कल कोटा में एक वाक़िया पैश आया, लड़के वालों की तरफ़ से दहेज़ की माँग करने पर लड़की ने बहादुरी दिखाते हुए शादी से इंकार कर दिया और बारात को बिना दुल्हन वापस लौटना पड़ा ।
देश की बेटी डॉ राशि को इस बहादुरी पर सलाम ।
जो परिवार बारात ले कर आया था वो “पढ़ा-लिखा” और “सभ्य” परिवार है, लड़का डॉक्टर है, और जिससे शादी हो रही थी वो लड़की भी डॉक्टर है ।
ये इक्कीसवी सदी के भारत की तस्वीर है की जहाँ आज भी बिना किसी शर्म के ज़बान से दहेज़ की माँग की जाती है और इस तरह की जाती है जैसे अधिकार माँगा जा रहा हो, और अधितर मामलों में लड़की वाले मजबूर हो कर दहेज़ की माँग को पूरा करने की कोशिश करते हैं चाहे इसके लिए उन्हें अपने आपको ही गिरवी क्यों न रखना पड़ जाए ।
दहेज़ हमारे देश में एक नासूर की तरह बढ़ता जा रहा है और इसके चलते कई दुल्हनों के हाथों की मेहंदी का रंग फीका पड़ने से पहले उनकी ज़िन्दगी का रंग फीका पड़ जाता है और वो इस बेरंग ज़िन्दगी के बजाए मौत को चुन लेती हैं ।
भारत में 1961 में दहेज़ को ग़ैरक़ानूनी मान लिया गया था, उसके बावजूद आज भी भारत दुनिया के उन पाँच देशों में है जहाँ दहेज़ की वजह से सबसे ज़्यादा हत्याएँ होती हैं, भारत में हर एक घंटे में एक दुल्हन दहेज़ की वजह से क़त्ल कर दी जाती है और अधिकाँश मामलों में लड़की को ज़िन्दा जला दिया जाता है ।
दहेज़ के इस दैत्य को ऐसा नहीं है की देश के कम पढ़े लिखे और अनपढ़ लोग ही ख़ून पिला कर सशक्त कर रहे हों, बल्कि कई मामलों में उच्च शिक्षित और बड़ी बड़ी डिग्री रखने वाले लोग दहेज़ की गंदगी में संलिप्त होते हैं, और सच्चाई तो यही है की दहेज़ को दानव बनाने में देश के तथाकथित सभ्य और पढ़े लिखे पूंजीवाद के नशे में धुत्त लोगों का हाथ सबसे ज़्यादा है ।
सवाल ये है की शादी कोई व्यापार है की जिसकी बुनियाद लेन देन पर रखी जाए ??
शादी तो दिलों का मिलाप होता है, मुहब्बत, जज़्बात और अहसासात इसके मूल स्तम्भ होते हैं, रिश्ता एक आदमी को मजबूर नहीं मज़बूत करता हो ।
जिस समाज में रिश्तों की शुरुआत ही मुहब्बत के बजाए नफ़रत से हो और पहले दिन ही एक आदमी को कमज़ोर, असहाय और मजबूर कर दिया जाता हो, वो समाज स्वार्थी और बिखरा हुआ न होगा तो कैसा होगा ।
मुत्तलिब मिर्ज़ा,कोटा