चिनार का दर्द

चिनार के दरख़्तों पर आबिद फ़ारूक़ी की अभिव्यक्ति

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एक नन्हा सा पौधा जिसे जवान होने में सदियां लगी थीं।
जिसने पता नहीं कितनी तूफानी बर्फीली हवाओं से लड़कर अपने वजूद को जिंदा रखा था।
जिसने इंसानों को साया दिया,शहरों को हुस्न बख़्शा था।
जब मौसम का दानव अपना पर फड़फड़ाता, दूसरे दरख़्तों के सारे पत्ते ज़मींबोस होकर उसकी संप्रभुता क़बूल कर लेते लेकिन #चिनार उस वक़्त भी तने तन्हा खड़ा रहता और सुर्ख़ हो जाता, यही उसकी विशिष्टता थी, यही उसका हुस्न था!
इसी लिए उसे ‘शाही दरख़्त’ कहा गया।
पर उस वक़्त भी #डेवलपमेंट के नाम पर दरख़्तों के राजा को बेदर्दी से बेतहाशा काटा गया और आज भी काटा जा रहा है।
1971 में चिनार के दरख़्तों की तादाद जहां 47000 थी, वहीं 2002-2008 के एक सर्वे के मुताबिक उसकी तादाद घटकर 38401 रह गई! अब कितनी रह गई है, ये जानने की ज़रूरत और चाहत किसको है?
अब चिनार की लाली में उसकी नाराज़गी, उसकी सफेदी में उसके आंसू होते हैं, जो किसी को नज़र नहीं आते!
क्योंकि अब कोई मुग़ल, कोई पठान, कोई सिक्ख, कोई डोगरा नहीं है!
~

मैं भी कितना बड़ा मुर्ख हूं … जब इंसानी तमन्नाओं का ख़ून हो रहा हो, उसकी नामूस की धज्जियां उड़ाई जा रही हो, इंसानी रिश्तों को काटे जा रहे हों…एक #बेजान_चिनार पर अपना ख़ून जला रहा !!

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