[कविता] तरस आता है उस देश पर

“लॉरेंस फ़र्लिंगहेटी की यह कविता ‘तरस आता है उस देश पर’, उस देश की है, जिसकी बदनामी इस देश में नहीं हो सकती। इस-उस देश के बीच फँसे एक देश के नागरिकों के सामने एक कविता खड़ी है।” - रवीश कुमार

कोरोना काल में ईद की नमाज़ घर में या ईदगाह में?

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कोरोना वायरस का कहर पूरी दुनिया में बरपा है। कई देशों में कोरोना की दूसरी लहर भी आ चुकी है, जो पहली लहर से...

पुस्तक समीक्षा: कौन हैं भारत माता?

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पुस्तक: कौन हैं भारत माता? - इतिहास, संस्कृति और भारत की संकल्पना लेखन व संपादन: पुरुषोत्तम अग्रवाल प्रकाशक: राजकमल प्रकाशन भाषा: हिंदी मूल संस्करण (अंग्रेज़ी) से हिंदी अनुवाद:...

[पुस्तक समीक्षा] बाइज़्ज़त बरी: साज़िश के शिकार बेकुसूरों की दास्ताँ

पुस्तक का नाम: बाइज़्ज़त बरी? - साज़िश के शिकार बेकुसूरों की दास्ताँ लेखक: मनीषा भल्ला, डॉ. अलीमउल्लाह ख़ान प्रकाशक: भारत पुस्तक भंडार प्रकाशन वर्ष: 2021 भाषा: हिन्दी पृष्ठ: 296 समीक्षक:...

वर्ल्ड प्रेस फ़्रीडम इंडेक्स में 11 पायदान लुढ़क कर 161वें स्थान पर पहुंचा भारत

रिपोर्ट के मुताबिक़, 2023 के विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत पिछले साल की तुलना में 11 पायदान गिरकर 161 वें स्थान पर पहुंच गया है। पिछले साल 180 देशों की सूची में भारत को 150 वां स्थान दिया गया था। इंडेक्स के मुताबिक़ अब भारत, पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान से भी कई पायदान पीछे है। इन दोनों देशों की रैकिंग में सुधार हुआ है और ये क्रमशः 150 और 152 वें स्थान पर पहुंच गए हैं।

क्या एहसान जाफ़री को हम भूल जाएंगे?

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21 साल पहले, आज (28 फ़रवरी) ही के दिन, गुजरात में हिन्दुत्ववादी भीड़ ने गुलबर्ग सोसाइटी पर हमला किया था जिसमें कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफ़री सहित 69 लोगों की दर्दनाक मौत हो गई थी। एहसान जाफ़री ने गुलबर्ग सोसायटी के लोगों को बचाने के लिए सबको फ़ोन किये, यहाँ तक कि तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को भी, लेकिन किसी ने उनकी मदद नहीं की। कौन थे एहसान जाफ़री? क्या थी गुलबर्ग सोसायटी और क्या हुआ उनके साथ? पढ़िए इस लेख में।

अल्लामा इक़बाल की प्रासंगिकता बरक़रार है

दरअसल सत्ता के नशे में चूर हुक्मरानों का यह सोचना है कि उन्होंने इक़बाल को पाठ्यक्रम से बाहर निकाल कर उन्हें दफ़्न कर दिया है लेकिन अल्लामा इक़बाल कोई टिमटिमाता हुआ दिया नहीं हैं जो उनकी फूंकों से बुझ जाएंगे। दुनिया में बहुत कम शायर ऐसे हुए हैं जिनकी शायरी को देशों की सीमाओं से परे, अवाम ने इतना पसंद किया हो।

चे ग्वेरा के बहाने सलाहुद्दीन अय्यूबी की याद

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जो काम आधुनिक युग में चे ग्वेरा ने अमेरिकी साम्राज्यवाद को चुनौती देकर किया था, उससे बड़ा कारनामा सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी क़रीब आठ सदी पहले ज़बरदस्त ढंग से कर चुके थे, जिसकी कसक सदियों तक यूरोपीय देशों को रही।

कोरोना काल में लॉकडाउन के दौरान बढ़े घरेलू हिंसा के मामले

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बीते दिनों जैसे-जैसे दुनिया भर की सरकारों ने कोरोना वायरस के फैलने को नियंत्रित करने के लिए लॉकडाउन लागू किया, उसी दौरान भारत सहित...

सपनों की उड़ान (लघुकथा)

सपनों की उड़ान (लघुकथा) सहीफ़ा ख़ान ट्रेन अपनी रफ़्तार पकड़ चुकी थी। अब तो शहर भी आंखों से ओझल होता जा रहा था। वह सीट के...