पैग़ंबर मुहम्मद (स०) और उनके साथियों का पहला रमज़ान

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इबादत और रोज़ा का मतलब दैनिक जीवन के कामों और अन्य अभ्यासों को छोड़ देना नहीं है। अल्लाह के रसूल (सल्ल०) रमज़ान में अपने दैनिक जीवन को बाधित न करने की कोशिश करते थे, और अगर उन्हें रोज़े के दौरान कुछ करना होता, तो वह करते थे। अपने कामों में वह रोज़े के नाम पर देरी नहीं करते थे।

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