अलीगढ़ को क़रार नहीं है। विश्वविद्यालय एक बार फिर सुर्खियों में है। कुछ करम अलीगढ़ के बाहर रहने वाले ‘शुभचिंतकों‘ का है और कुछ करम अंदर रहने वाले ‘बुलबुलों‘ का, कि वे इस चमन को क़रार पाने ही नहीं देते। हालात ऐसे हो गए हैं कि महीने-पंद्रह दिन में अगर विश्वविद्यालय की चर्चा अख़बारों और न्यूज़ चैनलों में न हो, तो लोग-बाग पूछने लगते हैं कि क्या हुआ भई? इतना सन्नाटा क्यों है? इम्तिहान चल रहे हैं क्या?
हालिया विवाद क्या है? अगर आपने भी फ़ेसबुकिया जानकारी के आधार पर राय क़ायम की है, तो यह लेख आपके लिए ही है। आइए पूरे घटनाक्रम को जानने और कुछ कड़ियों को जोड़ने की कोशिश करते हैं, इस उम्मीद के साथ कि ग़लतफ़हमियां कम होंगी।
विश्वविद्यालय की प्रकृति :
सबसे पहले यह जान लीजिए कि एएमयू कैम्पस की प्रकृति (आसान भाषा में ‘नेचर‘) देश के बाक़ी विश्वविद्यालयों से काफ़ी जुदा है। एएमयू कैम्पस की भौगोलिक स्थिति भी काफ़ी अलग है। एक बड़ा-सा कैंपस है जिसके भीतर ज़्यादातर विभाग, लाइब्रेरी और छात्रावास आते हैं। इसके अलावा एक और कैंपस है जिसे ‘वीमेंस कॉलेज‘ कहा जाता है। इसमें स्नातक या स्कूल स्तर की छात्राओं की शिक्षा एवं हॉस्टल की व्यवस्था है। दोनों कैम्पस ख़ूबसूरत हैं, ऐतिहासिक धरोहर हैं और अपने आप में महत्व रखते हैं। इन दोनों की भौगोलिक दूरी को देखते हुए कुछ वर्षों पहले यहां का छात्रसंघ भी अलग कर दिया गया था। अब एएमयू में दो छात्रसंघ अपने-अपने निर्धारित क्षेत्रों में काम करते हैं। एक, एएमयू मुख्य कैंपस का छात्रसंघ (जिसमें छात्र-छात्राओं दोनों की बराबर भागीदारी है) और दूसरा वीमेंस कॉलेज का छात्रसंघ (जिसमें सिर्फ़ वीमेंस कॉलेज की छात्राओं की भागीदारी होती है)। दोनों जगह के मतदाता भी अलग-अलग होते हैं।
क्या है हालिया मामला? :
बात शुरू हुई थी वीमेंस कॉलेज छात्रसंघ की ओर से आयोजित कार्यक्रम ‘वीमेन लीडरशिप समिट‘ से। यह कार्यक्रम काफ़ी दिनों पहले से 26, 27, 28 मार्च को होना तय था। वीमेंस कॉलेज छात्रसंघ को हर तरफ़ से बधाईयां मिल रही थीं। ऐसा माना जा रहा था कि शायद पहली बार वीमेंस कॉलेज छात्रसंघ की ओर से इस तरह का और इस स्तर का कार्यक्रम कराया जा रहा है।

विवाद शुरू होता है जब कार्यक्रम में आमंत्रित अतिथियों की सूची जारी की जाती है। वक्ताओं में अरूंधति रॉय, तीस्ता सीतलवाड़, फ़ातिमा नफ़ीस, आरफ़ा ख़ानम शेरवानी जैसे कई नाम थे। समस्या शुरू हुई जब कुछ छात्रों ने फ़ेसबुक पर यह बात करनी शुरू की कि आरफ़ा ख़ानम शेरवानी द्वारा पिछले कुछ दिनों में विवादित टिप्पणियां की गई हैं जोकि ‘इस्लाम‘ और ‘मुस्लिम आइडेंटिटी‘ के ख़िलाफ़ हैं। यह बात कितनी सही है, इस पर हम आगे बात करेंगे।
बात फैली तो इस विरोध को धीरे-धीरे बल मिलना शुरू हुआ। कुछ ‘तथाकथित मुस्लिम तंज़ीमों’ ने इस मामले को उठाया और इस विरोध ने संगठित रूप ले लिया।
ख़ैर, 26 तारीख़ की सुबह कैनेडी कॉम्प्लेक्स में कार्यक्रम शुरू हो गया। 2 बजे आरफ़ा ख़ानम एक पैनल डिस्कशन में आने वाली थीं। लेकिन उससे पहले ही कुछ छात्र एएमयू छात्रसंघ उपाध्यक्ष ‘हमज़ा सुफ़ियान‘ के नेतृत्व में कार्यक्रम स्थल पर पहुंच गए। उनके हाथों में आरफ़ा ख़ानम के विरोध में उठाए गए प्लेकार्ड इत्यादि थे। उनका कहना था कि हम कार्यक्रम में आरफ़ा ख़ानम को तभी आने देंगे जब वे ट्विटर पर अपने द्वारा की गई टिप्पणी पर माफ़ी मांगेंगी अन्यथा उनका कार्यक्रम नहीं होने दिया जाएगा। इस बीच छात्रों की कार्यक्रम आयोजकों और वीमेंस कॉलेज छात्रसंघ अध्यक्ष आफ़रीन फ़ातिमा से तीखी नोंकझोंक भी हुई।

