-मसीहुज़्ज़मा अंसारी
नागरिकता संशोधन क़ानून (CAA) के विरोध में सक्रीय रही जामिया मिल्लिया की शोध छात्रा सफूरा ज़रगर, जो दिल्ली दंगों की साज़िश के आरोप में गिरफ्तार हैं के मामले में अमेरिकी बार एसोसिएशन (ABA) ने चिंता जताई है. एबीए सेंटर फॉर ह्यूमन राइट्स ने कहा है कि उनकी गिरफ़्तारी अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकारों के नियमों के विरुद्ध हैं. एसोसिएशन ने तत्काल रिहाई की अपील की है.
जामिया मिलिया इस्लामिया में समाजशास्त्र की शोध छात्रा सफूरा ज़रगर को नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान ज़ाफराबाद मेट्रो स्टेशन के पास एक सड़क को जाम करने के आरोप में 10 अप्रैल को गिरफ्तार किया गया था. इस मामले में ज़मानत मिलने के बाद उन्हें यूएपीए के तहत 13 अप्रैल को फिर से दिल्ली दंगों की साज़िश के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया.
हाल में अमेरिका के एक प्रमुख अधिवक्ता संगठन, अमेरिकन बार एसोसिएशन (एबीए) ने सफूरा ज़र्गर की गिरफ्तारी पर चिंता जताई है और इसे अंतर्राष्ट्रीय क़ानून मानवाधिकारों के नियमों के विरुद्ध बताया है. अमेरिकन बार एसोसिएशन की स्थापना 1878 में संयुक्त राज्य में कानून के शासन को आगे बढ़ाने और कानूनी पेशेवरों, लॉ स्कूलों को मान्यता, मॉडल एथिक्स आदि.. के लिए व्यावहारिक संसाधन प्रदान करने के लिए किया गया था.
अमेरिकन बार एसोसिएशन दुनिया के सबसे बड़े स्वैच्छिक पेशेवर संगठनों में से एक है जिसमें लगभग 400000 सदस्य और 3500 से अधिक इकाइयां हैं.
सफूरा ज़रगर की हिरासत पर अपनी एक प्रारंभिक रिपोर्ट में, अमेरिकन बार एसोसिएशन (ABA) ने उल्लेख किया है कि, “अब तक की कार्यवाही की प्रारंभिक समीक्षा के आधार पर, एबीए सेंटर फॉर ह्यूमन राइट्स ने निर्धारित किया है कि उनकी हिरासत अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकारों के मानकों को पूरा नहीं करतीं.”
अमेरिकन बार एसोसिएशन की रिपोर्ट में कहा गया है, “अंतरराष्ट्रीय कानून, जिसमें भारत भी शामिल है, केवल संकीर्ण परिस्थितियों में ही पूर्व परीक्षण हिरासत की अनुमति देता है, जो कि ज़रगर के मामले में ऐसा नहीं हैं.”
रिपोर्ट में अमेरिकन बार एसोसिएशन ने तर्क दिया है, “सफूरा ज़रगर को हिंसा के कृत्यों से जोड़ने वाली एफआईआर में सबूतों की कमी को देखते हुए, यह स्पष्ट नहीं है कि इस मामले में अदालत द्वारा पूर्व-परीक्षण हिरासत की जगह अन्य विकल्प क्यों नहीं लिया गया.
अमेरिकन बार एसोसिएशन की रिपोर्ट में
अमेरिकी मानवाधिकार केंद्र, एबीए ने कहा है कि सफूरा के मामले में उसे ज़मानत देने से इनकार करना नागरिक और राजनीतिक अधिकारों के लिए अंतर्राष्ट्रीय करार के प्रावधानों के अनुरूप नहीं है.
पिछले हफ्ते दिल्ली की एक अदालत ने उत्तर-पूर्वी दिल्ली में फरवरी में हुई सांप्रदायिक हिंसा के मामले में यूएपीए कानून के तहत गिरफ्तार सफूरा ज़रगर की ज़मानत अर्जी को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि, “जब आप अंगारे के साथ खेलते हैं, तो चिंगारी से आग भड़कने के लिए हवा को दोष नहीं दे सकते.”
नागरिक और राजनीतिक अधिकारों की रिपोर्ट में कहा गया है कि, “यह सामान्य नियम नहीं होना चाहिए कि मुकदमे की प्रतीक्षा कर रहे व्यक्तियों को हिरासत में रखा जाएगा.”
अमेरिकी मानवाधिकार केंद्र एबीए ने सफूरा की गर्भावस्था के कारण उन्हें भीड़भाड़ वाली जेल में COVID-19 के संपर्क में आने की आशंका के बारे में भी विशेष चिंता जताई है.
इससे पहले भी अमेरिकी अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग (यूएससीआईआरएफ) ने भारत में समुदाय विशेष को CAA क़ानून का विरोध करने के कारण हिरासत में रखने पर चिंता जताई थी और कैद किए गए प्रदर्शनकारियों को रिहा करने की अपील की थी.
अमेरिकी अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग (यूएससीआईआरएफ) ने 14 मई को ट्वीट भी किया था जिसमें कहा गया था कि, “रिपोर्ट है कि कोविड 19 संकट के दौरान, भारत सरकार सीएए का विरोध करने वाले मुस्लिम कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर रही है, जिसमें प्रग्नेंट सफूरा जरगर भी हैं.”
पिछले हफ्ते दिल्ली की एक अदालत ने उत्तर-पूर्वी दिल्ली में फरवरी में हुई सांप्रदायिक हिंसा के मामले में यूएपीए कानून के तहत गिरफ्तार सफूरा ज़रगर की ज़मानत अर्जी को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि, “जब आप अंगारे के साथ खेलते हैं, तो चिंगारी से आग भड़कने के लिए हवा को दोष नहीं दे सकते.”
रिपोर्ट में ज़रगर के खिलाफ चलाए गए आपत्तिजनक ऑनलाइन अभियान का भी ज़िक्र है. इस ऑनलाइन अभियान पर इशारा करते हुए, केंद्र ने कहा, “ज़रगर एक ऑनलाइन अभियान का शिकार हुई है, जिसमें ऑनलाइन व्हाट्सएप और मैसेंजर के माध्यम से उनके चरित्र को लेकर आपत्तिजनक टिपण्णी की गई है.”
इस मामले में ज़रगर के खिलाफ चलाए गए इस अभियान के बाद, दिल्ली महिला आयोग ने दिल्ली पुलिस साइबर सेल से दोषियों पर कार्रवाई करने की मांग भी की है.