिक और जमीनी हमलों से बमबारी की है जिससे अभूतपूर्व विनाश हुआ है और पूरे क्षेत्र को मलबे के ढेर में बदल दिया गया है। संयुक्त राष्ट्र के पर्यवेक्षकों का कहना है कि इज़रायली हमले ने ग़ज़ा में अधिकांश फिलिस्तीनियों को विस्थापित कर दिया है, ग़ज़ा के आधे से अधिक अस्पतालों को नष्ट कर दिया है और बड़ी संख्या में लोगों को भूख से मरना पड़ रहा है।

इज़रायली सेना का कहना है कि उसने भीषण हिंसा से प्रभावित उत्तर में अपनी कार्रवाई कम कर दी है। लेकिन दक्षिण में, जहां हमास नेताओं के मौजूद रहने की संभावना है, यह पूरी ताकत से आगे बढ़ रहे है। इसके अलावा युद्ध शुरू होने के बाद से लेबनान के हिजबुल्लाह मलेशिया और इज़राइल लगभग हर दिन सीमा पार झड़पों में लगे हुए हैं।

इस समय वैश्विक स्तर पर फिलिस्तीन के उत्पीड़न के खिलाफ हर कोई युद्धविराम की मांग कर रहा है, क्या आप जानते हैं कि युद्धविराम क्या है? युद्धविराम का अर्थ है इज़रायली आक्रमण पर प्रतिबंध। मतलब अब और बच्चों, महिलाओं और पुरुषों को नहीं मारा जाना चाहिए। लेकिन क्या इस प्रतिबंध से सब कुछ ठीक हो जाएगा? मैं इस युद्धविराम का सबसे बड़ा समर्थक हूं, लेकिन मैं जानता हूं कि इस युद्धविराम से अब सब कुछ ठीक नहीं हो सकता, यह युद्धविराम अब मां के बेटों को वापस नहीं ला सकता, यह युद्धविराम बहनों के भाइयों को वापस नहीं ला सकता।

ग़ज़ा अब रहने लायक नहीं रहा, ग़ज़ा तबाह हो चुका है, ग़ज़ा लाशों का गढ़ बन गया है, ग़ज़ा अब पहले जैसा नहीं रह सकता। अब जो ओलग युद्धविराम की बात कर रहे हैं, ये वे लोग हैं जो 100 दिनों के बाद अपना मुंह खोल रहे हैं, अरब, अमेरिकी या भारतीय जिनको अब ग़ज़ा याद आया है, उन्हें पहचानें, ये सेलिब्रिटीज़, ये ब्रांड एंबेसडर जानते हैं कि युद्धविराम के आखिरी कुछ दिनों में अगर हम बोलेंगे तो हम अपनी प्रतिष्ठा बचा लेंगे। लेकिन आपको यहूदियों द्वारा मारे गए हर बच्चे को याद रखना है, हर माँ को जो खून के आँसू रोइ है, हर पिता को जिसने आधे परिवार के शवों को उठाया है। आपको ग़ज़ा को नहीं भूलना चाहिएहै, आपको फिलिस्तीनियों को नहीं भूलना है, आपको अपने अंदर के मुसलमान को नहीं भूलना है।

आप ग़ज़ा के बारे में सोचें, उसके विनाश के बारे में सोचें, उन परिवारों के बारे में सोचें। ग़ज़ा कोई ट्रेंड नहीं है, ग़ज़ा एक शहर है, लोगों से भरा हुआ। जिसे लाशों में तब्दील कर दिया गया। ग़ज़ा अब कभी भी पहले जैसा नहीं हो सकता, यह हम सभी जानते हैं। मरे हुए लोग वापस नहीं आ सकते, खानदान के आधे परिवार ख़त्म कर दिए गये वे वापस नहीं आ सकते, एक माँ का बेटा वापस नहीं आ सकतता, एक बहन का भाई, एक आदमी की पत्नी वापस नहीं आ सकती।

ज़रा तार्किक ढंग से सोचें, एक शहर पर सौ दिनों से अधिक समय से हमला हो रहा है। क्या-क्या नुकसान होगा? सबसे पहले मस्जिदें शहीद कर दी गईं हमरी ग़ैरत पर वार, स्कूल जला दिए गये ज्ञान की हानि। यूनिवर्सिटी को धमाकों में उड़ा दिया गया, एक यूनिवर्सिटी बनने में बहुत कुछ लगता है संसाधन, पैसा, फंड, कड़ी मेहनत और कई साल। कई वर्षों के लिए ग़ज़ा के बच्चों और युवाओं के लिए ज्ञान के रास्ते रोक दिए गए, अस्पतालों पर हमला किया गया और भारी मशीनरी जला दी गई। यह सिर्फ सामान नहीं है, यह सिर्फ नाम नहीं है। यह सब कहाँ से वापस आएगा? कौन लाएगा? घर नष्ट हो गए, पानी की पाइप लाइन नष्ट हो गईं, गैस लाइनें नष्ट हो गई होंगी। अगर ग़ज़ा में युद्धविराम हो भी जाए तो अगले कई सालों तक युद्ध के संकेत कहीं नहीं जाएंगे।