बहरहाल, पैनल डिस्कशन का कार्यक्रम संभव नहीं हो सका। आरफ़ा ख़ानम गेस्ट हाउस में ही बनी रहीं और कार्यक्रम स्थल तक नहीं पहुंच सकीं। विरोध कर रहे छात्रों की भीड़ छंटने लगी तो आयोजकों ने उस पैनल डिस्कशन के कार्यक्रम को दोबारा कराने की जुगत शुरू कर दी, जिसे भांपते हुए छात्र दोबारा एकत्रित होना शुरू हो गए। उस समय मंच पर एक पैनल डिस्कशन चल रहा था जिसमें डॉ. मुहिब्बुल हक़ (राजनीतिक शास्त्र विभाग, एएमयू) और नदीम असरार (पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष, एएमयू) मौजूद थे। इन दोनों वक्ताओं ने छात्रों को सम्बोधित करते हुए ‘कुछ‘ ऐसा कहा जिससे छात्रों में रोष बढ़ गया और उनकी ओर से कार्यक्रम को तुरंत रोकने की मांग की गई।
अंदर की बात, सूत्रों के साथ :
आयोजकों द्वारा विरोध कर रहे छात्रों पर आरोप लगाया गया है कि उन्होंने ज़बरदस्ती कार्यक्रम में बाधा डालने की कोशिश की, आयोजकों से बदतमीज़ी की और पंडाल को उखाड़ दिया। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक विरोध कर रहे छात्रों की आयोजकों से सिर्फ़ तीखी नोंकझोंक हुई थी। डॉ. मुहिब्बुल हक़ और नदीम असरार की टिप्पणी के बाद जब छात्रों में रोष बढ़ा तो उपाध्यक्ष हमज़ा सुफ़ियान ने पंडाल हटवा दिया और कार्यक्रम न होने की चेतावनी दी। इस बीच आरफ़ा ख़ानम और उपाध्यक्ष हमज़ा सुफ़ियान के बीच फ़ोन पर भी बात हुई थी।
सूत्रों से यह भी पता चला है कि उपाध्यक्ष हमज़ा सुफ़ियान की कार्यक्रम के कुछ आयोजक सदस्यों के साथ पुरानी तल्ख़ियां हैं और शायद यही वजह है कि इस पूरे एपिसोड में वे अचानक प्रकट हुए। इसका सीधा प्रमाण फ़ेसबुक पर वायरल हो रही एक कॉल रिकॉर्डिंग से मिलता है। कॉल रिकॉर्ड भी कथित तौर पर उनका ही है। इस बात-चीत में एक आदमी छात्रसंघ नेता को समझाने का प्रयत्न कर रहा है कि अगले दिन आयोजित वीमेंस कॉलेज छात्रसंघ की वीमेन लीडरशिप समिट में कोई बाधा न डालें जबकि नेता जी इस समिट के ऑर्गनाइज़र में से एक छात्र शर्जील उस्मानी की पुरानी फ़ेसबुक पोस्ट का हवाला देकर कह रहे हैं कि उन्हें उस पोस्ट में हुई बे इज्ज़ती का बदला लेना है और अगर यह छात्र उसी तरह फ़ेसबुक पर नेता जी से माफ़ी नहीं मांगता तो ‘बवाल‘ तो होगा ही। वे ‘खुन्नस‘ शब्द का भी प्रयोग करते हैं। जब उनसे कहा जाता है कि आप नेता है और प्रोग्राम में बाधा डालना आप पर ज़ेब नही देता तो वे जवाब देते हैं कि मेरे ऊपर सब ज़ेब देता है मै बहुत ‘नंगा‘ नेता हूँ।
अब एक गिरोह फ़ेसबुक पर क़समें खा रहा है कि कार्यक्रम स्थल पर कोई बदतमीज़ी नहीं हुई तो वहीं दूसरा गिरोह कह रहा है कि छात्राओं के साथ बदसुलूक़ी की गई है। सच इन दोनों के बीच कहीं गुम हो गया लगता है।
सवाल तो कई हैं लेकिन जवाब? :
इस पूरे प्रकरण में कई ऐसे सवाल हैं जिनके जवाब तलाशे जाने चाहिए। इन सवालों से बचने की कोशिशें की जा रही हैं या यूं कहिए कि ये सवाल जानबूझकर अनसुने किए जा रहे हैं।
पहला सवाल, जब वीमेंस कॉलेज छात्रसंघ और मुख्य कैंपस के छात्रसंघ का कार्यक्षेत्र अलग-अलग है तो यह कार्यक्रम मुख्य कैंपस में क्यों आयोजित किया गया?
