दर्द में डूबी खामोश आंखे
ठहर ठहर कर चलती सांसे
घटती रहती घटनाए
मासूम रक्त को बहाए
खूंखार दिलो को फिर भी
शर्म न आए
कुछ न करे कोई
कुछ न बोले कोई
सहते जाए
मरते जाए
आवाज़ एक उठे
पुष्प ढेरों नष्ट हो जाए
टूटी फूटी मानवता को
कहां ढूंढे कहां खोजे
बिखरे हुए हैं संसार में
इसके कई टुकड़े
कवि :कफ़ील हसीब