शिक्षक दिवस । इमाम अबु हनीफा और उसके सागिर्द इमाम अबु यूसुफ

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इमाम अबु हनीफा की क्लास चल रही थी, विश्व के कई क्षेत्रों से आए हुए शिष्य जमा थे, किताबें खुली थीं, किताबों से भी और बगैर किताबों के भी पढाई चालू थी, इतने में एक बूढ़ा आदमी क्लास में दाखिल होता है, उसकी निगाहें अपने बेटे को तलाश रही थीं ।

वह बेटे को मज़दूरी के लिए बाजार भेजता था बेटा कमा कर लाता जिससे घर का खर्च चलता था लेकिन इधर कुछ दिनों से बेटा सुबह घर से निकलता और शाम को खाली हाथ वापस आ जाता! बाप के सवाल करने पर उल्टे सीधे जवाब दे देता था! बाप को बहुत चिंता थी कि बेटा कमा कर क्यों नहीं ला रहा है, घर से निकलता है तो जाता कहां है? उस ने पता लगाया तो मालूम हुआ कि शहर की फलां मस्जिद में इमाम अबू हनीफा पढ़ाते हैं वहीं बेटा भी जाता है!

ढूंढते हुए वह क्लास में पहुंच गए,देखा कि बेटा क्लास में मौजूद है, उसे इशारे से बुलाते हैं और घर चलने को कहते हैं बेटा बाप के साथ चल देता है रास्ते में पिता बेटे को समझाते हैं, देखो पढ़ना लिखना अच्छी चीज है लेकिन यह उनके लिए है जिनके पेट भरे हुए हों तुम अगर पढ़ाई करोगे तो खाओगे क्या? बेटा खामोशी से घर आ गया और दूसरे दिन स्कूल के बजाए बाजार मज़दूरी करने चला गया इस तरह उस लड़के की पढ़ाई छूट गई

कुछ दिन गुजरे तो गुरू इमाम अबू हनीफा ने लड़के जिसका नाम याकूब था को क्लास में नहीं पाया अपने शिष्यों से पूछा कि याकूब कहां है लोगों ने बताया कि एक दिन उसके पिता आए थे और उसे बुला कर ले गए फिर वह नहीं आया इमाम अबू हनीफा याकूब को बुला कर पूछते हैं कि पढ़ाई क्यों छोड़ दी याकूब ने बताया कि मैं बहुत गरीब परिवार का हूं कमा कर लाता हूं तो घर में चूल्हा जलता है, इसीलिए वालिद साहब ने मुझे पढ़ने से रोक दिया है इमाम अबू हनीफा ने पूछा क्या तुम पढ़ना चाहते हो याकूब ने कहा कि हां मुझे बहुत शौक है
इमाम ने याकूब के बाप को बुला कर कहा कि आपका बेटा पढ़ना चाहता है उसे पढ़ने दिजिए बाप ने गरीबी व मजबूरी की बात की इमाम ने पूछा कि यह दिहाड़ी में कितना कमा लेता है कहा कि दो दिरहम रोज़ कहा कि ठीक है!आज से मैं रोजाना दो दिरहम दिया करूंगा आप पढ़ने दें बाप तुरंत तैयार हो गए !


इस प्रकार एक लड़का शहर की भीड़ में खोने से बच गया! यही याकूब आगे चलकर अबु युसुफ के नाम से मशहूर हुआ! दुनिया उसे इमाम अबु युसुफ के नाम से जानती है! वह हारून रशीद के समय क़ाज़ी अल क़ुज़ात ( चीफ जस्टिस ) बनें और ( अल खिराज ) नामक किताब लिख कर इस्लामी अर्थशास्त्र के जनक कहलाए !

जो बात जिक्र करने की है कि इमाम अबु हनीफा चोटी के इमाम थे! फिकह में उनका अपना एक स्कूल है! आज दुनिया में उनके फिकह को मानने वाले हन्फी मुसलमानों की संख्या सबसे अधिक है लेकिन शिष्य अबु युसुफ के बहुत से विचार अपने गुरु के विचारों से मेल नहीं खाते थे !दोनों में जोरदार इलमी मुबाहसा और चर्चा होती शिष्य अपनी राय पर अडिग रहते लेकिन ना तो गुरु के प्यार में कमी आती और ना ही शिष्य के आदर व एहतराम में!

एक ऐसा शिष्य जिसे उन्होंने सिर्फ शिक्षा नहीं दी थी बल्कि उसके और उसके घर वालों का खर्च भी संभाला था उनके उन विचारों को जो वह मेहनत करके व काफ़ी सोच विचार कर क़ायम करते और शिष्य उसका विरोध कर देता और उसे डांटने या ताना देने के बजाए खुश होते और दुआएं देते।

-Khursheeid Ahmad

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