दूसरा सवाल, कार्यक्रम के फ़ेसबुक पेज से 23 मार्च (दोपहर) तक जो जानकारी दी जा रही थी उसके अनुसार कार्यक्रम वीमेंस कॉलेज के भीतर ही आयोजित किया जाना था। फिर अचानक कार्यक्रम स्थल में बदलाव क्यों किया गया? विदित हो कि इसी बदलाव की वजह से एएमयू छात्रसंघ को अपना एक कार्यक्रम रद्द करना पड़ा जिसका आयोजन 27 मार्च को कैनेडी कॉम्प्लेक्स के निकट कल्चरल हॉल में होना था।
तीसरा सवाल, वीमेन लीडरशिप समिट, और वीमेंस कॉलेज छात्रसंघ द्वारा आयोजित, लेकिन इतने बड़े कार्यक्रम में वीमेंस कॉलेज की सिर्फ़ 150-200 छात्राएं? अगर यह कार्यक्रम वाकई छात्राओं को मद्देनज़र रखकर तय किया गया था तो वीमेंस कॉलेज से छात्राओं को मुख्य कैंपस में लाने की व्यवस्था क्यों नहीं की गई?
चौथा सवाल, छात्रों द्वारा आरफ़ा ख़ानम का विरोध फ़ेसबुक तक सीमित था। अचानक एएमयू छात्रसंघ उपाध्यक्ष एपिसोड में कैसे आए और छात्रों का नेतृत्व संभाल लिया? बहुत हद तक इसका उत्तर हमें ऊपर दी गई कॉल रिकॉर्डिंग की जानकारी से मिल जाता है, कि अमुवि छात्रसंघ उपाध्यक्ष आयोजकों के साथ निजी असहमतियों के चलते इस एपिसोड में आए और तथाकथित ‘इस्लाम प्रेमियों‘ का नेतृत्व संभाला।
पांचवां सवाल, 26 तारीख़ की शाम में हो रहे पैनल डिस्कशन में एएमयू छात्रसंघ अध्यक्ष सलमान इम्तियाज़ ही आमंत्रित क्यों थे? और अध्यक्ष उस कार्यक्रम में क्यों नहीं पहुंचे? क्या छात्रसंघ में कोई आंतरिक कलह चल रही है? हालिया प्रकरण से यह बात भी बहुत हद तक साफ़ हो जाती है कि अमुवि छात्रसंघ में सब-कुछ ठीक नहीं चल रहा है। अध्यक्ष सलमान इम्तियाज़ पहले दिन से डिबेट, डिस्कशन, डिसेंट का हवाला देकर अपना मत रख रहे हैं। उपाध्यक्ष हमज़ा सुफ़ियान का मत सबके सामने है। सचिव हुज़ैफ़ा आमिर इस पूरे एपिसोड में ख़ामोशी इख़्तेयार किए हुए हैं।
और सवाल तो यह भी है कि अंततः कार्यक्रम वीमेंस कॉलेज में आयोजित हुआ तो उस कैम्पस में पुरुष छात्रों के प्रवेश पर प्रतिबंध के बावजूद ‘कुछ’ छात्र कैसे पहुंचे? क्या आयोजकों से उन्हें समर्थन प्राप्त था या वे किसी ‘विशेष‘ विचारधारा से सम्बन्ध रखते हैं? अगर नियम हैं तो सबके लिए एक जैसे क्यों नहीं हैं?