अब आप सोचेंगे कि ये कितना बड़ा दर्द है लेकिन हम कर ही क्या सकते हैं। समर्थन भी कर लिया, नारे भी लगा लिए, लेकिन अब हम ग़ज़ा जाकर ये सब चीजें ठीक तो नहीं कर सकते हैं ना? हां, नहीं कर सकते हैं, लेकिन मैं आपको बताता हूँ कि हम क्या कर सकते हैं। यह युद्धविराम पहले भी हो सकता था, है न? ऐसा हो सकता था अगर हमने आवाज़ उठाई होती, अगर दुनिया की मशहूर संस्थाओं, अभिनेताओं, गायकों, कार्यकर्ताओं ने आवाज़ उठाई होती, अगर मशहूर ब्रांडों ने इस नरसंहार का समर्थन नहीं किया होता, अगर हर कोई राष्ट्रीयता के अंतर को मिटाकर मानवता के लिए खड़ा होता। लेकिन उन सभी हॉलीवुड बॉलीवुड सितारों ने हमारे लोगों के लिए नहीं बोला।
उन्होंने हमारे लोगों को सौ से अधिक दिनों तक मरने दिया। क्यों? क्योंकि वे यहूदी थे, ईसाई थे, हिंदू थे और उनके हित(मुफ़ादात) इज़राइल से जुड़े हुए थे। नहीं, वे सभी अपने लोगों के लिए इतने बच्चे थे कि उन्होंने हजारों लाशें नहीं देखीं, जलता हुआ शहर नहीं देखा।

याद रखें! अपने फैसले पर कायम रहें, अपनी गरिमा बनाए रखें और उन चीजों पर क़ायम रहें जिन लोगों, वेबसाइटों और खाद्य पदार्थों को हमने बहिष्कार किया है। हॉलीवुड, बॉलीवुड, उनके आधे दर्शक हम हैं, हम इजरायली सामान खरीदते हैं, यदि अधिक नहीं तो कम से कम तो ज़रूर लेते हैं। यह कहीं न कहीं अगले नरसंहार में योगदान दे रहें हैं। अगला नरसंहार? आप हैरान हुए होंगें, जी अगला नरसंहार, क्योंकि ये अब ख़त्म नहीं होगा, कुछ साल पहले येरुशलम ऐसी ही क्रूरता का शिकार हुआ था, आज ग़ज़ा और कल फिलिस्तीन का कोई और हिस्सा, ये ख़त्म नहीं होगा, हो ही नहीं सकता। यहूदी अपने मूल के प्रति सच्चे रहेंगे, आपको भी रहना होगा।

मुसलमान एक्ट्रिमिंस्ट हैं. उनके साथ ऐसा किसने किया? यहूदियों और हिन्दुओं ने, लेकिन सफ़ाई कौन देगा? कहानी का हमारा पक्ष कौन बताएगा? हम? लेकिन हम तो लगे हुए हैं ना इसी रोने में कि फलां क्यों नहीं बोला, फलां कहां है। याद रखें वे नही बोलेंगे, यही उनका असली रूप है। आपको उन्हें रद्द करना होगा यह आपका असली रूप है और यदि आप इस मामले में इस फैसले पर कायम नहीं रह सकते, तो यहूदियों और ईसाइयों पर संदेह छोड़ दें।
क्योंकि ग़ज़ा कोई ट्रेंड नहीं बल्कि हकीकत है।
ग़ज़ा क्रूरता की कहानी नहीं बल्कि हकीकत है।
ग़ज़ा कोई फिल्म नहीं बल्कि हकीकत है.
अजनबियों पर भरोसा करना बंद करें और ग़ज़ा के लिए खुद कदम उठाएं।

तमाम मुश्किलों और खतरों के बावजूद ग़ज़ा के पत्रकारों ने ग़ज़ा में रहकर अपने कर्तव्यों का पालन किया है, उन्हें गंभीर धमकियों का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन इसके बावजूद सिर्फ एक खबर दुनिया तक पहुंचाने के लिए पत्रकारों ने अपनी जान की भी परवाह नहीं की। कई पत्रकारों ने अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए अपनी जान गँवा दी।

इज़राइली हमले के परिणामस्वरूप ग़ज़ा में अब तक कुल 113 पत्रकार मारे जा चुके हैं। पत्रकारों का कहना है कि इज़राइली सेना जानबूझकर उन्हें निशाना बना रही है। पत्रकारों को न सिर्फ हर पल अपनी जान का खतरा रहता है बल्कि उनके पास रोशनी, भोजन और पानी की सुविधाएं भी नहीं हैं। वे दुनिया की सबसे खतरनाक और सबसे अंधेरी जगह से अपनी पत्रकारिता का कर्तव्य निभा रहे हैं।

एक पत्रकार की मौत से न सिर्फ एक पत्रकार की जिंदगी खत्म हो जाती है, बल्कि हजारों कहानियां भी खत्म हो जाती हैं। सबसे अंधेरे और सबसे कठिन समय में भी, ग़ज़ा में पत्रकार न केवल अपना कर्तव्य निभा रहे हैं, बल्कि सच भी बता रहे हैं और आज़ादी के लिए भी लड़ रहे हैं।

पैगम्बरों की पवित्र और सभ्य धरती पर पिछले 75 वर्षों से इजराइल की क्रूरता, जुल्म और हिंसा जारी है और निर्दोष फिलिस्तीनी भाइयों का खून बहाया जा रहा है, इसे संयुक्त राष्ट्र की राजनीति में लाल रंग में रंगने की कोशिश की जा रही है। लेकिन याद रहे! हर अन्याय का अंत होता है, अल्लाह इन माँओं की आह, चीख और आंसुओं को बर्बाद नहीं होने देगा।

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