लाइन लग एक एक
वोट आने वाली सरकारों को दे रहे थे,
सरकारें जो हमारी उम्मीदों के थे
रोजी के थे , रोटी के थे, मकान के, दलान के थे।
हमने बहुमत बुना,
और सरकारें आयी।
पिछली बार बहुमत ना मिलने पर
वे कह रहे थे – सत्ता पर विपक्ष हावी है।
अब कोई यह मत कहना कि
मैं फलां के पक्ष में हूँ,
या फलां का विरोधी।
हमने विपक्ष हटा दिया,
इसबार हमने बहुमत चुना।
हमने इन्हीं उंगलियों से वोट दिया –
आज वे लोग घर तोड़ रहे हैं,
लाठी मार रहे हैं,
निवालें छीन रहे हैं,
अफसोस! हम कुछ नहीं कर सकते हैं
विपक्ष भी नहीं बोलेगा क्योंकि
बहुमत की सरकार है।
बहुमत की सरकार में
हर लाठी खानेवाला , बेघर होनेवाला,
रोजगार माँगनेवाला देशद्रोही है।
इस सरकार ने क्या दिया ?
घर ?
चूल्हा ?
फैक्ट्री ?
हमने वोट करते समय सोचा था –
अपना घर होगा, गैस के चूल्हे होंगे,
इसी शहर में काम करेंगे।
लेकिन क्या हुआ,
ना घर ठीक से बना, ना गैस के चूल्हे पर रोटी बना पा
रहा हूँ, फैक्ट्री के लिए आज भी दिल्ली, मुंबई, कोलकाता जाता हूँ।
मुझे क्या चाहिए था, क्या मिला ..
अब कोई मुझे यह मत कहना –
मैं फलां के पक्ष में हूँ, फलां का विरोधी।
मनकेश्वर कुमार