सवाल यह भी है कि विमेंस कॉलेज स्टूडेंट्स यूनियन के अन्य सदस्यों की इस पूरे प्रकरण पर राय सामने क्यों नहीं आ रही है? क्या इस कार्यक्रम का पूरा संयोजन अध्यक्ष आफरीन फातिमा कर रहीं थीं? सूत्र यह भी बताते हैं कि विमेंस कॉलेज में भी आरफा खानम के टवीट्स पर असहमतियां थीं, उन्हें बाहर नहीं आने दिया गया या स्टूडेंट्स यूनियन के अन्य सदस्यों की असहमतियों के बावजूद इस कार्यक्रम को रखा गया?
एएमयू प्रशासन, एक ख़ामोश तमाशबीन? :
इस पूरे प्रकरण में एएमयू प्रशासन की भूमिका बाहरी तौर पर तो मूकदर्शक की सी बनी हुई है। आंतरिक मामलों का ज्ञान उन्हीं को बेहतर हो सकता है। शायद मामला ठंडा होने पर कुलपति जी का प्रेमपत्र विद्यार्थियों तक पहुंचे, लेकिन अभी इसके आसार नज़र नहीं आते। एएमयू प्रशासन छात्रों के आपसी और आंतरिक कलह में हमेशा मूकदर्शक ही बना रहा है। शायद उसे इसी में सुख प्राप्त होता हो या ‘आलाकमान‘ के आदेश ही यही रहे हों। क्योंकि प्रशासन ख़ुद इस बात से घबराया हुआ था कि कार्यक्रम में कश्मीर, आगामी लोकसभा चुनाव इत्यादि पर बात न की जाए। प्रॉक्टर साहब का कहना है कि शाम छः बजे तक उन्हें इस मामले में किसी प्रकार की कोई जानकारी नहीं थी। शायद उनकी टीम चाय पीने कहीं दूर निकल गई हो। विश्वविद्यालय में तो ख़ैर वे तभी नज़र आएंगे जब मामला ‘नाज़ुक‘ होगा। उनकी फुर्ती कैंपस में एक नारा गूंजते ही दिखाई दे जाती है।
ट्वीट, जिस पर विवाद हुआ :
तारीख़, 8 फ़रवरी। आरफ़ा ख़ानम का ट्वीट आया कि वे “ए. आर. रहमान की बेटी द्वारा उसके पहनावे के चुनाव का सम्मान करती हैं। लेकिन नक़ाब? क़ुरआन नक़ाब के लिए नहीं कहता। यह किस प्रकार की पितृसत्तात्मक ब्रेनवाशिंग है जो एक औरत को अपना चेहरा छुपाने के लिए मजबूर करती है?”

सवाल यह होना चाहिए कि जब आरफ़ा ख़ानम साहिबा या कोई भी समझदार व्यक्ति यह सहन नहीं करेगा कि ‘राज्य’ उसके घर में दख़लंदाज़ी करे तो यह कैसे सही ठहराया जा सकता है कि आरफ़ा ख़ानम साहिबा या कोई और ए. आर. रहमान या उनकी बेटी के निजी चुनावों पर सवाल उठाएं?
नक़ाब अगर किसी का निजी चुनाव है तो उससे किसी व्यक्ति को क्या परेशानी हो सकती है? अगर आरफ़ा ख़ानम साहिबा का निजी चुनाव नक़ाब न पहनना हो सकता है तो ए. आर. रहमान की बेटी का निजी चुनाव नक़ाब पहनना क्यों नहीं हो सकता? अगर आरफ़ा ख़ानम साहिबा के नज़दीक नक़ाब पहनना पितृसत्तात्मक ब्रेनवाशिंग है तो सवाल यह भी किया जा सकता है कि आरफ़ा ख़ानम साहिबा का नक़ाब न पहनना किस प्रकार की ब्रेनवाशिंग है? सेक्युलर, लिबरल, प्रगतिशील या वामपंथी ब्रेनवाशिंग?
