लॉकडाउन की त्रासदी को दर्ज करती है ‘भीड़’

फ़िल्म में यह भी बहुत दिलचस्प तरीक़े से दिखाया गया है कि कैसे कोविड की महामारी के दौरान मीडिया की ग़ैर-ज़िम्मेदाराना कवरेज ने इस्लामोफ़ोबिया को आम किया और मुसलमानों की छवि को समाज में बदतर बना दिया। अचानक और अनियोजित तरीक़े से लगे लॉकडाउन से देश में जो कुछ घटा उसे बहुत-ही शानदार तरीक़े से इस फ़िल्म में दिखाया गया है। कहा जा सकता है कि ‘भीड़’ लॉकडाउन का दस्तावेज़ है।

कॉमेडी की आड़ में कटाक्ष है ‘कटहल’

फ़िल्म उन सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनैतिक मुद्दों की पड़ताल करती है जो मध्य भारत के अंदरूनी इलाक़ों में प्रचलित हैं, जहां कटहल की चोरी जैसे अपराध की जांच की जानी चाहिए, और इसे किसी भी हालत में नज़रअंदाज नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि ग़ायब हुआ कटहल किसी मामूली व्यक्ति का नहीं बल्कि एक राजनेता का है।

‘अफ़वाहों’ की भयावहता से आगाह करती फ़िल्म

इस फ़िल्म में आज के समय के ज्वलंत मुद्दों का बहुत ही सटीक तरीक़े से फ़िल्मांकन किया गया है। सांप्रदायिकता का ज़हर, फ़ेक न्यूज़, वर्किंग महिला के साथ यौन शोषण, अफ़वाहों को फैलाने का नियोजित प्रॉपगैंडा, गौ तस्करी इत्यादि का झूठ देखकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। इन तमाम मुद्दों पर फ़िल्म में बहुत बेबाक तरीक़े टिप्पणी की गई है।

दुष्प्रचार का हथियार है ‘द केरला स्टोरी’

‘द केरल स्टोरी’, फ़िल्म द कश्मीर फ़ाइल्स की तर्ज़ पर बनाई गई है, जिसमें अर्धसत्य दिखाए गए हैं और मुख्य मुद्दों को परे रखकर नफ़रत फैलाने और विभाजनकारी राजनीति को बढ़ावा देने का प्रयास किया गया है। कश्मीर फ़ाइल्स को गोवा में आयोजित 53वें अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म समारोह की जूरी के प्रमुख ने प्रचार फ़िल्म बताया था। जूरी के एक अन्य सदस्य ने इसे अश्लील कहा था।

लाल सिंह चढ्ढा

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