कविता-नफरत…

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नफरत…
जिसके बीज दिलों में बोए जाते हैं।
जो इन्सान से कई अपराध कराती है।
और जब यह नफरत हद से गुज़र जाती है,
तो सांप्रदायिक दंगे भड़काती है।
कभी गुजरात कभी दिल्ली में नज़र आती है,
यही है…जो भीड़ से लिंचिंग कराती है
इंसानियत को हैवानियत में बदल देती है।

एक सीधा सवाल…
आखिर इतनी नफरत कहाँ से आती है?
यह चंद लोग हैं…
जो अपनी सियासत की रोटी नफरत से सेकते हैं,
अपने स्वार्थ की खातिर इंसानियत से खेलते हैं
हम इनका मोहरा बन जाते हैं
और यह…
धर्म, जाति-प्रजाति, ऊंच-नींच के नाम पर,
दिलों में फूट डालते हैं

तो आईये सब मिल कर…
इस नफरत को तोड़ें ।
देश को फिर से जोड़ें ।

सिद्दीक़ी मुहम्मद उवैस

छात्र, महाराष्ट्र

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