2013 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार द्वारा किशनगंज में बिहार के अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) केंद्र की स्थापना के लिए 136 करोड़ रुपये के अनुदान को मंज़ूरी दिये हुए सात साल बीत चुके हैं, लेकिन अब तक केवल 10 करोड़ की राशि ही जारी की गई है। इस धोखे की वजह से आज यह केंद्र बंद होने की कगार पर खड़ा है।
स्थानीय कार्यकर्ता और राजनेता इस केंद्र के लिए धन की कमी का मुद्दा उठाते रहे हैं लेकिन केंद्र सरकार ने इस पर अब तक कोई ध्यान नहीं दिया है। हाल ही में, यह मुद्दा फिर से प्रकाश में आया क्योंकि किशनगंज से कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद पिछले कुछ समय से लगातार विभिन्न स्तरों पर यह मुद्दा उठा रहे हैं। पिछले महीने उन्होंने शून्यकाल के दौरान संसद में भी यह मुद्दा उठाया था।
उन्होंने संसद में कहा, “मैं आपको याद दिलाना चाहता हूँ कि 2013 में जब यूपीए सत्ता में थी, तब एएमयू सेंटर ज़िले के शैक्षिक पिछड़ेपन को ध्यान में रखते हुए खोला गया था। लेकिन दुर्भाग्य से पिछले 7 वर्षों में, शेष राशि (122.82 करोड़ रुपये) जारी नहीं की गई, जबकि मैंने कई बार संसद में इस मुद्दे को उठाया है। मैं शेष राशि जारी करने के लिए वित्तमंत्री से हाथ जोड़कर अपील करना चाहता हूँ। और साथ ही उनसे 200-500 करोड़ अधिक अनुदान आवंटित करने का आग्रह करता हूँ क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ‘सबका साथ और सबका विकास’ की बात करते हैं।”
इस वर्ष 8 से 10 मार्च के बीच तीन दिनों तक, उन्होंने संसद में महात्मा गांधी की प्रतिमा के सामने “रिलीज़ फ़ंड, सेव एएमयू किशनगंज सेंटर” लिखे पोस्टर के साथ केंद्र के लिए स्वीकृत शेष राशि को जारी करने की मांग की थी। कांग्रेस सांसद शशि थरूर और गुरजीत सिंह ने भी एएमयू सेंटर के लिए उनकी मांगों को समर्थन दिया।
इससे पहले उन्होंने इस संबंध में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण को एक पत्र भी लिखा था। सीतारमण ने पत्र का जवाब देते हुए कहा कि उन्हें इस बारे में पत्र मिला है। उन्होंने अनुदान के बारे में कुछ नहीं कहा।
इसी वर्ष 22 फ़रवरी को, उन्होंने इस मांग को आगे बढ़ाते हुए ऑनलाइन और ऑफ़लाइन हस्ताक्षर अभियान भी चलाया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को संबोधित करते हुए इस ऑनलाइन याचिका “किशनगंज में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय केंद्र के लिए राशि जारी करो” को इस रिपोर्ट के लिखे जाने तक 9,793 समर्थन हस्ताक्षर प्राप्त हुए हैं।
एएमयू केंद्र के लिए फ़ंड संकट के बारे में बात करते हुए, जावेद ने वर्तमान सरकार को आवंटित निधि को जारी करने में विफल रहने के लिए दोषी ठहराया।
उन्होंने कहा, “हालांकि, यूपीए की अगुवाई वाली सरकार ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी सेंटर, किशनगंज की स्थापना के लिए ज़मीन मुहैया कराकर प्रोफ़ेशनल कॉलेजों के लिए ज़मीन आवंटित की थी और बाद में वित्तीय वर्ष 2013-14 में उसी सरकार ने इस सेंटर के लिए ₹135.4 करोड़ की राशि स्वीकृत की थी। यूपीए सरकार ने वित्तीय वर्ष 2013-14 में ₹10 करोड़ जारी भी किए थे। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि वर्तमान सरकार ने वर्ष 2014 से कोई राशि जारी नहीं की है।”
वह इस बात से नाराज़ हैं कि संसद और अन्य स्तरों पर इस मुद्दे को उठाने के बावजूद, उन्हें केंद्र सरकार से कोई “सकारात्मक प्रतिक्रिया” नहीं मिली है। अब उन्हें लगता है कि सरकार पर दबाव बनाने के लिए किशनगंज के नागरिकों और निवासियों के संयुक्त प्रयासों से इस संबंध में कोई परिणाम मिल सकता है।
उन्होंने बुनियादी सुविधाओं के अभाव के कारण अपने ज़िले और सीमांचल के पूरे क्षेत्र के पिछड़ेपन पर अफ़सोस भी जताया।
किशनगंज में मुसलमानों की संख्या लगभग 67 प्रतिशत है। इतनी बड़ी मुस्लिम आबादी वाला यह क्षेत्र सामाजिक-आर्थिक स्थिति और विकास के बुनियादी मानकों में पिछड़ा हुआ है।