विश्वविद्यालय का विचार :
विश्वविद्यालय समाज की प्रयोगशालाएं हैं। किसी भी विचार या विचारधारा का परीक्षण विश्वविद्यालय में ही हो सकता है। विश्वविद्यालय ही वह स्थान है जहां असहमतियों पर विमर्श हो सकता है। विश्वविद्यालय ‘संसद भवन‘ नहीं है जहां असहमतियां होने पर आंखों में मिर्च पाउडर डाल दिया जाएगा या कुर्सियां तोड़ दी जाएंगी।
आरफ़ा ख़ानम का विरोध जिस तरीक़े से किया गया, वह तरीक़ा विश्वविद्यालय के विचार से मेल नहीं खाता। होना यह चाहिए था कि उन्हें सम्मानपूर्वक कार्यक्रम में बुलाया जाता, उनकी बातें सुनीं जातीं और फिर सवाल किए जाते। विश्वविद्यालयों में विरोध का तरीक़ा सवाल पूछना ही होता है, उद्दंडता करना या हो-हल्ला मचाना नहीं।
आख़िरी बात :
आख़िरी बात अलीगढ़ और अलीगढ़ से बाहर बैठे एएमयू के तथाकथित ‘शुभचिंतकों‘ से करनी है। प्रिय शुभचिंतकों, इस विश्वविद्यालय को अपनी तथाकथित सेक्युलर, प्रगतिशील, नारीवादी, पुरुषवादी, लिबरल, वाम राजनीति का अखाड़ा मत बनाइए। आप हमारे इतने बड़े ‘शुभचिंतक‘ हैं कि विश्वविद्यालय में कोई घटना घटित होती है और आप उसमें अपने मतलब का ‘मसाला‘ खोजने लगते हैं।
हालिया मामला पूरी तरह यहां मची हुई आंतरिक कलह और कुछ असहमतियों को ग़लत रुख़ देने का नतीजा था लेकिन आपने इसे ‘स्त्री बनाम पुरुष‘ का मामला बनाकर परोस रहे हैं। दरअसल यह मामला ऐसा है ही नहीं। इस बात से कोई इन्कार नहीं है कि छात्रों के विरोध करने का तरीक़ा ग़लत था, लेकिन क्या छात्रों का विरोध ग़लत था? इस पर ठहर कर विचार कीजिए। किसी से असहमतियां रखना ग़लत नहीं है। जिस तरह से आरफ़ा ख़ानम साहिबा ने ट्वीट करके असहमति व्यक्त की, उसी तरह छात्रों की असहमति को भी सुना जाना चाहिए, लेकिन चूंकि उनका तरीक़ा ‘विश्वविद्यालय के विचार‘ के ख़िलाफ़ है, अतः उस ‘तरीक़े‘ का विरोध किया जाए, न कि ‘असहमति‘ का।
अंततः मामले पर राय बनाने से पहले इतना याद रहे कि जिस सभा को आरफ़ा ख़ानम ने सम्बोधित किया है, उसमें कई लड़कियां ऐसी थीं जो नक़ाब में थीं। इसके अलावा विरोधी गुट में भी कई लड़कियां हैं, जिनका सम्बन्ध वीमेंस कॉलेज से भी है। इसलिए इतना तो साफ़ है कि यह मामला ‘स्त्री बनाम पुरुष‘ का मामला नहीं है। अब पाठकों पर निर्भर है कि वे ‘फ़ेसबुकिया जानकारी‘ के आधार पर राय बनाते हैं या ‘ज़मीनी जानकारी‘ के आधार पर!
आख़िरी निवेदन विरोधी गुट और इस समिट के संयोजकों से है कि यह मामला पूरी तरह आपके विश्वविद्यालय का आंतरिक मामला है जिसे बैठकर सुलझाया जा सकता है। जो हरकतें फ़िलहाल सोशल मीडिया पर की जा रही हैं, वे ठीक नहीं हैं। वीमेन लीडरशिप समिट के फ़ेसबुक पेज से वायरल की जा रही कॉल रिकॉर्डिंग्स, विरोध गुट की जानिब से दी जा रहीं धमकियां इत्यादि अलीगढ़ तहज़ीब की तर्जुमानी नहीं करतीं। मेहरबानी करके इस मामले को यहीं रोककर अपनी-अपनी हरकतों पर पुनर्विचार कीजिए कि आपने जो किया है या जो कर रहे हैं वो क्या है? क्या आप ख़ुद बाहरी तत्वों को मौक़ा नहीं दे रहे हैं कि वे आप पर हंसें और मामले को मनचाहा रुख़ और रंग देते चले जाएं? क्या आप दोनों तरफ़ के लोग सर सैय्यद के क़ौल और क़ुरआन की आयतों का इस्तेमाल सिर्फ़ अपने व्यक्तिगत हितों को साधने और ख़ुद को बचाने के लिए करते रहेंगे या अपने गिरेबान में झांक कर देखेंगे कि जो आपने किया है, वो कितनी कमज़ोर और झूठी बुनियादों पर खड़ा है।
- ये लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं।