ईरान, हिजाब और चुनने की आजादी -1

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मैं जेसुइट्स (एक कैथोलिक धार्मिक गुट) द्वारा संचालित एक लिबरल कॉलेज से अपना स्नातक के एक सिमेस्टर मे था। एक सुबह जब मैं कुछ दोस्तों के साथ कैंपस में टहल रहा था, तभी मेरे पिता ने फोन कर मुझे प्रोफेसर के स्टाफ रूम में उनसे मिलने के लिए कहा। मैं उन्हें वहां देखकर हैरान रह गया और तभी मेरे पिता ने मुझे बताया कि मेरी क्लास मेंटर ने उन्हें फोन किया था और उनसे मिलने के लिए कहा था। इतने में मेरी प्रोफेसर भी वहाँ आ गई और उन्होंने मेरे पिता को बैठने के लिए कहा और वो खुद उनके बगल में बैठ गई। मैं बस हैरान खड़ा था कि उसने अचानक से मुझे क्यों बुलाया और मैं ये जानने के लिए उत्सुक था की वो क्या बात करने वाली हैं । तब मेरी प्रोफेसर ने मेरे पिता से कहा कि मैं एक बहुत ही ‘रूढ़िवादी, पितृसत्तात्मक और स्त्री विरोधी’ व्यक्ति हूं जो अभी भी हिजाब जैसी पुराने जमाने की धारणाओं के साथ खड़ा है। वह ऐसी बातों को लेकर बड़बड़ा रही थी और तभी मैंने देखा कि वो मेरी प्रोफेसर के केबिन की दीवार पर टक टकी लगाकर देखने लगे और उनके चेहरे पर एक मुस्कान छा गई । उसकी बात पूरी होने पर मेरे पिता ने प्रोफेसर के बगल में लगी ‘मैरी’ के एक चित्र की ओर इशारा करते हुए कहा, जिसमे वो यीशु गोद लिए हुई दिख रही हैं “मेरा बेटा तो बस उस ड्रेस कोड का एक बड़ा प्रशंसक है जिसका ‘मैरी’ पालन करती हैं”। ये सुन कर प्रोफेसर मुस्कुराने लगी क्यूँकी वो बिल्कुल लाजवाब हो गई थी ।

इस कथन का उद्देश्य किसी व्यक्ति को स्टीरियोटाइप करना या नीचा दिखाना नहीं है। यह केवल इस धारणा को सामने रखने के लिए है कि उदारवाद अपनी प्रकृति में सभी को शामिल नहीं करता है जैसा कि यह प्रतीत होता है, बल्कि ‘स्वतंत्रता और पसंद’ की इसकी अपनी ही एक परिभाषा है। पश्चिमी मीडिया पर एक नज़र डालने मात्र से आपको पता चल जाएगा कि ईरान के साथ दुश्मनी पुलिस की बर्बरता की वजह से नहीं है, बल्कि ईरान के साथ जुड़े ‘इस्लामिक रिपब्लिक’ शब्द की वजह से है। ईरान मे इसलामी क्रांति से पहले की तस्वीरों में बीबीसी द्वारा महिलाओं को स्कर्ट में पढ़ते हुए दिखाया गया मानो इस्लामी क्रांति और हिजाब पर जनादेश के बाद महिलाओं की शैक्षिक प्रगति में बाधा आ गई थी ।महासा अमीमी की मौत के बाद पूरे ईरान में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया है। इसके विरोध में कुछ महिलाओं ने हिजाब जला दिया और अपने बाल काट लिए। विरोध प्रदर्शनों का समर्थन में एक वैश्विक बहस भी छिड़ चुकी है। हालांकि, 23 सितंबर को जुमे की नमाज के बाद हजारों लोग सरकार के समर्थन में भी इकट्ठा हुए।

फिर भी, हिजाब, नैतिकता, पसंद, इस्लाम और ईरान के बारे में बहुत कुछ संबोधित करने की आवश्यकता है। इस विषय को संबोधित करने के लिए, ईरान की पृष्ठभूमि और जिओ-पॉलिटिक्स और हिजाब के मुद्दे को संबोधित करने वाले कुरान की आयतों की धार्मिक समझ में गोता लगाने की आवश्यकता है।

ईरानी क्रांति और महिलाएं1953 में, ईरान के लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित नेता मोहम्मद मोसद्देक को तख्तापलट द्वारा उखाड़ फेंका गया था; जिसमे सीआईए और ब्रिटिश खुफिया एजेंसी की अहम भागीदारी थी। इसके बाद उनकी जगह एक कठपुतली तानाशाह रजा पहलवी ने ले ली, जिन्हें ‘शाह’ के नाम से भी जाना जाता है। अमेरिका की कठपुतली ठीक अपने राजशाही पिता की तरह, जिसने 1936 में कशफ ए हिजाब लगाया था। अतातुर्क के नक्शेकदम पर चलते हुए ईरान में हिजाब पर जबरन प्रतिबंध लगा दिया गया था। शाह ‘महिला मुक्ति’ के यूरोपीय मॉडल को बढ़ावा देने के लिए स्कर्ट पहने रानी और उनकी बेटियों के साथ स्नातक समारोह में भी शामिल होते थे। पश्चिम देश शाह के पीछे हो लिए और नव-उपनिवेशवाद की इस परियोजना में उनका उत्साह बढ़ाया।

1979 में ईरान मे एक ऐसा बदलाव हुआ जिसने इतिहास के पाठ्यक्रम को बदल दिया। इमाम खुमैनी ने ईरानी क्रांति लाने के लिए शाह के शासन को उखाड़ फेंका था। उन्होंने महिलाओं से आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेने का आह्वान किया और हिजाब पहनकर आई महिलाओं का समर्थन किया ताकि शाह की नीतियों के प्रति अपना विरोध जाहिर किया जा सके। उन्होंने कहा, “आप महिलाओं ने यहां साबित कर दिया है कि आप इस आंदोलन में सबसे आगे हैं। हमारे इस्लामी आंदोलन में आपकी बड़ी भूमिका है। हमारे देश का भविष्य आपके समर्थन पर निर्भर करता है।“

ईरानी क्रांति के तुरंत बाद एक साक्षात्कार के में, खोमेनी ने कहा “महिलाओं ने ईरान में हाल के संघर्ष में पुरुषों के समान ही हिस्सा लिया है। हम महिलाओं को हर तरह की आजादी देंगे, लेकिन हम [नैतिक] भ्रष्टाचार को रोकेंगे और, इस मामले मे , पुरुषों और महिलाओं के बीच कोई अंतर नहीं किया जाएगा।

1981 में,क्रांति के दो साल बाद सार्वजनिक रूप से हिजाब पहनना अनिवार्य कर दिया गया था। हालांकि दुनिया भर में हिजाब करने के अलग-अलग तरीके पाए जाते हैं क्योंकि इस्लाम विभिन्न संस्कृति के माध्यम से एकीकृत हुआ है, ईरानियों ने ‘चादर’ (एक व्यक्ति के चारों ओर लिपटी एक लंबी शॉल) को अपनाया। हिजाब का यह तरीका तब से समय के साथ विकसित हुआ है।

पूरे मध्य पूर्व में, अरब स्प्रिंग एक भी सफल आंदोलन जो जन्म नहीं दे सका जो एक दशक तक भी चल सके। इसके बावजूद भी ईरान पश्चिम एशिया का एकमात्र ऐसा देश है जो इस्लामी क्रांति लाने कामयाब रहा,अमेरिका और बाकी दुनिया द्वारा अपने ऊपर लगे आर्थिक प्रतिबंधों को झेला और उसका डट कर सामना किया। अमेरिकी दूतावास संकट, ईरान-कॉन्ट्रा घोटाले, 1988 में अमेरिका द्वारा अपने यात्री विमान को मार गिराए जाने, ईरान-इराक युद्ध और हाल ही में कासिम सुलेमानी की हत्या का सामना कर चुका है।

पश्चिम और इजरायल द्वारा लंबे समय से इसे अस्थिर करने के प्रयासों को देखते हुए एक राष्ट्र के रूप मे ईरान की प्रशंसा और सराहना की जानी चाहिए।ईरानी क्रांति की सफलता और वादों पर बहस हो सकती है, लेकिन ईरान के सामाजिक मापदंडों से संकेत मिलता है कि 1979 के बाद से महिला सशक्तिकरण में वृद्धि ही हुई है। महिलाओं की साक्षरता दर का लिंगानुपात भारत जैसे देश की तुलना में कहीं बेहतर है। कार्यबल के 16% से अधिक पर महिलाओं का कब्जा है और वो समाज में सक्रिय भूमिका निभाती हैं।

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