उन्होंने कहा, “अधिकांश घरों में वित्तीय अस्थिरता और क्षेत्र में बुनियादी सुविधाओं के अभाव के कारण बच्चों के लिए व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त करना मुश्किल है। साथ ही, सीमांचल में बुनियादी शैक्षिक ढांचे की खराब स्थिति भी यहां विद्वानों, शोधकर्ताओं और शिक्षाविदों की कमी का एक मुख्य कारक है, जिनके योगदान और सुझाव एक शहर के विकास के लिए आवश्यक होते हैं।”
उन्होंने ज़ोर देते हुए कहा कि, “आज भी, बिहार से देश के अन्य हिस्सों में आम जनता का लगातार पलायन जारी है जिसका मुख्य कारण ज़रूरी शिक्षा सुविधाओं की कमी है और इसलिए यहां एक संतोषजनक जीवन शैली की संभावनाएं बहुत कम हैं। अतः ये दुष्चक्र इस क्षेत्र और यहां तक कि पूरे बिहार के विकास को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रहा है और अगर जल्द ही इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो यह सामाजिक संकट को और गहरा ही करेगा।”
फ़ंड की कमी ने एएमयू किशनगंज सेंटर को बुरी तरह से प्रभावित किया है क्योंकि सेंटर के पास कामकाज के लिए बुनियादी सुविधाएं और इमारत भी नहीं है। वर्तमान में, यह सेंटर राज्य की नीतीश कुमार सरकार द्वारा दी गई केवल दो अस्थायी इमारतों में ही मुश्किल से चलाया जा रहा है।
एएमयू किशनगंज केंद्र के निदेशक हसन इमाम ने हमारे संवाददाता को बताया कि विश्वविद्यालय द्वारा प्राप्त फ़ंड की बदौलत यह केंद्र अभी तक चल रहा है। उन्होंने कहा कि “विश्वविद्यालय अपने स्वयं के कोष से इस केंद्र को चला रहा है।” केंद्र में वर्तमान समय में 27 कर्मचारी हैं जिनका वेतन भी विश्वविद्यालय द्वारा ही दिया जा रहा है।
शुरुआत में इस केंद्र में दो पाठ्यक्रम – एमबीए और बीएड शुरू किए गए थे। लेकिन वर्तमान में केवल एमबीए कोर्स ही पढ़ाया जा रहा है। 2018 में, एनसीईटी (नेशनल काउंसिल फ़ॉर टीचर एजुकेशन) द्वारा बीएड कोर्स को रोक दिया गया था। कहा गया था कि किशनगंज केंद्र ने इसके लिए एनसीईटी से पूर्व अनुमति नहीं ली थी। इमाम ने कहा कि इस संबंध में पटना उच्च न्यायालय में एक मामला चल रहा है।
किशनगंज केंद्र के पास अपना इमारती ढांचा भी नहीं है। बिहार सरकार ने महानंदा नदी के पास इस सेंटर के लिए 224 एकड़ जमीन आवंटित की थी, लेकिन एनजीटी द्वारा इस पर ऐतराज़ जताने के कारण यह मामला क़ानूनी पचड़े में फंसा हुआ है।
इमाम ने कहा कि उन्होंने इस ज़मीनी विवाद के संबंध में सरकार को यह सोचकर नहीं लिखा कि अलीगढ़ में विश्वविद्यालय प्रशासन इसके बारे में लिखेगा। और विश्वविद्यालय ने इसलिए नहीं लिखा क्योंकि उन्होंने सोचा था कि आवंटित भूमि जहां सेंटर को स्थाई रूप से विकसित किया जाना है उसको को एनजीटी से ही मंज़ूरी नहीं मिली है।
उन्होंने कहा, “मैं मोदी जी से अपील करना चाहता हूं कि हमें इस केंद्र को चलाने के लिए फ़ंड की ज़रूरत है। आवंटित की गई ज़मीन पर एनजीटी द्वारा की गई आपत्ति को रद्द कर दिया जाना चाहिए क्योंकि विश्वविद्यालय कोई प्रदूषण नहीं फैलाता। इस मुद्दे को ग़लत तरीक़े से उठाया गया है। विश्वविद्यालय तो वहां हरियाली लाएगा। यह वहां रोज़गार पैदा करेगा। इसलिए, मैं मोदी जी से इस पिछड़े क्षेत्र को विकसित करने के लिए एएमयू केंद्र की मदद करने का अनुरोध करता हूं।”
ऑल इंडिया मजलिस इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के प्रदेश अध्यक्ष और हाल ही में चुने गए विधायक अख़्तरुल ईमान किशनगंज से हैं और वह किशनगंज केंद्र के फ़ंड के मुद्दे को अलग-अलग समय पर उठाते रहे हैं। उन्होंने बताया कि सेंटर की बिगड़ती स्थिति के लिए केंद्र सरकार के साथ-साथ विश्वविद्यालय भी ज़िम्मेदार है।
उन्होंने कहा कि एक तरफ़ केंद्र सरकार की मंशा ठीक नहीं है और दूसरी तरफ़ विश्वविद्यालय प्रशासन भी लगातार प्रयास नहीं कर रहा है। साथ ही उन्होंने ये भी बताया कि बिहार के मुख्यमंत्री से उनकी हालिया मुलाक़ात में भी उन्होंने एएमयू किशनगंज सेंटर के मामले को उठाया था। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उन्हें इस मामले को देखने का आश्वासन दिया है। उन्होंने सरकार के एएमयू सेंटर की आवश्यकता पर ध्यान न देने पर जन आंदोलन शुरू करने की चेतावनी भी दी है।
वक़ार हसन
स्वतंत्र पत्रकार